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18 या 16 साल... सहमति से सेक्स भी कब बन जाता है अपराध? उम्र घटाने पर क्यों है बहस

कानूनन सहमति से सेक्स की उम्र 18 साल है. इसका मतलब हुआ कि अगर 18 साल की कम उम्र की लड़की के साथ भले ही उसकी सहमति से संबंध बनाए गए हों, उसे अपराध ही माना जाएगा. हालांकि, अदालत से लेकर संसद तक अब बहस हो रही है कि इस उम्र को घटाकर 16 साल कर देना चाहिए. जानिए- आखिर क्या है ये पूरा मामला?

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भारत में सहमति से सेक्स की उम्र 18 साल है. (प्रतीकात्मक तस्वीर- Pixabay)
भारत में सहमति से सेक्स की उम्र 18 साल है. (प्रतीकात्मक तस्वीर- Pixabay)

सहमति से सेक्स की उम्र क्या होनी चाहिए? 18 या 16 साल? अदालतों से लेकर संसद तक इस बात पर बहस हो रही है. सवाल है कि क्या अब सहमति से सेक्स करने की उम्र घटा देनी चाहिए. हालांकि, संसद में ही सरकार साफ कर चुकी है कि उम्र नहीं घटाई जाएगी. 

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गुरुवार को राज्यसभा में एनसीपी सांसद वंदना चव्हाण ने सरकार से मांग की कि पॉक्सो एक्ट में संशोधन किया जाए और सहमति से सेक्स की उम्र को घटाया जाए. उन्होंने कहा कि कई अदालतें कह चुकी हैं कि पॉक्सो एक्ट का मकसद नाबालिगों को यौन हिंसा से बचाना है, न कि किशोरों के बीच सहमति से बने रोमांटिक संबंधों को अपराध बना देना.

पॉक्सो यानी प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट. इसे 2012 में लागू किया गया था. इस कानून के तहत 18 साल से कम उम्र के लोगों को 'बच्चा' माना गया है. इसी कानून में सहमति से सेक्स की उम्र 18 साल है. अगर 18 साल से कम उम्र की कोई लड़की अपनी मर्जी या सहमति से संबंध बनाती है तो भी उसकी सहमति 'मायने' नहीं रखती. ऐसे मामलों में लड़के को गिरफ्तार कर लिया जाता है और उस पर रेप का केस चलाया जाता है.

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पॉक्सो कानून में पहले मौत की सजा नहीं थी. 2019 में इसमें संशोधन कर मौत की सजा का प्रावधान किया गया. इस कानून के तहत उम्रकैद की सजा मिली है तो दोषी को जिंदगी भर जेल में ही रहना होगा. इसका मतलब हुआ कि दोषी जिंदा बाहर नहीं आ सकता.

अदालतें उठा चुकीं हैं सवाल...

13 नवंबर को 17 साल की लड़की के साथ सहमति से संबंध बनाने के मामले में गिरफ्तार हुए लड़के को जमानत देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी की थी. हाईकोर्ट ने कहा था कि पॉक्सो एक्ट का मकसद बच्चों को यौन शोषण से बचाना है, न कि किशोरों के बीच सहमति से बने रोमांटिक संबंधों को अपराध बनाना.

इससे पहले 5 नवंबर को कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी उम्र बढ़ाने पर विचार करने का सुझाव दिया था. कर्नाटक हाईकोर्ट की दो जजों की बेंच ने कहा था कि 16 साल की नाबालिग लड़कियों के प्यार करने और प्रेमी के साथ सहमति से संबंध बनाने के कई मामले सामने आए हैं. ऐसे में लॉ कमीशन को सेक्स के लिए सहमति की उम्र पर एक बार फिर विचार करना चाहिए. सुझाव देते हुए हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़की से संबंध बनाने वाले उसके प्रेमी को बरी कर दिया था.

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10 दिसंबर को एक कार्यक्रम में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने भी ऐसी ही बात कही थी. उन्होंने कहा था कि संसद को पॉक्सो एक्ट के तहत सहमति से सेक्स की उम्र पर विचार करना चाहिए. 

18 साल कैसे हुई सहमति की उम्र?

बात 1889 की है. फूलमोनी दास की उम्र 10 साल थी और उसके पति की उम्र 35 साल. पति ने उसके साथ जबरन संबंध बनाने की कोशिश की, जिससे फूलमोनी की मौत हो गई. दो साल बाद यानी 1891 में 11 साल की रुकमाबाई की भी मौत इसी कारण हो गई. 

उस समय सहमति से सेक्स की उम्र 10 साल थी. लेकिन इन दो घटनाओं ने ब्रिटिश इंडिया को सख्त कानून बनाने के लिए मजबूर किया. 1892 में इस उम्र को 10 से बढ़ाकर 12 साल कर दिया गया. ये कानून सभी महिलाओं पर लागू होता था. 

आजादी के बाद महिलाओं की ओर से कम उम्र में गर्भवती होने के दुष्प्रभावों का मामला उठाया गया. लिहाजा 1949 में इस उम्र को बढ़ाकर 15 साल कर दिया गया. फिर 1983 में क्रिमिनल लॉ में संशोधन कर सहमति की उम्र 16 साल कर दी गई.

2012 में पॉक्सो एक्ट आया और इसके तहत सहमति से सेक्स की उम्र को बढ़ाकर 18 साल कर दिया गया. ये कानून बच्चों को यौन शोषण से बचाता है. ये लड़के और लड़कियों, दोनों पर लागू होता है. यानी, 18 साल से कम उम्र के लड़के या लड़की के साथ किसी भी तरह का यौन कृत्य करना अपराध है. 

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यहां फंस जाता है पेंच...!

वैसे तो कानूनन सहमति से सेक्स की उम्र 18 साल है. लेकिन मामला अगर शादी का है तो पेंच थोड़ा फंस जाता है. 

किसी सेक्सुअल इंटरकोर्स को रेप कब माना जाएगा? इसका जिक्र इंडियन पीनल कोड (IPC) की धारा 375 में किया गया है. इसमें 7 ऐसी परिस्थितियों के बारे में बताया गया है जब सेक्सुअल इंटरकोर्स को रेप माना जाएगा.

1. महिला की इच्छा के बगैर संबंध बनाया गया हो.
2. महिला की सहमति के बिना संबंध बनाया गया हो.
3. अगर महिला को मौत या नुकसान पहुंचाने या किसी और का डर दिखाकर उससे सहमति लेकर संबंध बनाए गए हों.
4. अगर किसी महिला से शादी का झांसा देकर संबंध बनाए गए हों.
5. संबंध तब बनाए गए हों, जब किसी महिला की मानसिक स्थिति ठीक न हो या उसे कोई नशीला पदार्थ दिया गया हो या फिर महिला सहमति देने के नतीजों को समझने की स्थिति न हो. 
6. 18 साल से कम उम्र की महिला से संबंध बनाए गए हों. फिर भले ही उसकी मर्जी और सहमति ही क्यों न हो.
7. ऐसे वक्त संबंध बनाए हों, जब वो महिला सहमति देने की स्थिति में न हो.

लेकिन धारा 375 में एक अपवाद भी है. अगर पत्नी नाबालिग भी है तो भी पुरुष का उसके साथ सेक्सुअल इंटरकोर्स रेप नहीं माना जाएगा. भले ही ये संबंध जबरदस्ती या पत्नी की सहमति के बगैर ही क्यों न बने हों.

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हां, अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम है और उसके साथ संबंध बनाए जाते हैं तो ऐसे मामलों में पति को 2 साल की कैद या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है.

इसी तरह मुस्लिम पर्सनल लॉ कहता है कि अगर लड़का और लड़की प्यूबर्टी में पहुंच गए हैं, तो वो निकाह कर सकते हैं. यानी, शादी के लिए मुस्लिमों का कानूनन बालिग होना जरूरी नहीं है. 

आंकड़े क्या कहते हैं?

2012 के निर्भया गैंगरेप की घटना के बाद क्रिमिनल लॉ में संशोधन के लिए जस्टिस जेएस वर्मा की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई थी. 

इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में सहमति से सेक्स की उम्र को 16 साल ही करने की सिफारिश की थी. हालांकि, सरकार ने इस सिफारिश को नहीं माना. 

इसके इतर, भारत में 18 साल की उम्र से पहले ही संबंध बनाने के आंकड़े चौंकाते हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 के मुताबिक, 11 फीसदी महिलाओं ने 15 साल और 39 फीसदी ने 18 साल की उम्र से पहले ही संबंध बना लिए थे. 

वहीं, नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 में सामने आया था कि 20 से 24 साल की 2.3 फीसदी महिलाएं 15 साल की उम्र से पहले ही सेक्स कर चुकी थीं. जबकि, इसी उम्र की 39 फीसदी महिलाएं कभी न कभी सेक्स कर चुकी थीं. 

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एक चौंकाने वाला आंकड़ा ये भी है कि पॉक्सो एक्ट के मामलों में ज्यादातर आरोपी बरी भी हो जाते हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 में पॉक्सो एक्ट के 15,748 मामलों का ट्रायल पूरा हुआ था. इनमें से 5,079 मामलों में दोष साबित हुआ था, जबकि 10,099 मामलों में आरोपी को बरी कर दिया गया था. यानी, पॉक्सो एक्ट के 100 में से 64 मामलों में आरोपी का दोष साबित नहीं हो सका. 

हालांकि, इसके कई सारे कारण हो सकते हैं. लेकिन ज्यादातर मामले ऐसे आते हैं जिनमें लड़की के परिजनों को लड़के के साथ उसके रिश्ते का पता चल जाता है और वो लड़के के खिलाफ केस दर्ज करवा देते हैं. 2018 में बेंगलुरु की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ने एक स्टडी की थी. इसमें सामने आया था कि 16 से 18 साल की ज्यादातर लड़कियां आरोपी के खिलाफ गवाही देने से मुकर जाती हैं.

 

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