चीन दुनिया में एरिया के हिसाब से चौथा सबसे बड़ा देश है. बावजूद इसके विस्तारवाद का उसका लालच थमने का नाम नहीं ले रहा. हालात ये है कि वो अरुणाचल को दक्षिणी तिब्बत बताया करता है और वो इसलिए ताकि तिब्बत कहकर वो अरुणाचल पर दावा ठोक सके. एक बार फिर चीन ने अपनी यही बात दोहराई जब पांच भारतीय अरुणाचल से अगवा कर लिए गए. पहले तो चीन मुकर ही गया लेकिन फिर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने किबिटू में सभी पांचों युवकों को भारतीय सेना के सुपुर्द कर दिया. एक तरफ तो ये भारत के लिए अच्छी ख़बर है लेकिन सवाल है कि सीमा पर जैसे हालात हैं उसमें पहले अपहरण और फिर मुक्ति…. क्या इसे भारत को शक की निगाह से नहीं देखना चाहिए? यही बता रहे हैं आजतक रेडियो के मिलेट्री एक्सपर्ट और सेना में कर्नल रह चुके विनायक भट्ट, साथ ही समझिए कि अरुणाचल को चीन भारत का 'वीक पॉइंट' क्यों मान रहा है?
अक्सर कहा जाता है कि किसानों की बात कम होती है. हम भी मानते हैं कि बात होनी ही चाहिए इसलिए आज ज़रूर ध्यान से सुनिए. एक आंकड़ा आया है. National Crime Records Bureau यानि NCRB का. इनका डेटा कहता है कि पिछले साल 10,281 किसानों ने आत्महत्या कर ली. यानि हर दिन करीब 28 किसानों ने मौत को गले लगाया. पिछले साल से ये आंकड़ा 66 कम रहा. मतलब 2018 में 10,357 किसानों ने खुदकुशी करके जान दे दी थी. अब सुनने में ये महज़ नंबर लगते हैं मगर सोचिए कि कितने परिवार उस शून्य को दिन रात महसूस करते होंगे जिनके घर से कमानेवाला हमेशा के लिए चला गया. अब ये भी सुनिए कि बिहार, पंजाब, दमन दीव और उत्तराखंड जैसे राज्यों में खुदकुशी का ये आंकड़ा 2018 के मुकाबले 2019 में बढ़ा ही है. पंजाब को लीजिए जहां किसानों की खुदकुशी के मामले में साढ़े सैंतीस फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. एक ख़बर ये है कि लॉकडाउन में यानि बीते छह महीनों में खुदकुशी के इन मामलों में काफी कमी आई है जबकि महामारी के इस दौर में जैसे हालात हैं ये तस्वीर उलट होती तो भला किसे हैरानी होती.. इस गिरावट के पीछे वजह जानेंगे तो आप और भी दुखी होंगे.. आजतक रेडियो के पंजाब में रिपोर्टर मंजीत सहगल से पूरी बात सुनिए.
कौन जानता था कि चार दिन पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने जो सादे कागज़ पर खत लिखा वो उनका आखिरी साबित होगा. हमने उस पर खबर की थी. रघुवंश प्रसाद ने अपना इस्तीफा आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव को लिखा था, वो भी दिल्ली एम्स के बिस्तर पर लेटे लेटे. हालांकि लालू प्रसाद यादव ने उसी दिन इस खत का जवाब सार्वजनिक तौर पर लिखा था.. कहा था, आप कहीं नहीं जा रहे.. ठीक होकर लौट आइए.. मगर ना लालू , ना आरजेडी, ना दुनिया जानती थी कि रघुवंश लालू की इस बार नहीं सुनेंगे. भारत में लोक कल्याणकारी योजना मनरेगा के जनक कहे जाने वाले रघुवंश बाबू ने 74 साल की उम्र में दुनिया छोड़ दी. लालू ने ट्वीट किया- 'प्रिय रघुवंश बाबू! ये आपने क्या किया? मैनें परसों ही आपसे कहा था आप कहीं नहीं जा रहे है. लेकिन आप इतनी दूर चले गए. नि:शब्द हूं. दुःखी हूं. बहुत याद आएंगे.' रघुवंश प्रसाद की शख़्सियत एक समाजवादी जन नेता और राजनेता के तौर पर कैसी थी हमने जाना इंडिया टुडे में पत्रकार प्रभाष दत्ता से जो अपने पत्रकारिता करियर के दौरान कई बार रघुवंश बाबू से मिलते जुलते रहे.
और ये भी जानिए कि 14 सितंबर की तारीख इतिहास के लिहाज़ से अहम क्यों है.. क्या घटनाएं इस दिन घटी थीं. अख़बारों का हाल भी पांच मिनटों में सुनिए और खुद को अप टू डेट कीजिए. इतना कुछ महज़ आधे घंटे के न्यूज़ पॉडकास्ट 'आज का दिन' में नितिन ठाकुर के साथ.