scorecardresearch
 

20 साल में 2543 को सुनाई गई फांसी की सजा, लेकिन 8 दोषी ही फंदे पर झूले, जानिए कितनी याचिकाएं पेंडिंग

अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट मामले में स्पेशल कोर्ट ने 49 दोषियों में से 38 को फांसी की सजा सुनाई है. 11 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है. ये पहली बार है जब एक साथ इतने दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई है.

Advertisement
X
2020 में एक साख चार दोषियों को फांसी की सजा दी गई थी. (फाइल फोटो-Getty)
2020 में एक साख चार दोषियों को फांसी की सजा दी गई थी. (फाइल फोटो-Getty)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 2001 से 2020 तक 2,543 को फांसी की सजा हुई
  • 20 साल में 5 दुष्कर्मी, 3 आतंकियों को फांसी हुई

जुलाई 2008 में अहमदाबाद में हुए सीरियल ब्लास्ट के 49 दोषियों में से 38 को फांसी की सजा सुनाई गई है. इतिहास में ये पहली बार है जब एक बार में इतने सारे दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई है. हालांकि, दोषियों की फांसी की सजा का रास्ता अभी साफ नहीं हुआ है. क्योंकि अभी उनके पास हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और फिर राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर करने का भी अधिकार है. 

Advertisement

भारत में दोषियों को फांसी की सजा सुना तो दी जाती है, लेकिन उस पर अमल बहुत ही कम होता है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि 20 साल में 2 हजार 543 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है. इनमें से ज्यादातर की सजा उम्रकैद में बदल दी गई है. सिर्फ 8 दोषियों को ही फांसी की सजा हुई है. इनमें से तीन आतंकी थे और 5 दुष्कर्मी.

20 साल में किन-किन को हुई फांसी?

14 अगस्त 2004 | धनंजय चटर्जी

- 1990 में 14 साल की बच्ची से दुष्कर्म और उसके बाद उसकी हत्या के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गई. राष्ट्रपति ने दो बार दया याचिका खारिज की. 14 अगस्त 2004 को कोलकाता की अलीपुर सेंट्रल जेल में धनंजय को फांसी पर चढ़ा दिया गया.

Advertisement

21 नवंबर 2012 | अजमल कसाब

- 26 नंबर 2008 को मुंबई पर आतंकी हमला हुआ था. इस हमले को अंजाम देने वाले सभी आतंकी मारे गए थे. एकमात्र आतंकी अजमल कसाब जिंदा पकड़ा गया था. कसाब ने राष्ट्रपति के सामने दया याचिका लगाई थी, जो खारिज हो गई थी. उसे 21 नवंबर 2012 को पुणे की यरवदा जेल में फांसी दी गई.

ये भी पढ़ें-- Ahmedabad Serial Blast: 49 में से 38 दोषियों को फांसी, 11 को आजीवन कारावास की सजा, 70 मिनट में 21 धमाके किए थे

9 फरवरी 2013 | अफजल गुरु

- 13 दिसंबर 2001 को संसद में 5 आतंकियों ने हमला किया. 9 लोगों की मौत हो गई. पांचों आतंकी भी मारे गए. संसद हमले का मास्टरमाइंड अफजल गुरु बाद में पकड़ा गया. उसने राष्ट्रपति के सामने दया याचिका लगाई, जो 3 फरवरी 2013 को खारिज हो गई. 9 फरवरी 2013 को तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई.

30 जुलाई 2015 | याकूब मेमन

- 12 मार्च 1993 को मुंबई में 12 सीरियल ब्लास्ट हुए. इसकी साजिश याकूब मेमन ने रची थी. याकूब ने दो बार राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दायर की और दोनों ही बार खारिज हो गई. उसकी फांसी रुकवाने के लिए रात 3 बजे तक सुप्रीम कोर्ट में बहस चली. याकूब को उसके जन्मदिन पर ही 30 जुलाई 2015 को फांसी दे दी.

Advertisement

20 मार्च 2020 | मुकेश, विनय, अक्षय और पवन

- 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में चलती बस में एक युवती के साथ दुष्कर्म किया गया. बाद में उसकी मौत हो गई. उसे निर्भया नाम दिया गया. निर्भया कांड के 6 दोषी थे, जिनमें एक नाबालिग था. नाबालिग 3 साल की सजा काटकर छूट गया. एक दोषी ने आत्महत्या कर ली. बाकी 4 दोषी मुकेश सिंह, विनय शर्मा, अक्षय ठाकुर और पवन गुप्ता ने अपनी फांसी रुकवाने के लिए सारी तरकीबें आजमा लीं, लेकिन टाल नहीं सके. 20 मार्च 2020 को चारों को तिहाड़ जेल में फांसी पर लटका दिया.

अब भी कई दोषी फांसी के इंतजार में...

- पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने कार्यकाल में 30 दया याचिकाएं खारिज की थीं. इनमें अजमल कसाब, अफजल गुरु और याकूब मेमन की याचिका भी शामिल है. इन तीनों को तो फांसी हो गई. 

- राष्ट्रपति सचिवालय के मुताबिक, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अब तक 6 दया याचिकाएं खारिज कर चुके हैं. इनमें से 4 निर्भया के दोषियों की थी और उन चारों को फांसी हो गई. जबकि, 7 लोगों को जिंदा जलाने वाले जगत राय की याचिका अप्रैल 2018 में ही खारिज हो गई थी. 16 जुलाई 2020 को राष्ट्रपति कोविंद ने संजय की याचिका खारिज की थी. 

Advertisement

- 8 फरवरी 2022 को दया याचिकाओं से जुड़े सवाल पर गृह मंत्रालय की ओर से बताया गया था कि राष्ट्रपति के पास अभी 4 दया याचिकाएं लंबित हैं.

ये भी पढ़ें-- Ahmedabad Blast: देखें- 38 दोषियों की लिस्ट जिन्हें सुनाई गई फांसी की सजा

4 महिलाओं की दया याचिका भी खारिज हो चुकी

- 10 साल में 4 महिलाओं की दया याचिका भी खारिज हो चुकी है. इनमें से दो बहनें थीं. इन दोनों बहनों के नाम रेणुका शिंदे और सीमा गोवित है. इन्होंने अपनी मां अंजना गोवित के साथ मिलकर 1990 से 1996 के बीच पुणे में 42 बच्चों की हत्या की थी. 1998 में अंजना की बीमारी से मौत हो गई. इन दोनों बहनों को फांसी की सजा हुई. इन्होंने अक्टूबर 2013 में राष्ट्रपति के पास दया याचिका लगाई थी, जो जुलाई 2014 में खारिज हो गई थी.

- इनके अलावा सोनिया की दया याचिका भी खारिज हो चुकी है. सोनिया हरियाणा की बरवाला सीट से निर्दलीय विधायक रहे रेलू राम पुनिया की बेटी थीं. सोनिया ने अपने पति संजीव के साथ मिलकर पिता रेलू राम समेत परिवार के 8 लोगों की हत्या कर दी थी. जून 2013 में संजीव और सोनिया दोनों की दया याचिका खारिज हो चुकी है, लेकिन अभी तक फांसी नहीं हुई है.

Advertisement

- वहीं, चौथी महिला का नाम शबनम है. शबनम ने अप्रैल 2008 में प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अपने ही परिवार के 7 लोगों की हत्या कर दी थी. शबनम और सलीम की दया याचिका अगस्त 2016 में खारिज हो चुकी है. 

कहां अटक जाती है फांसी की सजा?

- 'रेप लॉज एंड डेथ पेनाल्टी' के लेखक और सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता बताते हैं कि राष्ट्रपति की ओर से दया याचिका खारिज होने के बाद भी फांसी की सजा इसलिए नहीं हुई हो, क्योंकि हो सकता है कि मामला फिर से अदालती दायरे में आ गया हो, जिस कारण डेथ वारंट जारी न हो सका हो.

- विराग गुप्ता बताते हैं कि कई बार फांसी की सजा को बाद में उम्रकैद में भी बदल दिया जाता है. वो बताते हैं कि 1993 के दिल्ली ब्लास्ट मामले में दोषी देवेंदर पाल सिंह भुल्लर की दया याचिका खारिज हो गई थी, लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उसकी फांसी की सजा को उम्रकैद में इस आधार पर बदल दिया क्योंकि उसकी दया याचिका खारिज होने में 8 साल का वक्त लग गया था.

- वो बताते हैं कि 2021 में सुप्रीम कोर्ट में फांसी की सजा के 9 मामले आए जिनमें से 4 की सजा को कम करके उम्रकैद में बदल दिया गया और 4 की सजा खत्म कर दी गई. 

Advertisement

- विराग गुप्ता ये भी बताते हैं कि अहमदाबाद बम ब्लास्ट मामले में इतने सारे दोषियों को फांसी की सजा भले ही हो गई हो, लेकिन फांसी की सजा पर हाई कोर्ट की मुहर जरूरी है. उसके बाद ही दोषियों को फांसी दी जा सकेगी.

 

Advertisement
Advertisement