असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने सोमवार को कहा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के नियमों को अधिसूचित किए जाने के चार महीने बाद राज्य में सिर्फ 8 लोगों ने इसके तहत नागरिकता के लिए आवेदन किया है. उन्होंने बताया कि कैसे सीएए विरोधी प्रदर्शन करने वाले नेताओं ने लोगों को यह कहकर डराने की कोशिश की कि संशोधित कानून के तहत 50 लाख तक अवैध अप्रवासियों को नागरिकता मिल सकती है.
दरअसल, असम में नागरिकता संवेदनशील मुद्दा माना जाता है. यहां दशकों से बाहरी लोगों के खिलाफ आंदोलन देखने को मिलता रहा है. 2019 में जब असम में बड़े पैमाने पर सीएए विरोधी आंदोलन हुआ था, तब पांच लोग मारे गए थे. केंद्र सरकार पड़ोसी देशों में सताए गए अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने में तेजी लाने के लिए CAA कानून लेकर आई है. असम में हिंदू बंगालियों की एक बड़ी आबादी है जो इतिहास के विभिन्न दौर में राज्य में आकर बस गए हैं. असम में बांग्लादेश से बंगाली मुसलमानों का बड़े पैमाने पर अवैध प्रवास भी देखा गया है.
सिर्फ 2 लोग CAA के इंटरव्यू में आए
सोमवार को सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा, सिर्फ 8 लोगों ने सीएए के तहत नागरिकता के लिए आवेदन किया है. उनमें से भी सिर्फ 2 ही इंटरव्यू के लिए आए हैं. असम में सीएए के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन पर सरमा ने कहा कि हमें लग रहा था कि संशोधित नागरिकता कानून के तहत कम से कम दो-तीन लाख लोग नागरिकता के लिए आवेदन करेंगे, लेकिन सिर्फ दो लोग इंटरव्यू के लिए आए हैं. सरमा ने कहा, सीएए विरोधी प्रदर्शनों का नेतृत्व करने वाले लोगों ने आंकड़े दिए कि 30 लाख और 50 लाख अवैध अप्रवासियों को कानून से नागरिकता मिलेगी. लेकिन अब संख्या देख लीजिए.
बंगाली हिंदुओं ने कहा, हम भारतीय हैं...
उन्होंने 2019 में सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान मारे गए पांच लोगों की मौत का भी जिक्र किया. हिमंत ने कहा, हिंदू बंगालियों का कहना है कि वे भारतीय हैं और उनके पास भारतीय होने के दस्तावेज हैं. वे कह रहे हैं कि अगर जरूरत पड़ी तो वे कानूनी लड़ाई लड़ेंगे, लेकिन सीएए के तहत आवेदन नहीं करेंगे.
असम के सीएम ने कहा, जब मैंने कई हिंदू बंगाली परिवारों से संपर्क किया कि वे सीएए के तहत आवेदन क्यों नहीं कर रहे हैं तो उन्होंने मुझे बताया कि हम अपनी भारतीय नागरिकता के बारे में आश्वस्त हैं और 1971 से पहले भारत में प्रवेश कर चुके हैं और सीएए के तहत आवेदन नहीं करना चाहते हैं, बल्कि हम अदालत में कानूनी लड़ाई में अपनी नागरिकता साबित करना चाहते हैं.
हिमंत ने कहा कि यह स्पष्ट हो गया है कि बंगाली हिंदू समुदाय के जो सदस्य राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) में शामिल नहीं हैं, वे नागरिकता के लिए सीएए के तहत आवेदन नहीं करेंगे. असम ने सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनसीआर) का काम कराया था, जिसकी सूची 2019 में आई. करीब 19 लाख लोगों के नाम नागरिकता साबित करने वाली अपडेट एनआरसी सूची में नहीं थे.
क्या मामला वापस ले रही सरकार?
असम सरकार हिंदू बंगालियों के खिलाफ सीएए के तहत दर्ज मामलों को वापस ले रही है या नहीं? इस सवाल पर सीएम ने कहा, यह भ्रामक है. हम कोई भी मामला वापस नहीं ले रहे हैं. हम सिर्फ यह कह रहे हैं कि पहले उन्हें पोर्टल पर आवेदन करना चाहिए. क्योंकि अगर आप मामला दर्ज भी करते हैं तो कोई नतीजा नहीं निकलेगा, क्योंकि वे नागरिकता के हकदार हैं.
यह पूछे जाने पर कि क्या विदेशी ट्रिब्यूनल में मामले वापस लिए जाएंगे? मुख्यमंत्री ने कहा कि मामलों को कुछ महीनों के लिए रोकना पड़ सकता है. हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा, विदेशी रिब्यूनल की कार्रवाई को दो-तीन महीने के लिए रोकना होगा और लोगों को सीएए के तहत नागरिकता के लिए आवेदन करने का मौका देना होगा.
उन्होंने कहा, जो कोई भी (सीएए के अनुसार) 2015 से पहले भारत आया है, उसे नागरिकता के लिए आवेदन करने का पहला अधिकार है. अगर वे आवेदन नहीं करते हैं तो हम उनके लिए मामला दर्ज करेंगे. यह एक वैधानिक निर्देश है. हम उन लोगों को बाहर करेंगे, जो 2015 के बाद आए हैं.
आधार कार्ड की समस्या पर सुनाया किस्सा
आधार कार्ड ना होने के कारण लोगों को हो रही परेशानियों के बारे में हिमंत ने कहा, वो केंद्र के साथ कोऑर्डिनेट करके इस समस्या को सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं. हिमंत ने एक घटना का जिक्र किया, जिसमें एक लड़की एक शीर्ष ऑडिटिंग फर्म में इसलिए शामिल नहीं हो सकी क्योंकि उसके पास आधार कार्ड नहीं था. उन्होंने कहा, असम की एक लड़की को डेलॉयट में नौकरी का मौका इसलिए गंवाना पड़ा, क्योंकि उसके पास आधार कार्ड नहीं था.
नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) क्या है?
नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 को CAA के नाम से भी जाना जाता है. यह अधिनियम अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भारत में आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान करता है. इन छह समुदायों के लोग, जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में प्रवेश कर चुके हैं, अवैध प्रवासी नहीं माने जाएंगे और उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी. इस अधिनियम का उद्देश्य उन धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करना है, जो अपने देश में धार्मिक उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं.
CAA कब नोटिफाई किया गया?
नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 को संसद ने दिसंबर 2019 में पारित किया था, इसे 11 दिसंबर 2019 को लोकसभा और 12 दिसंबर 2019 को राज्यसभा ने मंजूरी दी थी. इसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 12 दिसंबर 2019 को इस विधेयक को अपनी स्वीकृति दी थी, जिससे यह कानून बन गया. यह अधिनियम आधिकारिक तौर पर 10 जनवरी 2020 को अधिसूचित (notified) किया गया था, जिससे यह लागू हो गया.
CAA का समर्थन करने वाले लोग इसे उन धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए राहत मानते हैं, जिन्हें उनके मूल देशों में धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है. जबकि इस अधिनियम का विरोध करने वाले लोग इसे भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के खिलाफ मानते हैं.