देश के अधिकांश राज्य इन दिनों भीषण गर्मी और हीटवेव की चपेट में हैं, जिसका असर सब्जियों की पैदावार पर भी दिखाई दे रहा है. तेज गर्मी और लू की वजह से सब्जियों की पैदावार में कमी आई है और किसानों को 30% से 50% तक का नुकसान हो रहा है. किसानों का कहना है कि पानी देने के बावजूद बेलों वाली फसलें मुरझाई हुई रहती हैं.
गर्मी से खराब हुई सब्जियों की फसल
हीट वेव का असर इस बार पिछले कई वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ रहा है. ऐसे में जो किसान सब्जी की फसल उगाते हैं, उनको परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. सब्जी की खेती करने वाले एक किसान ने बताया कि इस बार 30 से 50 प्रतिशत सब्जी की पैदावार में कमी आई है और मंडी में जाने पर फसल का सही दाम भी नहीं मिल रहा है. हीटवेव ज्यादा होने से खेतों में पानी हर एक दिन छोड़कर देना पड़ता है. हीटवेव की वजह से बिजली का संकट भी मंडरा रहा है और बिजली ना होने पर किसान खेतों में पानी भी नहीं दे पा रहे हैं.
कृषि अधिकारी रिटायर्ड डॉक्टर सुभाष चंद्र ने बताया कि हीटवेव की वजह से सब्जियों में बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है और प्राकृतिक खेती में भी बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा है. ऐसे में फसल को बचाने के लिए मल्चिंग का प्रयोग किया जाना चाहिए, जिससे किसान के जो खेती के अवशेष है जैसे तूड़ा और पराली वह भी काम में लाए जा सकते हैं और उनको फूंकने या जलाने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी. मल्चिंग तकनीक का उपयोग करके किसान अपनी फसलों को हीटवेव से बचा सकते हैं.
क्या है मल्चिंग तकनीक? जानें इसके फायदे
मल्च एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका उपयोग मिट्टी में नमी बनाए रखने, खरपतवारों को दबाने, मिट्टी को ठंडा रखने और सर्दियों में पाले की समस्या से पौधों को सुरक्षित रखने के लिए मल्चिंग किया जाता है. कार्बनिक मल्च धीरे-धीरे अपघटित होने के कारण मिट्टी की संरचना, जल निकासी और पोषक तत्वों को धारण करने की क्षमता में सुधार करने में भी मदद करती है.
मलीचिंग तकनीक का इस्तेमाल करने से फसल धूप से बचेगी और धरती की नमी बनी रहेगी. इसके अलावा फसल को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ेगी. मल्चिंग से धरती में रहने वाले केंचुए भी सुरक्षित रहते हैं. वहीं खेतों के अवशेष तूड़ा और पराली को जलाने की जगह आप मल्चिंग में उपयोग कर सकते हैं. मल्चिंक से मिट्टी के कटाव को रोका जा सकता है और खरपतवार को रोकने में भी मदद मिलती है.