इंडिया टुडे के 'ग्रॉस डोमेस्टिक बिहेवियर' सर्वे में यह भी सामने आया है कि आम भरातीयों के मुताबिक सार्वजनिक परिवहन उनके लिए कितना सुरक्षित है. सड़क पर चलने में वह खुद को कितना सेफ फील करते हैं. वहीं, कौन सा राज्य यात्रियों के साथ कितना अच्छा व्यवहार करता है, इसके भी जवाब मिले हैं. इस सर्वे में वह स्थान भी चिह्नित किए गए हैं, जहां लोग कुछ क्षेत्रों में असुरक्षित महसूस करते हैं.
उत्तरदाताओं के आंकड़ों को मानें तो इससे जो नतीजे सामने आते हैं, वह सार्वजनिक परिवहन की सुरक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डालते हैं. सार्वजनिक परिवहन 86 फीसद भारतीयों को सुरक्षित लगता है, जिसमें महाराष्ट्र 89 फीसद के साथ सबसे आगे और पंजाब 73 फीसद के साथ पीछे रहा. आस-पड़ोस में सुरक्षित माहौल की धारणा में भौगोलिक विविधता का अंतर स्पष्ट दिखाई देता है. केरल के 73 फीसद निवासियों ने बताया कि कोई असुरक्षित क्षेत्र नहीं, जबकि उत्तर प्रदेश के 30 फीसद निवासियों ने ऐसे क्षेत्रों को चिह्नित किया जहां वे असुरक्षित महसूस करते हैं.
महिलाओं के उत्पीड़न की स्थिति कैसी है, इसे लेकर भी सर्वे हुआ. सर्वे में सामने आया है कि कर्नाटक वह प्रदेश है, जहां महिला उत्पीड़न को लेकर स्थिति बेहद खराब है. यानी 79 फीसद आधी आबादी को इस समस्या से दो-चार होना ही पड़ रहा है और यह बेहद परेशान करने वाला आंकड़ा है. इस सर्वे में सामने आया है कि तमिलनाडु सबसे अच्छा व्यवहार करने वालों का राज्य बनकर उभरा. कर्नाटक की स्थिति सबसे खराब रही, जहां 79 फीसद उत्तरदाताओं ने अक्सर उत्पीड़न की बात कही.
सर्वे में एक बेहद उत्साहजनक बात दिखी. 84 फीसद नागरिक हिंसक अपराधों की रिपोर्ट करने की इच्छा रखते हैं, हालांकि आंकड़ों पर नजर डालें तो लोगों की कथनी और करनी में एक बड़ा अंतर साफ दिखता है. 2017 के एक सर्वे में पाया गया कि दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में चोरी की घटनाओं के पीड़ितों का एक मामूली हिस्सा (क्रमश: 7.2 फीसद और 5.9 फीसद) एफआइआर दर्ज कराता है.
यातायात अनुशासन के मामले में विभिन्न क्षेत्रों में गजब की भिन्नता दिखती है. यातायात नियमों के पालन में असम (68 फीसद ने माना, ठीक से अनुपालन होता है) की स्थिति कर्नाटक (89 फीसद ने उल्लंघन होने की बात बताई) से बिल्कुल अलग है. सर्वे में आवारा कुत्तों को लेकर अप्रत्याशित क्षेत्रीय विभाजन सामने आया. 2024 में कुत्ता काटने की 3,16,000 घटनाओं के बीच केरल के 96 फीसद निवासी उनकी उपस्थिति नहीं चाहते, जबकि उत्तराखंड के 64 फीसद लोग कुत्तों के साथ सहजता महसूस करते हैं. ये निष्कर्ष आंकड़ों की बानगी भर नहीं बल्कि यह भी बताते हैं कि सार्वजनिक सुरक्षा मोर्चे पर किस-किस तरह की चुनौतियां हैं.