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भारत के राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ का इतिहास क्या है, आखिर क्यों इतनी मान्यता दी जाती है?

अब कोई भी राष्ट्रीय चिन्ह उस देश की संस्कृति और स्वतंत्र अस्तित्व का सबसे बड़ा प्रतीक होता है. पूरी दुनिया में भारत की पहचान सुनहरी परंपराओं वाले महान राष्ट्र के रूप में होती है. और इसमें अशोक स्तंभ की बहुत बड़ी भूमिका है. 

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भारत के राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ का इतिहास
भारत के राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ का इतिहास

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को नए संसद भवन की छत पर एक विशालकाय अशोक स्तंभ का अनावरण किया था. तस्वीरें इतनी भव्य रहीं कि लोगों के मन में अशोक स्तंभ को लेकर ही कई सवाल कौंधने लगे. जानने का मन किया कि आखिर इस अशोक स्तंभ का इतिहास क्या है? सम्राट अशोका से इसका क्या कनेक्शन है? 

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अशोक स्तंभ का इतिहास जानिए

अब कोई भी राष्ट्रीय चिन्ह उस देश की संस्कृति और स्वतंत्र अस्तित्व का सबसे बड़ा प्रतीक होता है. पूरी दुनिया में भारत की पहचान सुनहरी परंपराओं वाले महान राष्ट्र के रूप में होती है. और इसमें अशोक स्तंभ की बहुत बड़ी भूमिका है. संवैधानिक रूप से भारत सरकार ने 26 जनवरी, 1950 को राष्ट्रीय चिन्ह के तौर पर अशोक स्तंभ को अपनाया था क्योंकि इसे शासन...संस्कृति और शांति का सबसे बड़ा प्रतीक माना गया था.  

लेकिन आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि इसे अपनाने के पीछे सैकड़ों वर्षों का लंबा इतिहास छुपा हुआ है. इसे समझने के लिए आपको 273 ईसा पूर्व के कालखंड में चलना होगा जब भारत वर्ष में मौर्य वंश के तीसरे राजा....सम्राट अशोक का शासन था. ये वो दौर था जब सम्राट अशोक को एक क्रूर शासक माना जाता था लेकिन कंलिंग युद्ध में हुए नरसंहार को देखकर सम्राट अशोक को बहुत आघात लगा और वो हिंसा त्यागकर बौद्ध धर्म की शरण में चले गये.

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इसके बाद बौद्ध धर्म के प्रचार में सम्राट अशोक ने देशभर में इसके प्रतीकों के रूप में चारों दिशाओं में गर्जना करते चार शेरों की आकृति वाले स्तंभ का निर्माण करवाया. शेरों को शामिल करने के पीछे ये प्रमाण मिलता है कि भगवान बुद्ध को सिंह का पर्याय माना जाता है...बुद्ध के सौ नामों में से शाक्य सिंह, नर सिंह नाम का उल्लेख मिलता है.

इसके अलावा सारनाथ में दिये गये भगवान बुद्ध के धर्म उपदेश को... सिंह गर्जना भी कहते हैं, इसलिए बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए शेरों की आकृति को महत्त्व दिया गया. यही कारण है कि सम्राट अशोक ने सारनाथ में ऐसा ही स्तंभ बनावाया जिसे अशोक स्तंभ कहा जाता है...यही भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में आजादी के बाद अपनाया गया है.

चार शेर क्यों, दिखते सिर्फ तीन कैसे?

अशोक स्तंभ से जुड़ा एक विचित्र तथ्य ये भी है इसमें चार शेरों को दर्शाने के बावजूद...तीन ही शेर दिखाई देते हैं...गोलाकार आकृति की वजह किसी भी दिशा से देखने के बाद भी एक शेर दिखाई नहीं देता है. अगर आपने ध्यान दिया हो तो अशोक स्तंभ के नीचे एक सांड और एक घोड़े की आकृति दिखाई देती है. इन दोनों आकृतियों के बीच में एक चक्र भी है जिसे हमारे राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया गया है.

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इसके अलावा अशोक स्तंभ के नीचे सत्यमेव जयते लिखा गया है जो मुण्डकोपनिषद का सूत्र है. इसका अर्थ है 'सत्य की ही विजय होती है'.

अशोक स्तंभ को लेकर क्या नियम?

ये तो हुई इतिहास की बात अब अशोक स्तंभ को लेकर नियम- कायदे भी समझ लीजिए क्योंकि ये राष्ट्रीय चिन्ह है और इसकी संवैधानिक गरिमा है जिसे किसी भी तरीके से ठेस नहीं पहुंचाई जा सकती. अशोक स्तंभ का इस्तेमाल सिर्फ़ ....संवैधानिक पदों पर बैठे हुए व्यक्ति कर सकते हैं.. इसमें भारत के राष्ट्रपति..उप राष्ट्रपति...प्रधानमंत्री..केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल, उप राज्यपाल,  न्यायपालिका और सरकारी संस्थाओं के उच्च अधिकारी शामिल हैं.

लेकिन रिटायर होने के बाद कोई भी पूर्व अधिकारी पूर्व मंत्री, पूर्व सांसद या विधायक बिना अधिकार के इस राष्ट्रीय चिन्ह का इस्तेमाल नहीं कर सकते. आपको बता दें कि देश में जब राष्ट्रीय चिन्हों के दुरुपयोग का प्रचलन बढऩे लगा तो इसे रोकने के लिए विशेष कानून बनाने की जरूरत पड़ी. भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह (दुरुपयोग की रोकथाम) एक्ट 2005 बनाया गया जिसे 2007 में अपडेट किया गया.

इस कानून के तहत अगर कोई आम नागरिक अशोक स्तंभ का इस्तेमाल करता है तो उसे 2 वर्ष की कैद और 5000 रुपए तक का जुर्माना हो सकता है. आमतौर पर ये माना जाता है... कि सरकारी कागज़ पर अशोक स्तंभ अंकित होना उस कागज़ का वज़न बढ़ा देता है ..ये संवैधानिक पद और संविधान की शक्ति को दर्शाता है.  

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आजतक ब्यूरो     

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