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कर्नाटक में धर्मांतरण पर लगेगी रोक? विधान परिषद में पास हुआ एंटी-कन्वर्जन बिल

कर्नाटक की बीजेपी शासित सरकार ने विधान परिषद में एंटी-कन्वर्जन बिल पारित कर दिया है. जब इस बिल को सदन में पटल पर रखा गया, तो काफी हंगामा हुआ. विपक्षी दल ने कांग्रेस ने इसे संविधान विरोधी करार दिया है.

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई (फाइल फोटो)
कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई (फाइल फोटो)

कर्नाटक विधान परिषद ने गुरुवार को एक धर्मांतरण-रोधी विधेयक (एंटी-कन्वर्जन बिल) पारित कर दिया. विपक्ष के भारी हंगामे के बीच पारित हुए इस विधेयक को कांग्रेस ने संविधान विरोधी करार दिया. इसके विरोध में उसने सदन से वॉकआउट भी कर दिया. 

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मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई की बीजेपी सरकार ने विधान परिषद में आज इस विधेयक को पटल पर रखा, बहस के बाद इसे पारित भी कर दिया गया.

गृहमंत्री ने रखा सदन में प्रस्ताव

बीजेपी ने गुरुवार को सदन में जो विधेयक पारित कराया, वो जबरन धर्मांतरण पर रोक लगाता है. राज्य के गृहमंत्री अरगा जनेन्द्र ने इसे सदन में पटल पर रखा. कर्नाटक राज्य विधान परिषद में बीजेपी के अब 41 सदस्य हैं. बीजेपी इस विधेयक को 2021 में ही लाई थी, लेकिन तब इसे विधान परिषद में नहीं रखा गया था, क्योंकि तब उसके 32 सदस्य थे, जो बहुमत से 6 कम थे. तब राज्य सरकार ने इसे अध्यादेश के तौर पर पारित किया था.

राज्य की कानून व्यवस्था होती है खराब

विधेयक में लुभाकर, जबरदस्ती, बलपूर्वक, धोखाधड़ी और बड़े पैमाने पर सामूहिक धर्मांतरण को गैर-कानूनी बताया गया है. इसमें जबरदस्ती धर्मांतरण के लिए 3 साल से लेकर 5 साल तक कैद और 25,000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान किया गया है. विधेयक में नाबालिगों, महिलाओं, एससी और एसटी लोगों के धर्मांतरण पर 3 से 10 साल की कैद और  50,000  रुपये के जुर्माने का प्रावधान है. वहीं सामूहिक धर्मांतरण पर 3 से 10  साल की जेल और 1 लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान है.

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संवैधानिक अधिकार कम कर रही सरकार

कांग्रेस के विधायक प्रियांक खड़गे ने कहा कि सरकार नागरिकों के संवैधानिक अधिकार को कम कर रही है. ये संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. राज्य सरकार के पास ऐसा कोई डेटा नहीं है जो राज्य में जबरन धर्मांतरण की संख्या बताता हो.

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 में नागरिकों के धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है. इसमें अनुच्छेद-25 जहां अपनी इच्छा से धर्म के आचरण और प्रसार का अधिकार देता है, तो अनुच्छेद-26 धार्मिक संस्थान बनाने, धर्म के मामले स्वयं सुलझाने इत्यादि का अधिकार देता है. वहीं अनुच्छेद-27 धार्मिक कार्यों को कर से मुक्त रखने और अनुच्छेद-28 धर्म विशेष के शैक्षणिक संस्थान चलाने की अनुमति भी देता है.

(एजेंसी के इनपुट के साथ)

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