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AajTakSabseTez कैंपेन की पांचवीं फिल्म 'ज़रा झुक के' लॉन्च, निष्पक्ष रिपोर्टिंग पर फोकस

'ज़रा झुक के' टाइटल के नाम से लॉन्च इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे आजकल ज्यादातर समाचार चैनलों के रिपोर्टिंग में एक राजनैतिक झुकाव और पक्षपात दिखता है. वहीं दूसरी ओर आज तक का इन चीजों से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है.

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आजतक सबसे तेज कैंपेन की नई कड़ी 'जरा झुक के' लॉन्च
आजतक सबसे तेज कैंपेन की नई कड़ी 'जरा झुक के' लॉन्च

वायरल हो रहे #AajTakSabseTez कैंपेन के अगले चरण में, देश के निर्विवाद रूप से नंबर 1 न्यूज चैनल आज तक ने इस सीरीज की पांचवीं फिल्म लॉन्च की. 'ज़रा झुक के' टाइटल के नाम से लॉन्च इस फिल्म में चित्रा त्रिपाठी हैं. इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे आजकल ज्यादातर समाचार चैनलों की रिपोर्टिंग में एक राजनैतिक झुकाव और पक्षपात दिखता है. वहीं दूसरी ओर आज तक का इन चीजों से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है. यह बिना किसी राजनीतिक झुकाव के सीधे फॉरवर्ड रिपोर्टिंग में विश्वास करता है.

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बेहद चर्चित लेखक-निर्देशक प्रदीप सरकार द्वारा परिकल्पित और निर्देशित #AajTakSabseTez कैंपेन देश में खबरों के मौजूदा माहौल पर व्‍यंग्‍य करता है और फेक न्‍यूज के इस दौर में कुछ लोगों के खबरें देने के निम्‍न स्‍तर के मानकों को मनोरंजक तरीके से प्रकाश में लाता है. पहली फिल्म 'सच का बैंड' यह दिखाती है कि कैसे कुछ न्यूज़ चैनल ख़बरों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं.

जबकि दूसरी फिल्‍म ‘अचार गली’ दिखाती है कि कैसे आज तक मसालेदार खबरें दिखाने में विश्वास नहीं करता जो कि बाकी न्यूज़ चैनलों द्वारा अपनाये जाने वाले ट्रेंड से बिल्कुल अलग है. तीसरी फिल्म 'अफवाह' यह दिखाने की कोशिश करती है कि अगर खबरों के नाम पर अफवाहें दिखाई जाएं तो यह समाज के लिये बड़ा खतरा साबित हो सकता है. सीरीज की चौथी फिल्म ‘खबरिस्तान’ खबरों में बढ़ती सनसनी की संस्कृति और सच को छुपाए जाने की प्रवृत्ति के बारे में बात करती है. 

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पिछले बीस सालों से भारत में सबसे ज्यादा देखा जाने वाला और सबसे भरोसेमंद न्यूज़ चैनल होने के नाते आज तक और इसके साहसी पत्रकारों ने दर्शकों के सामने हर बड़ी घटना का हर पक्ष पेश किया है. ऐसे समय में, जब कई न्यूज चैनलों का झुकाव जगजाहिर है, आज तक ने बिना किसी का पक्ष लिए हमेशा बीच का रास्ता अपनाया है. जैसे-जैसे शोर-शराबा बढ़ता है, एक ऐसे साझा मंच की जरूरत बढ़ती जाती है, जहां सभी पक्षों को सुना जा सके.

एक ऐसी जगह की जरूरत होती है, जहां लोग सहमत या असहमत हो सकते हों. ये वक्त का तकाजा है. आज तक ऐसी ही जगह है जहां सबको सुना जा सकता है और एक स्वस्थ संवाद हो सकता है. अगर समाज में जीवंत संवाद न हो तो वह समाज कैसा?

यह फिल्‍में सच के साथ खड़ा होने की आज तक की लगन दिखाती हैं और निश्चित रूप से आपके चेहरे पर मुस्‍कुराहट भी लाएंगी!

आप इस फिल्‍म को यहां देख सकते हैं:  

 

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