कुछ जिंदगी...जिंदगी के बाद भी लोगों के दिलों मे धड़कती है... कुछ लोग दुनिया से जाकर भी नहीं जाते...टाटा संस के मानद चेयरमैन रतन टाटा अब इस दुनिया में नहीं रहे. उन्होंने रात करीब 11 बजे अंतिम सांस ली. उनके निधन से देश शोक में डूब गया है. हर हिंदुस्तानी के लिए रतन टाटा एक ऐसे आदर्श थे, जिनका योगदान केवल राष्ट्र निर्माण तक सीमित नहीं नहीं था.
वो लाखों लोगों के अभिभावक भी थे, जिसने उनके कंपनियों या उनके साथ काम किया. रतन टाटा से उसका रिश्ता हमेशा के लिए बन गया. रतन टाटा के जाने के बाद आज उन सबकी दुनिया सूनी हो गई है. देश अपने अनमोल रतन को खोकर दुखी है.
रतन टाटा के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके भाई नोएल टाटा से बात कर संवेदना व्यक्त की. मशहूर उद्योगपति रतन टाटा के निधन पर श्रद्धांजलि देते हुए महाराष्ट्र और झारखंड सरकार ने गुरुवार को एक दिन के राजकीय शोक का ऐलान किया है.
रतन टाटा के निधन से भारतीय उद्योग जगत को गहरा आघात लगा है लेकिन मुफलिसी के मारे वो मजलूम आज खुद को अनाथ महसूस कर रहे हैं जो रतन टाटा की खामोश फराकदिली के साए में खुद को महफूज महसूस कर रहे थे. क्या आप यकीन करेंगे कि उद्योग जगत की मुलाफावसूली की गलाकाट प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ में रतन टाटा जैसा इंसान अपने समूह का 60 फीसदी से ज्यादा मुनाफा परोपकार के कार्यों के लिए दान कर देता था.
जिस दौर में उद्योगपति मुनाफा कमाने के लिए तमाम नैतिक-अनैतिक कामों से परहेज नहीं करते थे उस दौर में रतन टाटा ने टाटा ट्रस्ट की स्थापना कर गरीब, मजलूम जरूरतमंद लोगों की हरचंद मदद का बीड़ा उठाया और शिक्षा, चिकित्सा से लेकर शोध और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए अपने समूह के कुल मुनाफा का आधे से ज्यादा हिस्सा लोकहित में लगाने का फैसला किया.
अजीब इत्तेफाक ये है कि बड़े औद्योगिक घराने के महफूज साए में पैदा होने के बाद भी रतन टाटा बचपन में ही अनाथ कर दिए गए. रतन टाटा जब महज 10 साल के थे तो इनके माता-पिता नवल टाटा और सूनी कमिसारिएट ने अलग होने का फैसला कर लिया और रतन टाटा को जे. एन. पेटिट पारसी अनाथालय में डाल दिया गया. अपने पोते के अनाथ आश्रम में होने की खबर जब रतन टाटा की दादी नवाजबाई टाटा को लगी तो उनका मन कराह उठा और उन्होंने फैसला किया कि उनके रहते उनका पौत्र अनाथ आश्रम में नहीं पलेगा.
दादी नवाजबाई रतन को अपने साथ ले आईं और उनका पूरे नाजो से पालन-पोषण किया. हालांकि अनाथ आश्रम में बिताए अपने नामाकूल दिनों की याद रतन टाटा के दिलो-दिमाग में हमेशा के लिए जज्ब हो गई और जब ईश्वर ने जब उन्हें मौका दिया तो देश के हर जरूरतमंद की मदद के लिए उन्होंने अपने खजाने का मुंह खोल दिया.