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कैप्टन विक्रम बत्रा के खौफ से कांपते थे पाकिस्तानी, लगाई थी वायरलेस सिस्टम में सेंध

Vikram Batra Death Anniversary
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देश की दो महत्वपूर्ण चोटियां पाकिस्तान के कब्जे में थीं. वहां से लगातार पाकिस्तानी घुसपैठिये गोलीबारी कर रहे थे. लेकिन जब जंग के मैदान में भारतीय सेना का शेरशाह उतरा, तो पाकिस्तानियों की हालत पस्त हो गई. पसीने छूट गए. कैप्टन विक्रम बत्रा काल बनकर उनपर टूट पड़े. दो चोटियों को मुक्त कराया. आज उनकी 24वीं पुण्यतिथि है. (फोटोः हॉनरप्वाइंट)

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परमवीर च्रक विजेता शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा को प्यार से लोग 'लव' और 'शेरशाह' बुलाते थे. आइए जानते हैं करगिल युद्ध की वो कहानी जिसके हीरो विक्रम बत्रा हैं. 5 जून 1999 को लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा के बटालियन को आदेश में मिला कि वो द्रास पहुंचे. 13 J&K RIF बटालियन 6 जून को द्रास पहुंच गई. 

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उन्हें दूसरी बटालियन-राजपुताना राइफल्स (2 RJ RIF) के लिए रिजर्व बने रहने का आदेश दिया गया था. 18 ग्रेनेडियर्स बटालियन को तोलोलिंग पर कब्जा करने का आदेश मिला. बटालियन चार प्रयासों के बाद भी असफल रही. भारी नुकसान हुआ. तब राजपुताना राइफल्स को यह काम दिया गया. 13 जून 1999 को सफलतापूर्वक पहाड़ की चोटी से पाकिस्तानी घुसपैठियों को भगा दिया. इसके बाद, टोलोलिंग पर्वत और हंप कॉम्प्लेक्स के हिस्से को भी जीत लिया. 

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टोलोलिंग मिशन के बाद तत्कालीन कमांडिंग ऑफिसर योगेश कुमार जोशी ने प्वाइंट 5140 को जीतने की योजना बनाई. जोशी ने दो टीम बनाई. पहले का नेतृत्व लेफ्टिनेंट संजीव सिंह जामवाल को दिया गया. दूसरे का कमान लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा को दिया गया. कहा गया कि प्वाइंट 5140 पर दो तरफ से हमला करना है. 

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हंप कॉम्प्लेक्स में जामवाल और बत्रा को सीधे जोशी ने आदेश दिया था. उनसे कहा गया कि अपनी जीत का मंत्र चुनिए. तब बत्रा ने कहा था 'ये दिल मांगे मोर'. 19 जून को हमला रात में साढ़े आठ बजे करना था. भारतीय तोपों की फायरिंग के बीच 20 जून की आधी रात को ऊपर चढ़ाई की जाएगी. 

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जब सैनिक टारगेट से 200 मीटर दूर रहते तब तोपों से फायरिंग बंद कर दी जाती. जैसे ही तोपों से गोले दागने बंद किए गए. पाकिस्तानी सैनिक बंकरों से बाहर आए. भारतीय जवानों पर मशीनगनों से फायरिंग शुरु कर दी. तब बत्रा और जामवाल ने आर्टिलरी से संपर्क किया और दुश्मनों पर तोप से गोले दागते रहने को कहा. तब तक जब तक दोनों की टीमें 100 मीटर करीब तक नहीं पहुंच जातीं. 

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सवा तीन बजे दोनों अपनी-अपनी टीम को लेकर प्वाइंट 5140 पर पहुंच गए. 15 मिनट में जामवाल ने अपनी टीम के साथ रेडियो पर अपनी जीत का संकेत भेजा. तब तक बत्रा ने दुश्मन को हैरान-परेशान करने के लिए पीछे से हमला किया. उनके बंकरों पर तीन रॉकेट दागे. लेकिन दुश्मन मशीनगन से लगातार फायर कर रहा था. 

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बत्रा ने मशीन गन पोस्ट पर दो ग्रैनेड फेंककर उन्हें खत्म कर दिया. इसके बाद वो सबसे ऊंचे शिखर पर पहुंच गए थे.  लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा ने अकेले ही क्लोज कॉम्बैट में तीन पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया. लेकिन इस दौरान जख्मी हो गए. इसके बाद भी दुश्मन के अगले पोस्ट पर कब्जा किया. 5140 अंक पर पूरी तरह कब्जा हो चुका था. फिर रेडियो पर अपनी जीत का मंत्र 'ये दिल मांगे मोर' कहा. 

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इसके बाद प्वाइंट 4700, जंक्शन पीक और थ्री पिंपल कॉम्प्लेक्स में ऑपरेशन हुआ. जिसमें किसी भारतीय सैनिक की जान नहीं गई. न ही जख्मी हुआ. प्वाइंट 5140 की जीत और बहादुरी के बाद लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा को प्रमोशन दिया गया. उन्हें कैप्टन बना दिया गया. 

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30 जून को मुशकोह घाटी पहुंचने के बाद अगला टारगेट था प्वाइंट 4875. इस पर कब्जा जरूरी था क्योंकि यहां से सीधे नेशनल हाइवे -1 पर पाकिस्तानी सीधे हमला कर रहे थे. क्योंकि वहां से पाकिस्तानी भारतीय सेना की सारी गतिविधियां देख रहे थे. कैप्टन विक्रम बत्रा की 13 जेएके आरआईएफ प्वाइंट 4875 से 1500 मीटर दूर फायर सपोर्ट बेस पर तैनात किया गया था. 

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4 जुलाई 1999 की शाम 6 बजे प्वाइंट 4875 पर मौजूद दुश्मन पर हमला करना शुरू किया. रात भर बिना रुके गोलीबारी जारी रही. साढ़े आठ बजे दो टीमें ऊपर भेजी गई. तब बत्रा की तबियत खराब थी. वो अपने स्लीपिंग बैग में लेटे हुए थे. 5 जुलाई की सुबह साढ़े चार बजे फीचर के ऊपर बैठे दुश्मनों पर तेजी से फायरिंग की गई. सुबह सवा दस बजे कमांडिंग ऑफिसर जोशी ने दो फागोट मिसाइलें दागी जो दुश्मन के ठिकानों पर जाकर लगीं. पर घुसपैठिये भाग नहीं रहे थे. 

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कैप्टन विक्रम बत्रा फायर सपोर्ट बेस से स्थिति देख रहे थे. वो अपनी इच्छा से फ्लैट टॉप पर जाने की अनुमति मांग रहे थे. पाकिस्तानी बत्रा से इतने डरे हुए थे कि उन्हें धमकाने के लिए वायरसेल सिस्टम में सेंध लगाई. हालांकि, बत्रा चढ़ते रहे. बत्रा की टीम ने प्वाइंट 4875 पर मौजूद दुश्मनों के बंकरों पर ताबड़तोड़ फायरिंग की दुश्मन की हालत पस्त हो गई. 

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मशीन गन को खत्म करने के लिए ग्रैनेड से हमला कर दिया. बत्रा ने दुश्मनों की दो मशीनगनों को नष्ट कर दिया था. बत्रा एक-एक करके दुश्मन के संगड़ की ओर बढ़ रहे थे. हर एक संगड़ को खत्म करते जा रहे थे. नजदीकी संघर्ष में उन्होंने 5 पाकिस्तानियों को मार डाला. इसके बाद उन्होंने चार और पाकिस्तानी सैनिकों को मारा. 

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बत्रा की टीम के दो सैनिक जख्मी थे. बत्रा और रघुनाथ सिंह दोनों अपने चोटिल सिपाही को बचाने के लिए उठाकर नीचे ले जा रहे थे, तभी पाकिस्तानी स्नाइपर ने कैप्टन विक्रम बत्रा के सीने में गोली मार दी. इसके बाद एक आरपीजी के हमले में निकले छर्रे से सिर में चोट लग गई. प्वाइंट 4875 के ऐतिहासिक कब्जे के कारण उनके सम्मान में पहाड़ का नाम बत्रा टॉप रखा गया. बत्रा को मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.

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