15 साल पहले 2008 में राजस्थान की राजधानी जयपुर में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के बाद जिंदा बम बरामद हुए तो एक आरोपी की सजा पर राजस्थान सरकार को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिली है. धमाकों के एक आरोपी को नाबालिग मानकर रिहा करने के राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने सही मानते हुए बरकरार रखा है. सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले में दखल देने से इनकार किया है.
दरअसल, पिछले हफ्ते 8 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई की थी. राजस्थान हाईकोर्ट ने 2008 में जयपुर शहर में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में एक आरोपी को नाबालिग करार दिया था. तब हाईकोर्ट ने सेशन कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया था, जिसमें कहा गया था कि धमाके के समय आरोपी नाबालिग नहीं था, जबकि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने माना था कि उस समय आरोपी नाबालिग था. इसी रिपोर्ट को मानते हुए हाईकोर्ट ने उस आरोपी को रिहा करने के आदेश दिए थे. राजस्थान सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
8 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई की अगुआई वाली पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले में दखल देने से इनकार कर दिया. किशोर न्याय अधिनियम के तहत नाबालिग को अधिकतम तीन साल तक की सजा ही दी जा सकती है, वो भी सामान्य जेल में नहीं बल्कि किशोर सुधार गृह के सामान्य माहौल में. इस मामले में सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा था कि आरोपी वापस अपराधियों के संपर्क में आ सकता है और गुजरात बम ब्लास्ट केस में भी इसकी जरूरत है. उसने गंभीर अपराध किया है और ऐसे में उसे जमानत का लाभ नहीं दिया जा सकता.
नाबालिग आरोपी ने जमानत याचिका में किशोर न्याय बोर्ड और सेशन कोर्ट के आदेशों को चुनौती देते हुए कहा था कि जयपुर बम ब्लास्ट केस में उसे दोषमुक्त करते हुए हाईकोर्ट ने घटना के समय नाबालिग माना था. वह तीन साल से भी ज्यादा समय से जेल में बंद है और सह आरोपियों को जमानत मिल चुकी है. जबकि किशोर न्याय अधिनियम के तहत नाबालिग को अधिकतम तीन साल तक की सजा ही दी जा सकती है, इसलिए उसे जमानत पर रिहा किया जाए.