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साल 2019 में प्रदूषित हवा दुनिया भर में तकरीबन पांच लाख नवजात बच्चों की अकाल मौत का कारण बनी. इनमें से हर चार में से करीब एक मौत भारत में हुई. वायु प्रदूषण से संबंधित खतरों पर आई एक नई रिपोर्ट में ऐसा कहा गया है.
स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट 2020 के मुताबिक, 2019 में कुल बच्चों की मौतों में आधे से ज्यादा बाहरी वायु प्रदूषण- पीएम 2.5 के कारण हुईं. (पीएम 2.5 हवा में मौजूद बेहद महीन कण होते हैं जो रक्तप्रवाह में प्रवेश करते हैं और फेफड़ों में जम जाते हैं.) बाकी मौतें घरेलू वायु प्रदूषण से जुड़ी हैं जो खाना पकाने के लिए कोयला और लकड़ी के इस्तेमाल से फैलता है.
पिछले साल भारत में 16.7 लाख से ज्यादा लोग जहरीली हवा के कारण मारे गए. इनमें से 7 फीसदी ऐसे बच्चे थे जो अपने जन्म के पहले महीने में थे. भारत में जितने नवजात शिशुओं की मौत होती है, उनमें से करीब 21 फीसदी मौतों के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार है. भारत में करीब 1.16 लाख नवजात शिशुओं की मौतें जहरीली हवा से जुड़ी हैं. हालांकि, पिछले 10 वर्षों में भारत में घरेलू वायु प्रदूषण घटा है. 2010 में ये 73 फीसदी था जो 2019 में घटकर 61 फीसदी हो गया है.
बच्चों के विकास को बाधित करती है जहरीली हवा
विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदूषित हवा गर्भावस्था और शिशु मृत्यु दर पर बुरा असर डालती है. डॉ. जीसी खिलनानी ने इंडिया टुडे को बताया, “हवा की खराब गुणवत्ता गर्भवस्था के दौरान बच्चे के विकास पर असर डालती है जो कई जटिलताओं को जन्म देती है. इसमें समय से पहले जन्म या बड़े हेल्थ काम्प्लीकेशन शामिल हैं जिसके चलते नवजात शिशुओं की मृत्यु हो सकती है.”
गर्भावस्था के दौरान मांओं का प्रदूषित हवा के संपर्क में आना हानिकारक हो सकता है क्योंकि इसकी वजह से बच्चे समय से पहले पैदा हो सकते हैं या उनका वजन कम हो सकता है, जिससे उनकी मौत का खतरा बढ़ जाता है.
रिपोर्ट में कहा गया है, “जन्म के समय बच्चे का वजन अगर 2,500 ग्राम (5.5 पाउंड) से कम है तो उसे लो बर्थ वेट यानी कम वजन के रूप में परिभाषित किया जाता है. इसी तरह अगर बच्चा 37 सप्ताह के पहले पैदा हो जाए तो उसे प्रीटर्म बर्थ के रूप में परिभाषित किया जाता है. सामान्य गर्भ 38 से 40 सप्ताह का होता है जिस दौरान बच्चा मां के गर्भ में विकसित होता है. ये स्थितियां आपस में जुड़ी हुई हैं, क्योंकि बहुत जल्दी पैदा होने वाले बच्चे अक्सर छोटे होते हैं और उनमें ऐसी बीमारियों की संभावना ज्यादा होती है जो बाल मृत्यु दर का कारण बनती हैं. ऐसे बच्चों में लंबी अवधि की विकलांगता का भी खतरा रहता है.”
भारत में PM 2.5 का स्तर मानक से 8 गुना ज्यादा
भारत उन शीर्ष 10 देशों में शामिल है जहां 2019 में वायु प्रदूषण का स्तर खतरनाक था. भारत में आउटडोर वायु प्रदूषक PM2.5 की वार्षिक औसत सांद्रता 83.2 माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर दर्ज की गई. ये विश्व स्वास्थ्य संगठन की एयर क्वालिटी गाइडलाइन 10 μg/m3 से आठ गुना ज्यादा है और दुनिया में सबसे ज्यादा है. भारत के पड़ोसी देश- बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल भी शीर्ष 10 देशों में शामिल हैं जहां की हवा में प्रदूषण का स्तर सबसे खराब की श्रेणी में है.
हेल्थ इफैक्ट्स इंस्टीट्यूट (HEI) के प्रेसीडेंट डैन ग्रीनबाम का कहना है, “ये नए तथ्य ये बताते हैं कि दक्षिण एशिया और सब-सहारन अफ्रीका में पैदा हुए शिशुओं के लिए वायु प्रदूषण खास तौर पर खतरनाक है. हालांकि, खराब गुणवत्ता वाले घरेलू ईंधन पर निर्भरता में धीमी गति से कमी आई है, फिर भी इन ईंधनों से होने वाला वायु प्रदूषण सबसे कम उम्र के बच्चों की मौत का प्रमुख कारण बना हुआ है.”
स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट 2020 के मुताबिक, भारत में बाहरी और घरेलू वायु प्रदूषण साल भर में 16.7 लाख से ज्यादा लोगों की मौत का कारण बना. इसमें सभी आयुवर्ग के लोग शामिल हैं. हालांकि, भारत ने 2024 तक PM2.5 के स्तर को नियंत्रित करने के लिए 2019 में एक नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम शुरू किया है.
लेकिन ये रिपोर्ट आगाह करती है, “इस पहल की आलोचना की गई कि इसे कोई कानूनी समर्थन नहीं है और यह शहरों पर केंद्रित नहीं है. अप्रैल 2020 में भारत ने वाहनों से होने वाले उत्सर्जन में कमी लाने के लिए भारत स्टेज VI (BS-VI) शुरू किया, जिसका अगले कुछ वर्षों में लाभ मिल सकता है. हालांकि, कोरोना महामारी ने ये चिंता बढ़ा दी है कि इस कार्यक्रम में भी देरी हो सकती है.”