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कर्नाटक के बाद अब तमिलनाडु को Amul से क्या दिक्कत है?

दूध पर तमिलनाडु सरकार और केंद्र क्यों आमने-सामने आ गए हैं, सीट बंटवारे को लेकर एकनाथ शिंदे गुट की शर्तों को क्या BJP मानेगी, यूक्रेन ने क्या बखमुत को अब पूरी तरह खो दिया है और F16 से लड़ाई कितनी बदलेगी? सुनिए 'आज का दिन' में.

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amul vs aavin
amul vs aavin

दो राज्यों के बीच ज़मीन और पानी को लेकर विवाद की ख़बरें तो आपने अक्सर सुनी होगी, लेकिन दूध और इससे बने प्रोडक्ट्स के लिए लड़ना नई बात है. पहली बार हमने ये कर्नाटक में देखा जहां नंदनी और अमूल के बीच की लड़ाई चुनावी मुद्दा बना, घमसान ऐसी की पार्टियों के मैनिफेस्टो तक में ये बात जा पहुंची, ख़ैर, अब ये और आगे बढ़ कर तमिलनाडु तक चली गई है. वहां ये लड़ाई अमूल और आविन के बीच की है. राज्य के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने इसको लेकर गृहमंत्री अमित शाह को पत्र भी लिखा है और कहा है कि अमूल राज्य में फेयर कॉम्पिटिशन और व्हाइट रिवोल्यूशन यानी स्वेत क्रांति की भावना के ख़िलाफ़ जा कर काम कर रही है, जिससे राज्य की कॉपरेटिव कंपनी आविन को नुकसान पहुंच रहा है.

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 अपने लेटर में स्टालिन ने ये कहा है कि अब तक अमूल अपने प्रोडक्ट्स को आउटलेट्स पर बेच रहा था लेकिन अब वो अपने सहायक संस्थान के ज़रिए तमिलनाडु में दूध भी ख़रीदने लगा है. भारत में एक नियम रहा है कि ऐसी कोऑपरेटिव सोसाइटीज; सहकारियां समितियां एक दूसरे के क्षेत्र में दखल नहीं देती.फिर राज्य में अमूल और आविन के बीच का विवाद कैसे शुरु हुआ और आविन-अमूल के बिज़नेस मॉडल में अंतर क्या है? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें. 

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सबसे अधिक लोकसभा की सीटें उत्तरप्रदेश में हैं; 80. ठीक बात है. लेकिन उसके बाद दूसरे नम्बर पर कौन सा राज्य है? बिहार, पश्चिम बंगाल या कोई और? 48 सांसदों को सदन भेजने वाले महाराष्ट्र को इस कड़ी में दूसरा मक़ाम हासिल है. और यहां एकनाथ शिंदे की बगावत, शिवसेना के असली वारिस वे हैं; जैसे दावे, दूसरी ओर कांग्रेस, एनसीपी और उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली पार्टी के साथ आने से पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में इस बार मामला अधिक दिलचस्प हो गया है. सीट बंटवारे को लेकर जो बात अब तक मन में थी, वो अब ज़बान पर आ गई है.

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खींचतान फ़िलहाल महीन है, सब अपने बाड़े में बैठकर अपनी मांगें दर्ज़ करा रहे हैं. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना ने तो एक प्रस्ताव भी पारित किया है जिसमें उन्होंने ख़ुद को भाजपा का नेचुरल अलाई; स्वाभाविक साझेदार ख़ुद को बताया है. और इसी के तहत आगामी लोकसभा चुनावों के लिए बीजेपी - शिवसेना सीट बंटवारे के पुराने फॉर्मूले के तहत, 48 सीटों में से 22 सीटों पर चुनाव लड़ने की मांग कर दी है.  क्या बीजेपी ये रिस्क लेगी, एकनाथ शिंदे गुट की शर्तों को क्या उसी तरह मानेगी जैसा वो पहले शिवसेना के साथ निभाते आई है और शिंदे इतनी आक्रामक तरीके से क्यों बैटिंग कर रहे हैं? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें.

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जिस वजह से आटा महंगा हो गया, समूची दुनिया में महंगाई बेतहाशा बढ़ी, दुनिया की सप्लाई चेन बिगडी, अर्थव्यवस्था सुस्ती में चली गई, वो रूस-यूक्रेन युद्ध आज भी, अब भी जारी है. कोई दिन नहीं बीतता जब यूक्रेन में कोई धमाका न हो, किसी की जान न जाए. कीव, खारकीव, लवीव, ओडेसा, जपरोजिया, खेरसन, ये उन शहरों के नाम हैं जो इस लड़ाई में बहुत हद तक तबाह हो चुके हैं. कल रात, इस सिलसिले में एकसाथ कई घटनाक्रम हो रहे थे. इधर रूस की प्राइवेट आर्मी- वैगनर ग्रुप जो कई दिनों से दावा कर रही थी कि उन्होंने यूक्रेन के बेहद अहम बखमुत पर कब्जा कर लिया है और अब वे उसे रूसी सेना के हवाले कर रहे हैं. तो उधर यूक्रेन अब भी इस बात पर अड़ा हुआ था कि बखमुत अब भी पूरी तरह से उन्होंने नहीं खोया है. इन सब क्लेम्स, काउंटर क्लेम्स के बीच बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुलाशेंको, जो की राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बेहद विश्वसनीय सहयोगी हैं, उन्होंने रात कल ये दावा कर दिया कि रूस के कुछ बेहद ही टैक्टिकल न्यूक्लियर हथियारों को बेलारूस तैनात किया जा रहा. फिर क्या, यूक्रेन और यूरोप से इसे बड़ा ख़तरा बताते हुए बयान आने लगे. अभी दो एक दिन ही तो हुए हैं जब G-7 सम्मिट से अपने सहयोगियों को मनाकर, भारी हथियार, गोला बारूद और F-16 का वादा लेकर प्रेसिडेंट व्लादिमीर ज़ेंलेंस्की यूक्रेन लौटे हैं. लौटते ही बखमुत पर उनके कंट्रोल खोने की बात एक बड़ा सेटबैक है. रूसी सोर्स और जो वेस्टर्न सोर्स है, दोनों को एनालाइज करें तो क्या रूस का पूरी तरह बखमुत पर कब्ज़ा हो गया है या ये किसी तरह का पप्रोपेगेंडा है और बखमुत क्यों इतना सिग्निफिकेन्ट हो गया था, एक तरह से देखें तो नाक की लड़ाई इसको रूस ने बना लिया था? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें.

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