साल 2002 में गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगों और उसके पहले व बाद में बनी परिस्थितियों पर बीबीसी की बनाई विवादास्पद डॉक्यूमेंट्री का मामला कॉलेज, यूनिवर्सिटीज के ऑडिटोरियम और राजनीतिक दलों व उनसे जुड़े छात्र संगठनों की स्क्रीनिंग से आगे निकलता हुआ अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है. इस मामले में एक जनहित याचिका दायर कर बीबीसी के बनाए दो भागों वाली इस डॉक्यूमेंट्री 'इण्डिया: द मोदी क्वेश्चन' पर कथित पाबंदी लगाने के केंद्र सरकार के आदेश को चुनौती दी गई है.
वकील मनोहर लाल शर्मा ने यह जनहित याचिका दाखिल कर इस डॉक्यूमेंट्री पर भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से 21 जनवरी, 2023 को जारी आदेश को मनमाना, दुर्भाग्यपूर्ण और असंवैधानिक बताया. साथ ही वकील ने अदालत से मांग की बैन हटाने का निर्देश दिया जाए.
'कोर्ट देखे डॉक्यूमेंट्री...'
याचिका में कोर्ट से गुहार लगाई गई है कि देशभर में विवादों की जड़ बनी बीबीसी की इस डॉक्यूमेंट्री के दोनों पार्ट कोर्ट में मंगाकर उनमें मौजूद सामग्री की तथ्य आधारित गहन जांच पड़ताल हो. इसके बाद कोर्ट उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दे, जो 2002 के गुजरात दंगों के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर जिम्मेदार थे.
अर्जी में उठाई गईं ये मांगें
वकील मनोहर लाल शर्मा ने अपनी अर्जी के बारे में बताया कि इसमें कुछ संवैधानिक अधिकारों से जुड़े सवाल हैं. मसलन ये कि कोर्ट यह तय कर दे कि क्या देश के नागरिकों को संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (2) के तहत दिए गए अभिव्यक्ति के अधिकार के तहत 2002 के गुजरात दंगों पर समाचार, तथ्य और रिपोर्ट देखने का अधिकार है? क्या केंद्र सरकार प्रेस की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार पर अंकुश लगा सकती है? क्या राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 352 का प्रयोग करते हुए आपातकाल घोषित किए बिना, केंद्र सरकार द्वारा आपातकालीन प्रावधानों को लागू कर सकते हैं?
वकील बोले- डॉक्यूमेंट्री से मिल सकता है न्याय
इसके अलावा अर्जी में दावा किया गया है कि बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री में ऐसे रिकॉर्डेड तथ्य और सबूत हैं जिनका उपयोग पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए किया जा सकता है. शर्मा ने अपनी अर्जी में कहा है कि 21 जनवरी को केंद्र ने विवादास्पद बीबीसी डॉक्यूमेंट्री "इंडिया: द मोदी क्वेश्चन" के लिंक साझा करने वाले कई YouTube वीडियो और ट्विटर पोस्ट को ब्लॉक करने के निर्देश जारी किए हैं.