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आज का दिन: घोटाले में नाम आने पर दिया था इस्तीफा, अब BJP के लिए कितने फायदेमंद होंगे मिथुन?

जवानी में वामपंथ और नक्सल आंदोलन से बेहद करीब रहे मिथुन हाल ही में टीएमसी के टिकट पर राज्यसभा गए थे पर फिर साल 2016 में उन्होंने पार्टी और राज्यसभा दोनों छोड़ दी थी. कारण था- शारदा चिटफ़ंड घोटाला. वो कंपनी के ब्रांड एंबेसडर थे.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिथुन चक्रवर्ती
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिथुन चक्रवर्ती

साल 2011 में टीएमसी ने मिथुन चक्रवर्ती को राज्यसभा की राह दिखाई थी लेकिन रविवार को मिथुन भाजपा में शामिल हो गए और अब वो टीएमसी को बता रहे हैं कि मैं कोबरा हूँ. ब्रिगेड मैदान में पीएम मोदी की रैली के दौरान जाने माने एक्टर मिथुन को बीजेपी के बंगाल प्रमुख दिलीप घोष ने पार्टी का झंडा थमाया.. भगवा पटका पहनाया. अब इतना तो साफ़ है कि बीजेपी जो एक बड़ा बंगाली चेहरा ढूँढ रही थी उसकी तलाश पूरी हो चुकी है. जवानी में वामपंथ और नक्सल आंदोलन से बेहद करीब रहे मिथुन हाल ही में टीएमसी के टिकट पर राज्यसभा गए थे पर फिर साल 2016 में उन्होंने पार्टी और राज्यसभा दोनों छोड़ दी थी. कारण था- शारदा चिटफ़ंड घोटाला. वो कंपनी के ब्रांड एंबेसडर थे. ज़ाहिर है उनका नाम घोटाले में आया तो ईडी उन तक भी पहुँची. उस वक्त मिथुन ने सियासत से ही तौबा कर ली थी लेकिन अब वो फिर लौट आए हैं. इस बार अपनी राजनीतिक यात्रा में विचारों के मामले में एकदम 180 डिग्री लेते हुए वो भाजपा के साथ हैं. तो सवाल ये है कि मिथुन भाजपा के लिए कितने काम के साबित होंगे.. ये पूछा हमने आज तक रेडियो  के बंगाल में रिपोर्टर सूर्याग्नि रॉय से.

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चुनाव तमिलनाडु में भी है और यहाँ फाइनली द्रविड़ मुनेत्र कड़गम यानि डीएमके और कांग्रेस के बीच सीट शेयरिंग पर सहमति बन गई है. कांग्रेस को गठबंधन के हिसाब से 25 सीटें मिली हैं. इसके अलावा वो कन्याकुमारी की लोकसभा सीट से भी अपना उम्मीदवार उतारेगी. सांसद एच वसंतकुमार के निधन के बाद से ये सीट ख़ाली है. इस सीट पर बीजेपी की ओर से राधाकृष्णन खड़े हैं. वहीं पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम के बेटे कार्ति ने भी इस सीट से इलेक्शन लड़ने की इच्छा ज़ाहिर की है. वैसे सवाल अब ये है कि जो कांग्रेस तमिलनाडु में साल 2011 में 63 सीटों पर लड़ी, वो 2016 में 41 सीटों पर लड़ी और अब सिर्फ़ 25 पर लड़ेगी तो इस गिरते ग्राफ़ से पार्टी परेशान है या नहीं. हमने इसकी वजह पूछी तमिलनाडु की राजनीति की गहरी समझ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार डी सुरेश से.

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आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है. इसे मनाए जाने के बीज 1908 में तब पड़े थे जब न्यूयॉर्क में 15 हज़ार महिलाओं ने काम के घंटे कम करने, बेहतर वेतन और वोट देने की माँग के साथ जुलूस निकाला. फिर उसके अगले साल से अमेरिकी सोशलिस्ट पार्टी ने इस दिन को पहली बार राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया. फिर 1910 में कॉपेनहेगन शहर में एक इंटरनेशनल कांफ्रेंस ऑफ़ वर्किंग वीमेन हुई. उसमें क्लारा जेटकिन नाम की एक्टिविस्ट ने इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय तौर पर पहचान दिलाने का सुझाव दिया जो मान लिया गया. फिर तो 1911 से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस धूमधाम से मन ही रहा है. आज 110वीं बार मनाया जा रहा है. तो आज हम लाए हैं एक कहानी लखनऊ की गेसाईगंज जेल यानि नारी निकेतन में बंद महिला क़ैदियों की. चार दीवारों में क़ैद ये महिलाएं पुनर्नवा फ़ाउंडेशन की मदद से जेल में ही सैनेट्री नेपकिन बनाती हैं. फिर ये नैपकिन बेहद कम क़ीमत में ज़रूरतमंद महिलाओं और लड़कियों को बांटे जाते हैं. इससे इनका ख़र्च भी चल रहा है और ये एक तरह के टैबू से भी लड़ रही हैं. हमने बात की पुनर्नवा फ़ाउंडेशन की फ़ाउंडर मनीषा बाजपेयी से और पूछा कि कैसे उन्हें जेल में महिला क़ैदियों से सैनेट्री नैपकिन बनवाने का विचार आया और कब से इसकी शुरुआत हुई.

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साथ ही आज की तारीख का इतिहास और अख़बार का हाल तो है ही. ये सब कुछ सिर्फ आधे घंटे के मॉर्निंग न्यूज़ पॉडकास्ट 'आज का दिन' में नितिन ठाकुर के साथ.

'आज का दिन' सुनने के लिए यहां क्लिक करें

 

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