केंद्र की मोदी सरकार एक बार फिर से आंदोलन का सामना कर रही है. इस बार सेना में चार साल की भर्ती के लिए लाई गई 'अग्निपथ योजना' का विरोध हो रहा है.
उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, झारखंड, हिमाचल प्रदेश समेत 10 राज्यों में युवा सड़कों पर उतर आए हैं. कई जगहों पर ये प्रदर्शन हिंसक होते जा रहे हैं और प्रदर्शनकारी सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं. यूपी-बिहार में कई जगहों पर कई ट्रेनें जला दी गईं. बसों में भी तोड़फोड़ की जा रही है. कुछ दुकानों को भी आग के हवाले कर दिया गया.
केंद्र की अग्निपथ योजना का सबसे ज्यादा विरोध बिहार में देखने को मिल रहा है. यहां पिछले महीने भी सेना में दो साल तक भर्ती रूकी होने की वजह से युवा सड़कों पर उतर आए थे. अब जब केंद्र ने अग्निपथ योजना का ऐलान किया तो अगले ही दिन सैकड़ों युवा सड़कों पर आ गए. प्रदर्शन के चलते 38 से ज्यादा ट्रेनें रद्द हो चुकीं हैं. हाईवे जाम कर दिए गए हैं.
मोदी सरकार के 8 साल में अब तक कई बार बड़े आंदोलन का सामना कर चुकी है. कुछ आंदोलन की वजह से सरकार को अपने कदम पीछे भी लेने पड़े हैं. जानते हैं मोदी सरकार में कब-कब आंदोलन हुए?
1. 2015: भूमि अधिग्रहण अध्यादेश का विरोध
2014 में केंद्र में मोदी सरकार आने के कुछ ही महीने बाद भूमि अधिग्रहण को लेकर नया अध्यादेश लाया गया. इस अध्यादेश में जमीन अधिग्रहण के लिए किसानों की सहमति का प्रावधान खत्म कर दिया गया था. सरकार ने कई बार इस अध्यादेश को संसद में पास कराने की कोशिश की, लेकिन ये पास नहीं हो सका.
इस अध्यादेश के विरोध में किसान भी सड़क पर उतर आए थे. इसका कारण ये था कि जमीन अधिग्रहण के लिए 80 फीसदी किसानों की सहमति जरूरी है, लेकिन अध्यादेश में इस प्रावधान को हटा दिया गया था. आखिरकार 31 अगस्त 2015 को सरकार ने इस अध्यादेश को वापस लेने का ऐलान कर दिया.
2. 2016: रोहित वेमुला सुसाइड के बाद आंदोलन
17 जनवरी 2016 को रोहित वेमुला ने आत्महत्या कर ली. रोहित वेमुला हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रहे थे. आत्महत्या से पहले वेमुला ने एक चिट्ठी लिखी थी. इसमें उन्होंने फेलोशिप में देरी होने की बात कही थी.
रोहित वेमुला की सुसाइड के बाद देशभर में छात्र सड़कों पर आ गए. दिल्ली से लेकर हैदराबाद तक सड़कों पर छात्रों ने आंदोलन शुरू कर दिया और वेमुला को इंसाफ दिलाने की मांग करने लगे. आखिरकार फरवरी 2016 में सरकार ने इस मामले की जांच के लिए एक आयोग का गठन किया.
3. 2018: एससी-एसटी एक्ट को लेकर बवाल
20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट एससी-एसटी एक्ट को लेकर फैसला दिया. सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के तहत दर्ज मामलों में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा था कि सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अथॉरिटी की इजाजत के बाद ही हो सकती है.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ दलित समुदाय के लोग सड़क पर उतर आए थे. दलित समुदाय ने 2 अप्रैल 2018 को भारत बंद बुलाया. देशभर में हुए दलित आंदोलन में कई इलाकों में हिंसा हुई थी, जिसमें एक दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी.
बाद में दलित समुदाय की नाराजगी को देखते हुए मोदी सरकार ने एससी-एसटी एक्ट को पुराने स्वरूप में लाने का फैसला लिया गया. इसके लिए संसद में संशोधित कानून पास कराया गया. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस संशोधित कानून को मंजूरी दे दी.
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4. 2019-20: सीएए-एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन
पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के मकसद से मोदी सरकार नागरिकता कानून में संशोधन लेकर आई. इसके तहत इन तीन देशों के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी समुदाय के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान था.
दिसंबर 2019 में ये कानून संसद के दोनों सदनों से पास हो गया. कानून में प्रावधान था कि अगर इन तीन देशों से इन 6 धर्मों के लोग 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आकर बस गए थे, तो वो भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं.
इस कानून का देशभर में जमकर विरोध हुआ. देश के कई राज्यों में हिंसक प्रदर्शन भी हुए. दिल्ली के शाहीन बाग में महीनों तक लोग सड़कों पर बैठे रहे. कोरोना महामारी आने के बाद मार्च 2020 में शाहीन बाग में डटे लोगों को हटाया गया.
जनवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के अमल पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. हालांकि, ये कानून अभी लागू नहीं हुआ है, क्योंकि इसके नियम नहीं बने हैं. हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि कोविड खत्म होते ही सीएए को लागू कर दिया जाएगा.
5. 2020-21: सालभर चला किसान आंदोलन
सितंबर 2020 में मोदी सरकार खेती से जुड़े तीन कानून लेकर आई. इस कानून को लेकर किसानों ने विरोध शुरू कर दिया. नवंबर 2020 में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों ने दिल्ली कूच कर दिया. किसान इन तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़ गए, जबकि सरकार संशोधन करने की बात करती रही.
हजारों किसान दिल्ली की सीमाओं पर आकर डट गए. सरकार और किसानों के बीच कई बार बातचीत भी रही, लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला. जनवरी 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने इन तीनों कानूनों के अमल पर रोक लगा दी.
एक साल तक चले आंदोलन के बाद 19 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया. 1 दिसंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी तीनों कानूनों को रद्द करने वाले कानून को मंजूरी दे दी. आखिरकार 9 दिसंबर को किसानों ने आंदोलन वापस लेने की बात कही.