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अरुणाचल: चीन बॉर्डर पर सेना के सारथी हैं ये पोर्टर, हर वक्त रहता है मौत का खतरा

भारत-चीन बॉर्डर पर काम करने के लिए ये अरुणाचल प्रदेश के ये भारतीय नागरिक सेना की पहली पसंद हैं. सेना से इन्हें काम के मुताबिक पैसे मिलते हैं, लेकिन कई बार इनके सामने बेरोजगार रहने की नौबत भी आ जाती है.

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मुश्किल परिस्थिति में काम करते पोर्टर (फोटो-आजतक)
मुश्किल परिस्थिति में काम करते पोर्टर (फोटो-आजतक)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • चीन बॉर्डर पर पोर्टरों की चुनौतियांं
  • फॉर्वर्ड पोस्ट तक पहुंचाते हैं सेना का सामान
  • चीन की सीमा में भटकने का खतरा

अरुणाचल प्रदेश में चीन बॉर्डर के नजदीक रहने वाले भारतीयों का जीवन बेहद चुनौतियों और संघर्ष से भरा है. चीन के बॉर्डर के नजदीक रहने वाले ये लोग भारतीय सेना के बड़े मददगार हैं. इस इलाके के हर भूभाग की जानकारी और गजब की शारीरिक क्षमता की वजह से ये लोग लगातार 15 दिनों तक पैदल चलकर भारतीय सेना का रसद फॉर्वर्ड पोस्ट पर पहुंचाते हैं. 

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दुर्गम इलाकों में मौजूद इन फॉर्वर्ड पोस्ट पर नीचे से पहुंचना चुनौतीपूर्ण और जोखिम भरा कार्य है. इसी दौरान ये लोग कई बार भटक कर चीन की सीमा में चले जाते हैं, जहां चीनी सैनिक इन्हें अपने कब्जे में ले लेते हैं. भारतीय सेना के लिए काम करने वाले ये स्थानीय भारतीय नागरिक 'पोर्टर' के नाम से जाने जाते हैं. 

मुश्किल भरी है पोर्टरों की जिंदगी

सेना के सामान को मंजिल तक पहुंचाने के लिए इन्हें बीहड़ जंगलों, नदियों, पहाड़ों, विषैले सांपों से होकर गुजरना पड़ता है. अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी सुवानसिरी जिले के रहने वाले तालेन मुसुर पेशे से पोर्टर है. वे भारतीय सेना के साथ काम कर चुके हैं और सेना का साजो सामान पहाड़ों की तलहटियों से ऊपर की चोटियों तक पहुंचा चुके हैं. 

चीन बॉर्डर के पास हर भूगोल की जानकारी

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भारत-चीन बॉर्डर पर काम करने के लिए ये भारतीय नागरिक सेना की पहली पसंद हैं. सेना से इन्हें काम के मुताबिक पैसे मिलते हैं, लेकिन कई बार इनके सामने बेरोजगार रहने की नौबत भी आ जाती है. तालेन कहते हैं कि पोर्टर का काम करना बेहद चुनौतीपूर्ण है, हमें सीधी पहाड़ियां चढ़नी पड़ती है, और चट्टानों पर मीलों चलना पड़ता है. दोनों ओर गहरी खाई होती है, ऐसे में मामूली चूक भी मौत को दावत देने जैसा है."

अरुणाचल प्रदेश के पोर्टर (फोटो-आजतक)

घने जंगलों में झाड़ियों को काटते, शाखाओं को गिराते और जहरीले जानवरों का सामना करने के लिए इनके पास एक मात्र हथियार दाव (लंबा चाकू) होता है. इसी से इन्हें दुश्मनों से खुद की रक्षा करनी होती है. 

मामूली चूक और मौत से सामना

तालेन कहते हैं, "हम 15 दिनों के खाने-पीने का सामान लेकर आगे बढ़ते हैं, लेकिन जंगल में खाना और सूखी लकड़ी पाना बहुत मुश्किल है, मॉनसून में समस्या और भी विकट है. काई जमें पत्थरों और लकड़ियों पर मामूली फिसलन भी हमें सैकड़ों फीट गहरी खाई में ले जा सकती है, जहां हमारी बॉडी भी नहीं मिलेगी. 

जोखिम भरे हालात में सेना के लिए काम (फोटो-आजतक)

रास्ता भटक कर चीनी क्षेत्र में चले जाते हैं

तालेन की तरह ताकेम भी पोर्टर का काम करते हैं और वे ऊपरी सुबानसिरी के रहने वाले हैं. वो कहते हैं कि अगर हम भूलवश रास्ता भटक गए तो चीन हमें पकड़ लेता है. फिर हमारे साथ क्या होगा पता नहीं, लेकिन खतरे के बावजूद हमें जाना ही पड़ता है. बता दें कि चीन ने इन्हीं इलाकों से 5 भारतीय नागरिकों को उठा लिया है. 

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इंडियन आर्मी पर अटूट विश्वास 

तालेम का कहना है हम भारतीय सेना के लिए काम करते हैं और हमें उनपर अटटू भरोसा है. इन पोर्टरों की मांग है कि सरकार इनके इलाके में मेडिकल, रोड, बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराए, जिससे इनका जीवन थोड़ा आसान हो.  

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