17 दिन बाद आखिरकार ज़िंदगी की जीत हुई और हौसलों के आगे पहाड़ को भी हारना पड़ा. पहाड़ चीरकर 17 दिन बाद सुरंग से सभी 41 मजदूरों को निकाल लिया गया. ये करीब 400 घंटे तक लगातार कोशिशों का नतीजा है. कई बार लगा कि बस मजदूर निकलने वाले हैं और फिर कुछ ऐसा हुआ कि मजदूरों की दूरी फिर बढ़ गई लेकिन तमाम कशमकश के बाद जिंदगी की जय हुई. ये तस्वीरें 399 घंटे चली जंग पर जीत की गवाही दे रही हैं.
मजदूरों के चेहरे पर नई जिंदगी की खुशी है. 17 दिन बाद वो चैन की सांस ले पाए. सभी 41 मजदूर स्वस्थ हैं, सभी को एम्स ऋषिकेष भेजा जाएगा, इन्हें चिनूक हेलिकॉप्टर से थोड़ी देर में ले जाया जाएगा. कल शाम 7 बजकर 50 मिनट पर पहला मजदूर सुरंग से बाहर आया और 45 मिनट के अंदर सारे मजदूर सुरक्षित निकल आए.
एक तरफ विज्ञान का सहारा लेकर मजदूरों को बाहर निकालने की जंग लड़ी जा रही थी. वहीं दूसरी तरफ दुआओं का सिलसिला जारी था. विज्ञान और आस्था की लड़ाई पुरानी है. उत्तरकाशी में सत्रह दिन बाद सभी 41 मजदूरों का बच निकलना किसी चमत्कार से कम नहीं है. आस्थावान लोग इसे बाबा बौखनाग का आशीर्वाद बता रहे हैं. उत्तरकाशी में बौखनाग देवता की काफी मान्यता है.
ये सोच कर ही रूह कांप जाती है कि वो सुरंग जहां से कोई रास्ता न निकलता हो.. उसमें 41 जिंदगियों ने 17 दिन कैसे गुजारे होंगे. हर कोई जानना चाहता है कि सुरंग में मजदूर क्या कर रहे थे. कैसा महसूस कर रहे थे. उनका हौसला कैसा था?
बंद सुरंग में 41 मजदूर एक-दूसरों के लिए हौसला बने रहे. मजदूर आपस में हौसला बढ़ाते रहे, बाहर मौजूद लोगों सेफोन पर बात के बाद इनकी हिम्मत बढ़ी, घरवालों से बात के बाद थोड़ी और आस बढ़ी. उन तक डॉक्टरी सलाह पहुंचाई गई. कभी सुरंग में टहले तो कभी गीत गाया, कभी कुछ खेला. खाना-दवा पहुंची तो कुछ ताकत लौटी. बचाव टीम ने लगातार हिम्मत बढ़ाई.
टनल में से निकले झारखंड के मजदूर Chamara Oraon ने आज तक से बातचीत में बताया कि टाइम पास के लिए मोबाइल में लूडो खेलते थे, ऊपर से पानी टपक रहा था उसी से नहाते थे. टनल में इधर उधर भटकते रहते थे, खाना भेजा जाता था तो खा लेते थे, अंदर घूम रहे थे, कभी सोने का मन किया तो सोते थे. मजदूर ने बताया कि पहले 2-3 दिन उम्मीद नहीं थी कि बाहर निकाल लिए जायेंगे, लेकिन आहिस्ता आहिस्ता लगने लगा.
जब सबका साथ हो गया तो सबका साहस बढ़ गया. तब सबने कहा अरे निकल ही जायेंगे. फिर इधर उधर से थोड़ी मशीन लगाई गई थोड़ा पाइप लगाया तो साहस बढ़ा. पहले लगा कि ज्यादा नहीं 4-5 दिन में निकल ही जायेंगे लेकिन बोलते बोलते ज्यादा दिन हो गया था. टनल में सब लोग आपस में बात करते थे, मिलजुल कर सब एक दूसरे की बात सुनते थे, अपने घर परिवार की बातें कर रहे थे, तुम कहां के हो.. मैं यहां का हूं, एक दूसरे का परिचय ले रहे थे. आखिरकार जीत हासिल हुई.
जिंदगी की जीत पर पूरा देश ने राहत की सांस ली. प्रधानमंत्री ने उन सभी मजदूरों से बात की. सीएम धामी मौके पर डटे रहे. पहला मजदूर बहार आया तो उन्होंने माला पहनाकर उसे गले लगा लिया. मजदूरों के परिवार वालों के लिए 17 दिन किसी आग्निपरीक्षा से कम नहीं थी. हर पल ध्यान सुरंग में फंसे अपनों पर ही ला रहता था. अब जब खुशखबरी आई तो उनके लिए एक साथ होली और दिवाली मनने लगी.
जिंदगी की जंग जीत कर बाहर आए मजदूरों के घर में दीये जलाए जा रहे हैं, बच्चे पटाखे फोड़ रहे हैं, घर में अनुष्ठान हो रहा, जयश्रीराम के नारे लग रहे हैं. यूपी के मिर्जापुर में आलोक कुमार के घर 16 दिन बाद दिवाली आई है. उत्तरकाशी के सुरंग में फंसे श्रमवीर आलोक उन 41 मजदूरों में शामिल हैं जो कल सुरंग से सलामत बाहर आ गए. मां ने बेटे के सकुशल बचने के लिए शीतला माता से मन्नत मांगी थी., वो मन्नत पूरी हुई तो तुरंत पूजा करने निकल पड़ीं.
बिहार के भोजपुर में श्रमवीर सबाह अहमद के घर भी जश्न है. पत्नी की आंखों में आंसू हैं, तो माता पिता के लिए भी ये भावुक पल है. बधाई देने के लिए घर पर लोगों का तांता लगा हुआ है. उत्तरकाशी के सुरंग जो मजदूर फंसे थे, उनके एक टीम लीडर थे सबाह अहमद.
उत्तरकाशी के सिल्क्यारा सुरंग में मौत को मात देने वालों में श्रमवीर मनजीत भी शामिल हैं. लखीमपुर में मनजीत के घर दिवाली पर मातम पसरा था लेकिन 16 दिन बाद दीये जल गए, पटाखे फूटने लगे, मिठाइयां बंटने लगी. मंगलवार का दिन मनजीत के परिवार के लिए मंगलमय साबित हुआ. पिता घर में रखे चांदी के जेवर गिरवी रखकर उत्तरकाशी गए थे, अब उनके पास सिर्फ 290 रुपए बचे थे.