मुकदमों के लगातार बढ़ते बोझ को कम करने के लिए उच्च अदालतों में एडहॉक जजों की नियुक्ति के मामले पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या कोई ऐसा प्रवधान है जो जजों की प्रस्तावित संख्या पर नियुक्ति पूरी किए बिना एडहॉक जजों की नियुक्ति को रोकता है?
ASG एसके सूरी ने कहा कि बिना एडहॉक जजों की नियक्ति के भी अदालतों में लंबित केसों का बोझ कम किया जा सकता है. अगर प्रस्तावित जजों की नियुक्ति हो जाये तो एडहॉक जजों की जरूरत नही पड़ेगी.
जस्टिस एसके कौल ने कहा कि मुख्य न्यायधीश का मानना है कि जब तक प्रस्तावित नियुक्ति पूरी की जा रही है तब तक एडहॉक जज हाई कोर्ट में लंबित मामलों का बोझ कम करने में मदद कर सकते हैं.
CJI ने कहा कि कॉलेजियम और मंत्रालय के महत्व को हम समझते हैं और उनके पूर्ववर्ती न्यायाधीशों की उपयुक्तता और क्षमता पर विचार कर रहे हैं.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कोई भी फाइल राष्ट्रपति को तब तक नहीं पहुंच सकती, जब तक कि वह मंत्रालय के माध्यम से नहीं जाती और तब तक मंत्रालय को SC कॉलेजियम से सिफारिशें नहीं मिलेंगी. इस प्रक्रिया को सरल बनाया जा सकता है परंतु अन्य कोई मार्ग नहीं, नियुक्त की जा सकती है.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में लंबित आपराधिक मामलों की सूची बहुत लंबी हैं. कई कोर्ट में कई मामले 20 साल से लंबित हैं.
CJI ने सुझाव दिया कि नए मामलों को रेगुलर बेंच के पास भेजा जाए जबकि पुराने लंबित मामलों को एडहॉक जजों के पास भेजा जाए.
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने कहा कि लंबित मामलों की समीक्षा की जाने की जरूरत है. इन लंबित केस को कैटेगरी या विषय के अनुसार देखा जाना चाहिए. इसके लिए एडहॉक जजों को नियुक्त किया जा सकता है. एक बार हमारे पास बेंच मार्क हो जाने के बाद प्रक्रिया को समझने की जरूरत है. पूर्व न्यायाधीशों की सूची तैयार की जा सकती है.