
भारत को आजाद हुए इस साल 15 अगस्त को 74 साल पूरे होने जा रहे हैं. लेकिन अब भी देश में ऐसे हिस्से हैं जहां लोगों को नदी पार करने के लिए बांस के पुल का सहारा लेना पड़ता है. असम के शिवसागर जिले में कई दशकों से ग्रामीणों को ऐसे ही जान खतरे में डालकर नदी पार करनी पड़ती है.
अपर असम के इस जिले में लोरपुटा, नाओजान क्षेत्र के कम से कम छह गांवों के लोगों को डोरिका नदी पर लकड़ी या कंक्रीट का पक्का पुल नहीं होने की वजह से हर दिन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
इन गांवों में रहने वाले लोग कई वर्षों से सरकार से नदी पर पुल बनाने की गुहार लगाते आ रहे हैं, लेकिन अभी तक उनकी सुनवाई नहीं हुई है.
लोरापुटा, नाओजान क्षेत्र जिले के हेडक्वार्टर शिवसागर शहर से 24 किलोमीटर की दूरी पर है. ये पूरा क्षेत्र ही बुनियादी सेवाओं समेत विकास कार्यों से अछूता है. पुल की मांग को लेकर न तो सरकार ने ध्यान दिया और न ही इस क्षेत्र से चुन कर विधानसभा में पहुंचते रहे विधायकों ने. ऐसे में हर साल ग्रामीणों को नदी पर बांस का पुल बनाना पड़ता है. नदी को पार करने का ग्रामीणों के पास यही अकेला जरिया है.

छात्र-छात्राओं को भी स्कूल-कालेज जाने के लिए इसी बांस के पुल से गुजरना होता है. पक्की सड़क नहीं होने की वजह से अगर किसी शख्स को बीमार पड़ने पर अस्पताल ले जाने की जरूरत होती है तो भी ग्रामीणों को काफी दिक्कत झेलनी पड़ती है.
स्थानीय संगठन वीर लाचित सेना के अध्यक्ष श्रीनखाल चालिहा कहते हैं, 'ये दुर्भाग्य की बात है कि लोगों को देश की आजादी के 74 साल बाद भी नदी पार करने के लिए बांस के पुल का सहारा लेना पड़ता है.'
चालिहा ने कहा, 'बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार डिजिटल इंडिया की बात करती है, लेकिन लोरापुटा, नाओजान के लोग अब भी बांस के पुल का इस्तेमाल कर रहे हैं. सरकार को इन लोगों के लिए कुछ करना चाहिए अन्यथा सरकार को बड़े विरोध प्रदर्शन का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए.'
नाओजान की रहने वाली एक लड़की ने कहा, 'ये पूरा इलाका बाढ़ संभावित क्षेत्र है, गांव वाले हर सरकार से नदी पर पुल बनाने का आग्रह करते रहे हैं. चुनाव के वक्त राजनीतिक दल तमाम वादे करते हैं लेकिन गांव वालों की समस्या दूर नहीं हो सकी. हम राज्य सरकार से आग्रह करते हैं कि इस दिशा में तत्काल कोई कदम उठाए.'