उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एंटी-नेशनल नैरेटिव को कोरोना वायरस की तरह बताया है. धनखड़ ने कहा कि हम में से कुछ सुनियोजित तरीके से या नासमझी की वजह से एंटी-नेशनल नैरेटिव को बढ़ाने में आनंद लेते हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए, आप इसका विरोध कीजिए. यह एक कोविड वायरस की तरह है, जिसे बेअसर करना होगा.
उपराष्ट्रपति धनखड़ रविवार को हरियाणा के कुरुक्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. धनखड़ का कहना था कि कुछ लोग देश-विरोधी बातें फैलाने में आनंद लेते हैं. लोगों को उनका विरोध करना चाहिए क्योंकि यह कोविड वायरस की तरह है. इस कार्यक्रम में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद और राज्यसभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी भी मौजूद थे.
'भाईचारे के प्रति प्रतिबद्धता पर जोर'
उपराष्ट्रपति ने कहा, गीता का दर्शन भारतीय सभ्यता, इसकी संस्कृति का आधार है और वर्तमान समय में निष्पक्षता, पारदर्शिता, समानता और सार्वभौमिक भाईचारे के प्रति प्रतिबद्धता पर जोर देने के साथ भारत के शासन की आत्मा है. उन्होंने कहा कि आज भारत विभिन्न क्षेत्रों में तेजी से प्रगति कर रहा है.
'हम वैश्विक स्थिरता के लिख खड़े'
उन्होंने कहा, हम एक विश्व शक्ति हैं. हम शांति के लिए खड़े हैं. हम वैश्विक स्थिरता के लिए खड़े हैं. हम 2047 में अपने भारत को चरम पर ले जाना चाहते हैं, जब हम अपनी आजादी के शताब्दी समारोह में होंगे.
'दुनिया ने इतना दर्द कभी नहीं देखा'
धनखड़ ने रूस-यूक्रेन और इजराइल-हमास संघर्ष का जिक्र किया और कहा, 'द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया ने इतना दर्द कभी नहीं देखा, जितना आज देख रही है.' उन्होंने कहा, 'हम वर्चुअली रूप से एक ज्वालामुखी पर बैठे हैं. दुनिया के दो 'कॉन्फिगरेशन' सर्वविदित हैं. एक इजराइल-हमास और दूसरा यूक्रेन-रूस. उन्होंने कहा, गीता का दर्शन आज भी उतना प्रासंगिक है जितना पहले कभी नहीं था.
'देश ने विस्तार के बारे में नहीं सोचा'
उन्होंने कहा, भारत के प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों दो ऐतिहासिक बयान दिए हैं. एक बयान करीब डेढ़ साल पहले का है. प्रधानमंत्री को इस बात पर गर्व है कि इस देश ने अपने इतिहास में कभी विस्तार के बारे में नहीं सोचा. हमने हर तरह के आक्रमण झेले हैं. घुसपैठें झेली हैं, लेकिन हमने विस्तार नीति में कभी विश्वास नहीं किया.
'गीता से मार्गदर्शन लिया'
धनखड़ ने कहा, जब दुनिया के सामने दो बड़े मुद्दे थे, तब पीएम मोदी ने गीता से मार्गदर्शन लेते हुए कहा कि बातचीत और कूटनीति के जरिए युद्ध से बचने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए. उन्होंने महाभारत काल का संदर्भ देते हुए कहा, भगवान कृष्ण ने यह सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि कोई युद्ध ना हो. उन्होंने कहा, लेकिन एक बार जब यह अपरिहार्य हो गया, तब भी भगवान कृष्ण ने अर्जुन को 'ज्ञान' दिया, जिस पर हमें आज विचार करने की जरूरत है.
'कर्त्तव्य का पथ मत छोड़ो'
उन्होंने कहा, भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि कभी भी कर्त्तव्य का मार्ग मत छोड़ो और आज पीएम मोदी भी ऐसा ही कर रहे हैं. धनखड़ ने मुख्यमंत्री खट्टर की भी प्रशंसा की और उन्हें गीता का 'सच्चा अनुयायी' बताया. उपराष्ट्रपति ने कहा कि जहां एक मुख्यमंत्री के रूप में खट्टर की पहचान लोगों को प्रिय है, वहीं वह पारदर्शिता, निष्पक्षता और जवाबदेही के लिए जाने जाते हैं.
इस अवसर पर खट्टर ने कहा कि गीता सिर्फ एक किताब या धर्मग्रंथ नहीं है, यह जीवन का सार है, गीता सार्वभौमिक और शाश्वत है. धनखड़ ने केंद्र सरकार को 'गीता शासन' के सिद्धांतों के साथ जोड़ने पर जोर दिया. उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की धार्मिकता और कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्धता की सराहना की.
'कोई कानून से ऊपर नहीं'
धनखड़ ने कहा कि लोकतंत्र का मूल यह है कि कानून के समक्ष सभी समान हैं. पहले कुछ लोग सोचते थे कि वे कानून से ऊपर हैं, लेकिन एक बड़ा बदलाव हुआ और आज कोई भी कानून के दायरे से बाहर नहीं है, यह जमीनी हकीकत है. मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि इसे हासिल करना आसान नहीं है. यह एक कठिन चुनौती थी. यह उन लोगों से चुनौती है जो स्थापित थे, जिनके पास एक सपोर्ट सिस्टम था. सिस्टम के अंदर और बाहर. लेकिन आज हम अपना सिर ऊंचा रख सकते हैं और कह सकते हैं कि गीता शासन है और कानून के समक्ष सभी समान हैं.
किसी का नाम लिए बिना उपराष्ट्रपति ने कहा कि अगर किसी को कानून के मुताबिक नोटिस मिलता है तो कानून के तहत प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए. लेकिन नई संस्कृति कि अगर हमें कानून के अनुसार नोटिस मिलता है तो हम सड़कों पर उतरेंगे- गीता ने हमें यह नहीं सिखाया है.
धनखड़ ने अपनी पत्नी सुदेश धनखड़ के साथ यहां कार्यक्रम में असम मंडप का भी दौरा किया. उन्होंने कहा कि भारत 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है. धनखड़ ने यह भी कहा कि गीता सभी समस्याओं का समाधान देती है और हमें समावेशिता सिखाती है. उन्होंने 'अमृत काल' को देश के लिए "स्वर्ण युग" बताया और प्रत्येक नागरिक से भारत के विकास में योगदान देने का आग्रह किया. 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र में बदलने का लक्ष्य निर्धारित किया.