मणिपुर में लंबे समय से भड़की हिंसा की आग थमने का नाम नहीं ले रही है. इसमें 100 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है, जबकि सैकड़ों लोग घायल हुए हैं. वहीं हजारों लोग बेघर हो गए हैं, जो राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं. इस सबके बीच अमेरिका ने भी मणिपुर में शांति बहाली के लिए मदद की पेशकश की है. भारत में अमेरिकी राजदूत ने गुरुवार को कहा कि मणिपुर में हिंसा एक मानवीय समस्या है और उन्होंने पूर्वोत्तर राज्य में शांति बहाल होने की प्रार्थना की.
कोलकाता में अमेरिकन सेंटर में प्रेस कांफ्रेंस के दौरान अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने कहा, "मुझे पहले मणिपुर के बारे में बोलने दीजिए. हम वहां शांति के लिए प्रार्थना करते हैं. जब आप हमसे संयुक्त राज्य अमेरिका की चिंता के बारे में पूछते हैं, तो मुझे नहीं लगता कि यह कोई राजनीतिक समस्या है. मुझे लगता है कि यह मानवीय समस्या है.
'चिंता करने के लिए हमें भारतीय होने की जरूरत नहीं'
उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि जब हम बच्चों और व्यक्तियों को उस तरह की हिंसा में मरते हुए देखते हैं जो हम (मणिपुर में) हो रही है तो हमें इसकी चिंता करने के लिए भारतीय होने की ज़रूरत नहीं है. हम जानते हैं कि शांति कई अन्य अच्छी चीजों के लिए मिसाल है. यहां पूर्वोत्तर और पूर्व में कई अन्य अच्छी चीजें हैं और वे शांति के बिना जारी नहीं रह सकतीं."
मणिपुर में निवेश की पेशकश
अमेरिकी सहायता की पेशकश करते हुए उन्होंने आगे कहा, "अगर पूछा गया तो हम किसी भी तरह से सहायता करने के लिए तैयार हैं. हम जानते हैं कि यह एक भारतीय मामला है और हम शांति के लिए प्रार्थना करते हैं और यह जल्दी होगा. क्योंकि अगर वे (मणिपुर के लोग) शांति कायम करते हैं हम अधिक सहयोग, अधिक परियोजनाएं, अधिक निवेश ला सकते हैं."
'उत्तर-पूर्व राज्य अमेरिका के लिए मायने रखते हैं'
उन्होंने कहा कि एक बहुत स्पष्ट संदेश जो मैं भेजना चाहता हूं वह यह है कि भारत के पूर्व और भारत का उत्तर-पूर्व राज्य अमेरिका के लिए मायने रखते हैं. यहां के लोग, यहां की जगहें, इनकी क्षमता और इनका भविष्य हमारे लिए मायने रखते हैं.
अमेरिकी राजदूत को कांग्रेस ने दी नसीहत
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने भारत में अमेरिकी राजदूत के बयान पर प्रतिक्रिया दी है. मनीष तिवारी ने कहा, सार्वजनिक जीवन के 4 दशकों में जहां तक मुझे याद है, मैंने कभी किसी अमेरिकी राजदूत को भारत के आंतरिक मामलों के बारे में इस तरह का बयान देते नहीं सुना है. हमने दशकों से पंजाब, जम्मू-कश्मीर, उत्तर पूर्व में चुनौतियों का सामना किया और चतुराई और बुद्धिमत्ता से उन पर विजय प्राप्त की. मुझे संदेह है कि क्या नए अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी अमेरिका-भारत संबंधों के जटिल और यातनापूर्ण इतिहास और हमारे आंतरिक मामलों में कथित या वास्तविक, नेक इरादे या दुर्भावनापूर्ण हस्तक्षेप के बारे में हमारी संवेदनशीलता से परिचित है.
3 मई से शुरू हुई हिंसा
बता दें कि अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में 3 मई को पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' आयोजित किए जाने के बाद राज्य में पहली बार हिंसा भड़क उठी. अब तक 100 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और कई सौ लोग घायल हुए हैं. वहीं हजारों लोगों ने राहत शिविरों में शरण ली है.
मैतेई क्यों मांग रहे जनजाति का दर्जा?
- मणिपुर में मैतेई समुदाय की आबादी 53 फीसदी से ज्यादा है. ये गैर-जनजाति समुदाय है, जिनमें ज्यादातर हिंदू हैं. वहीं, कुकी और नगा की आबादी 40 फीसदी के आसपास है.
- राज्य में इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में ही बस सकते हैं. मणिपुर का 90 फीसदी से ज्यादा इलाकी पहाड़ी है. सिर्फ 10 फीसदी ही घाटी है. पहाड़ी इलाकों पर नगा और कुकी समुदाय का तो घाटी में मैतेई का दबदबा है.
- मणिपुर में एक कानून है. इसके तहत, घाटी में बसे मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी इलाकों में न बस सकते हैं और न जमीन खरीद सकते हैं. लेकिन पहाड़ी इलाकों में बसे जनजाति समुदाय के कुकी और नगा घाटी में बस भी सकते हैं और जमीन भी खरीद सकते हैं.
- पूरा मसला इस बात पर है कि 53 फीसदी से ज्यादा आबादी सिर्फ 10 फीसदी इलाके में रह सकती है, लेकिन 40 फीसदी आबादी का दबदबा 90 फीसदी से ज्यादा इलाके पर है.