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अफगान संकटः 1992 में निकासी अभियान चलाने वाले स्क्वाड्रन लीडर से जानें तब की दास्तां

स्क्वाड्रन लीडर राजेश कुमार (रिटायर) ने कहा कि मुझे बस एक बात कहनी है कि वायुसेना कल, आज, कल, हमें रिस्क तो उठाना ही है. कुछ भी बड़ी चीज नहीं है, हमें रिस्क उठाना पड़ता है. हां हम बस चीजों को कैलकुलेट करते हैं कि कुछ चीजों को कैसे दूर किया जाए.

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स्टोरी हाइलाइट्स
  • 1992 में मुजाहिदीन के काबुल पर नियंत्रण के बाद हुआ निकासी कार्यक्रम
  • 'तब अफगानिस्तान के बारे में ज्यादा जानते नहीं थे, टीवी से मिली जानकारी'
  • प्लेन में कई अधिकारियों को लकड़ी के तख्तों पर बैठना पड़ाः राजेश कुमार

अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जा जमाने के बाद वहां फंसे भारतीयों को निकालने की कोशिश जारी है. भारतीय वायुसेना ने अभी कुछ भारतीयों को सुरक्षित निकाल लिया है और अभी भी बड़ी संख्या में लोग फंसे हुए हैं. ऐसा ही एक मुश्किल अभियान 1992 में भी चलाया गया था जिसकी अगुवाई करने वाले स्क्वाड्रन लीडर ने तब के अपना अनुभव साझा किया.

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1992 में मुजाहिदीन के काबुल पर नियंत्रण करने के दौरान निकासी कार्यक्रम शुरू किया गया था जिसकी अगुवाई स्क्वाड्रन लीडर राजेश कुमार (रिटायर) ने की थी. तब के अनुभव के बारे में स्क्वाड्रन लीडर राजेश कुमार (रिटायर) ने आजतक से कहा, 'उन दिनों कम्युनिकेशन का माध्यम बहुत अच्छा नहीं था और हम उस समय अफगानिस्तान के बारे में ज्यादा जानते भी नहीं थे सिवाय इसके कि हमने टीवी पर क्या देखा था. लेकिन हमें दिल्ली आने के लिए कहा गया और वहां हमें मजार-ए-शरीफ के बारे में ब्रीफ कर जाने के लिए कहा गया.'

उन्होंने कहा, 'उस जगह के बारे में पहले कभी नहीं सुना और हमें बताया गया कि हमें कुछ गंभीर दवाइयां लेनी होगी. हमने पाकिस्तान के ऊपर से उड़ान भरी फिर अफगानिस्तान में प्रवेश किया. लेकिन यहां पूरी तरह से सन्नाटा पसरा था, कोई जवाब नहीं दे रहा था. हमने हिंदुकुश पर्वत को पार किया और हमारे नीचे मजार-ए-शरीफ था.'

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'हमारे पास क्षेत्र को लेकर नहीं थी कोई जानकारी'

उन्होंने कहा कि हमारे नियंत्रक को अंग्रेजी नहीं आती थी, इसलिए जब हमने रनवे देखा तो हम वहां उतरे और जनरल दोस्तम तथा उनकी टीम ने सद्भावना के साथ स्वागत किया. वहां हमें विजय नांबियार को वापस लेने के लिए निकासी कार्यक्रम के बारे में बताया गया.

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स्क्वाड्रन लीडर राजेश कुमार (सेवानिवृत्त) ने कहा कि वर्तमान स्थिति में इतनी जानकारी उपलब्ध थी. तालिबान सोल्जर फायर हथियारों का उपयोग कर सकते हैं जो कम ऊंचाई पर बेहद प्रभावी थे, लेकिन हमें सभी समाचार चैनलों से जानकारी मिल रही थी कि हवाई क्षेत्र अभी भी अमेरिकियों के नियंत्रण में है इसलिए एक निश्चित मात्रा में सुरक्षा की गारंटी है और हमारी टीम का पास कोई जानकारी नहीं थी, बस यह पता था कि यह हवाई क्षेत्र सुरक्षित है. जब हम उतरे तो हमें पता चला कि हम एक मित्रवत क्षेत्र में थे.

उन्होंने बताया कि ताजिकों से हम जो कुछ भी एकत्र कर सकते थे किया. वे मजार-ए-शरीफ में ताजिक जातीयता से हैं और उन्हें दक्षिण पूर्वी क्षेत्र के लोग पसंद नहीं थे. वे पड़ोसी देशों को भी पसंद नहीं करते थे और उनके पास बहुत कठोर शब्द थे.

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स्क्वाड्रन लीडर राजेश कुमार (रिटायर) ने बताया कि एक बार जब हम सफलतापूर्वक लैंड कर गए और नांबियार ने दूतावास से अपने सभी मित्रों की निकासी के बारे में सूचित कर दिया, तो दक्षिण पूर्व देशों से आए लोगों को हमें दो दलों में बांटना पड़ा. हम वहां किसी को मना नहीं कर सकते थे. हर कोई या तो सचिव या राजदूत था, लेकिन हमारे पास केवल दो वीआईपी सीटें थीं, इसलिए अधिकांश अधिकारियों को लकड़ी के तख्तों पर बैठना पड़ा.

उन्होंने बताया कि मुझे बस एक बात कहनी है कि वायुसेना कल, आज, कल, हमें रिस्क तो उठाना ही है. कुछ भी बड़ी चीज नहीं है, हमें रिस्क उठाना पड़ता है. हां हम बस चीजों को कैलकुलेट करते हैं कि कुछ चीजों को कैसे दूर किया जाए. जब मैं मजार-ए-शरीफ के लिए जा रहा था तो मैंने अपनी पत्नी से कहा कि अगर मैं वापस नहीं आया तो ये चीजें हैं जो आपको एयरफोर्स से मिलेंगी, रोना मत. हमें तैयार रहना होगा. और वायुसेना जबरदस्त काम कर रही है और ऐसा करने वाले पायलटों को मेरा सलाम है.
 

(इनपुट- श्रेया चटर्जी)

 

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