कभी सड़क पर संघर्ष की राजनीति करके सत्ता साधने वाली ममता बनर्जी अब सड़क पर हो रहे मार्च से परेशान हैं. बंगाल में चुनाव भी हैं तो ज़ाहिर है विपक्षी उन्हें कई मुद्दों पर घेर रहे हैं. इनमें से एक है बंगाल में जारी राजनीतिक हिंसा. बीजेपी ने कोलकाता में इसी इश्यू पर रैली निकाली जिसके चलते कोलकाता थम गया. हावड़ा ब्रिज बंद था. विद्यासागर सेतु बंद था. जगह जगह बैरिकेडिंग थी. सचिवालय की तरफ़ बढ़ रहे मार्च को पुलिस ने जब रोका तो हालात बेक़ाबू हो गए. प्रदर्शनकारियों ने पत्थर चलाए तो पुलिस ने भी लाठी से लेकर पानी की बौछारें तक इस्तेमाल किया. कोलकाता का राजनीतिक तापमान पहले ही हाई था और इस सबके बाद तो और चढ़ गया. इसे मापने के लिए हमने बात की हमारी आजतक रेडियो रिपोर्टर मनोज्ञा लोइवाल से.
पॉलिटिकल वॉयलेंस के बारे में अगर आप जरा और गहराई से समझना चाहते हैं, जानना चाहते हैं तो आज हम उससे जुड़ा एक पॉडकास्ट भी लानेवाले हैं. उसे भी ज़रूर सुनिएगा.
जब दो देश एक दूसरे से सीधा युद्ध नहीं करते तो उनके लड़ने के तरीक़े ज़रा और महीन हो जाते हैं. कोल्ड वॉर जो अमेरिका और सोवियत यूनियन के बीच चला था वो सबसे बढ़िया एक्ज़ाम्पल है. दूसरा एक्ज़ाम्पल हमारे सबसे नज़दीक फ़िलहाल जो है वो भारत चीन का है. खुलकर लड़ाई नहीं हो रही है लेकिन चीन भारत के ऊपर मनोवैज्ञानिक दबाव बना रहा है. The United States Army Field Manuals के हिसाब से किसी प्रोपेगेंडा वॉर में ये दिखाने की कोशिश की जाती है कि दूसरा देश हमलावर है और आप शांति के पक्षधर हैं, यानि आप जो कुछ भी कर रहे हैं, वो बचाव में कर रहे हैं.. सेल्फ़ डिफ़ेंस में करना पड़ रहा है और ऐसा करना किसी भी देश का हक़ तो है ही. इसी के आधार पर दुनिया अपनी राय बनाती है कि कौन सही है और कौन ग़लत. अब चीन इसी का इस्तेमाल भारतीयों और विशेष तौर पर भारतीय सेना पर कर रहा है. इंडिया टुडे की OSINT टीम जो विदेशी मामलों पर ख़ास नज़र रखा करती है उसने इस रणनीति को समझने के लिए एनालिसिस किया है. हमने रिटायर्ड कर्नल विनायक भट्ट से इसी पर बात की.
रामविलास पासवान नहीं रहे. हमेशा चुस्त दुरुस्त, सक्रिय और अपनी उम्र से काफ़ी कम दिखनेवाले पासवान लंबे वक़्त से बीमार चल रहे थे. लोक जनशक्ति पार्टी का कामकाज भी हाल फ़िलहाल पूरी तरह उनके बेटे चिराग़ पासवान के ही पास था. उन्होंने ही कल ट्वीट करके सबको अपने पिता के देहांत की जानकारी दी. चिराग़ ने लिखा- "पापा....अब आप इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन मुझे पता है आप जहां भी हैं, हमेशा मेरे साथ हैं. Miss you Papa...". 74 साल के पासवान ने अपनी आख़िरी साँसें दिल्ली के एक अस्पताल में लीं. कुछ दिनों पहले उनके दिल का ऑपरेशन भी हुआ था. रामविलास पासवान मुल्क के सबसे तजुर्बेकार नेताओं में से एक थे जिनका उद्भव बेहद करिश्माई था. पाँच दशकों के तवील सियासी सफ़र में वो नौ बार लोकसभा पहुँचे और दो बार राज्यसभा में बैठे. आज उन्हें याद कर रहे हैं हमारे साथी रितुराज और सीनियर जर्नलिस्ट प्रभाष के दत्ता.
और ये भी जानिए कि 9 अक्टूबर की तारीख इतिहास के लिहाज़ से अहम क्यों है.. क्या घटनाएं इस दिन घटी थीं. अख़बारों का हाल भी पांच मिनटों में सुनिए और खुद को अप टू डेट कीजिए. इतना कुछ महज़ आधे घंटे के न्यूज़ पॉडकास्ट 'आज का दिन' में नितिन ठाकुर के साथ.