समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव को सीबीआई ने समन जारी किया है. उन्हें ये समन अवैध खनन मामले में जारी किया गया है. सीबीआई ने इस मामले में अखिलेश को गुरुवार को पूछताछ के लिए बुलाया है. अखिलेश को बतौर गवाह पेश होने के लिए कहा गया है.
सीबीआई ने अखिलेश को दिल्ली स्थित दफ्तर में बुलाया है. इस मामले में सीबीआई ने एफआईआर 2019 में दर्ज की थी, लेकिन ये मामला उस वक्त का है, जब अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे.
यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान फतेहपुर, देवरिया, शामली, कौशांबी, सहारनपुर, सिद्धार्थनगर और हमीरपुर में अवैध खनन के मामले सामने आए थे. 2 जनवरी 2019 को सीबीआई ने 11 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया था.
आरोप है कि 2012 से 2016 के दौरान सरकारी अफसरों ने अन्य आरोपियों के साथ मिलकर हमीरपुर जिले में खनिजों के अवैध खनन की अनुमति दी थी. इतना ही नहीं, माइनिंग पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के प्रतिबंध के बावजूद अवैध रूप से लाइसेंस को रिन्यू किया गया था.
अखिलेश यादव कैसे फंस गए?
2016 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देश पर सीबीआई ने अवैध खनन से जुड़े मामलों की जांच शुरू की थी. 2019 में सीबीआई ने उत्तर प्रदेश और दिल्ली के कई इलाकों में तलाशी भी ली थी.
सीबीआई के मुताबिक, तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव ने ई-टेंडरिंग प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए 17 फरवरी 2013 को एक ही दिन में 13 माइनिंग प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दे दी थी.
कथित तौर पर मुख्यमंत्री कार्यालय से हरी झंडी मिलने के बाद हमीरपुर की डीएम बी चंद्रकला ने माइनिंग की मंजूरी दे दी.
2012-13 में अखिलेश यादव के पास खनन विभाग भी था. इस वजह से इस मामले में उनकी भूमिका संदेह के घेर में है. उनके बाद गायत्री प्रजापति खनन मंत्री बन गए थे. एक रेप केस में गायत्री प्रजापति को 2017 में गिरफ्तार किया गया था.
अब तक की जांच में क्या मिला?
जनवरी 2019 में सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की थी, जिसमें तीन सरकारी अफसरों समेत 11 लोगों को आरोपी बनाया गया है. एफआईआर में तीन अफसरों हमीरपुर की तत्कालीन डीएम बी. चंद्रकला, हमीरपुर के माइनिंग ऑफिसर मोइनुद्दीन और खनन विभाग के कलर्क रामाश्रय प्रजापति को आरोपी बनाया गया है.
इनके अलावा रमेश मिश्रा, दिनेश कुमार मिश्रा, अंबिका तिवारी, सत्यदेव दीक्षित और उनके बेटे संजय दीक्षित, राम अवतार सिंह, करण सिंह और आदिल खान को भी आरोपी बनाया गया है. ये सभी लीजहोल्डर यानी पट्टा धारक थे.
एफआईआर के मुताबिक, इन 11 लोगों ने अज्ञात सरकारी अफसरों के साथ मिलकर यूपी में खनिजों के अवैध खनन की अनुमति दी थी. इससे सरकारी खजाने को नुकसान हुआ और खुद को अनुचित लाभ पहुंचा.
जांच से पता चला कि इन सरकारी कर्मचारियों ने अवैध रूप से नए पट्टे दिए, मौजूदा पट्टों को रिन्यू किया और मौजूदा पट्टा धारकों को ई-टेंडरिंग की प्रक्रिया का पालन किए बिना खनन की अनुमति दी.
अब तक की जांच में ये भी सामने आया कि खनिजों का उत्खनन करने, खनिजों की चोरी करने और पट्टा धारकों के साथ-साथ खनिजों का लाने-ले जाने वाले वाहनों के ड्राइवरों से उगाही भी की गई.
हाईकोर्ट ने क्या कहा था?
अवैध खनन का ये मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट तक पहुंचा था. 27 जुलाई 2016 को हाईकोर्ट ने इस मामले में एक आदेश जारी किया था. हाईकोर्ट ने कहा था कि प्रतिबंध के बावजूद अवैध तरीके से खनन जारी था.
तब हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि इस मामले में निश्चित रूप से कार्रवाई करने की जरूरत है, क्योंकि प्राकृतिक संसाधनों को खुले तौर पर लूटने की अनुमति नहीं दी जा सकती.
हाईकोर्ट ने इस पूरे मामले की सीबीआई जांच कराने का आदेश दिया था. साथ ही सीबीआई को ये भी आदेश दिया था कि वो इस बात की जांच करे कि क्या राज्य सरकार के अफसरों की मिलीभगत से अवैध खनन किया जा रहा है या नहीं.