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रेल मंत्री वैष्णव ने ओडिशा को बताया था कर्मभूमि, लेकिन आदिवासी इलाकों में विकास बड़ी चुनौती

अश्विनी वैष्णव राजस्थान के पाली के रहने वाले हैं. लेकिन उनकी कर्मभूमि ओडिशा है. रेल मंत्री बनने के बाद उन्होंने ट्वीट कर कहा था, ओडिशा मेरी कर्मभूमि है, मैं ओडिशा के लोगों की सेवा के लिए भगवान जगन्नाथ का सबसे अच्छा आशीर्वाद चाहता हूं.

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रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव (फाइल फोटो)
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • ओडिशा से राज्यसभा सांसद हैं अश्विनी वैष्णव
  • ओडिशा कैडर के आईएएस अधिकारी रहें हैं वैष्णव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व IAS अधिकारी और ओडिशा से राज्यसभा सांसद अश्विनी वैष्णव को देश का रेल मंत्री बनाया है. वैष्णव के पास अतिरिक्त आईटी मंत्रालय की जिम्मेदारी भी है. आईएएस अधिकारी से राज्यसभा सांसद और फिर मोदी कैबिनेट में रेल मंत्री के तौर पर पद संभालना उनकी काबिलियत का परिचय माना जा रहा है. अश्विनी वैष्णव देश के सबसे युवा रेलमंत्री के तौर पर कार्यरत हैं. वे 2003 में तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के डिप्टी सेक्रेटरी भी रह चुके हैं. 

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अश्विनी वैष्णव राजस्थान के पाली के रहने वाले हैं. लेकिन उनकी कर्मभूमि ओडिशा है. रेल मंत्री बनने के बाद उन्होंने ट्वीट कर कहा था, ओडिशा मेरी कर्मभूमि है, मैं ओडिशा के लोगों की सेवा के लिए भगवान जगन्नाथ का सबसे अच्छा आशीर्वाद चाहता हूं. 

कर्मभूमि में विकास बड़ी चुनौती

आजादी के बाद से ओडिशा में विभिन्न राजनीतिक दलों की पार्टियों की सरकार बनाई. लेकिन यह दुर्भाग्य है की आज तक प्रदेश के सभी जिलों में रेल की पटरियां नहीं पहुंच पाईं. स्थिति ऐसी है कि आदिवासी जिलों में केवल सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है. हालांकि सरकारी कागजों में रेल मार्ग का नक्शा सालों पहले तैयार हो गया है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है. अब देखना है कि क्या नये रेल मंत्री के कार्यकाल में आदिवासी जिलों के साथ राज्य के दूसरे जिलों में भी कितनी रेल के इंजन दौड़ते हैं. 

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दूरसंचार बड़ी चुनौती

वैष्णव रेल मंत्री के साथ सूचना प्रौद्योगिकी विभाग की भी कमान संभाल रहे हैं. ऐसे में वैष्वण के लिए विभागीय कार्यों में अपनी ही कर्मभूमि पर चुनौतियों की लम्बी कतार लगी है.  भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) द्वारा 31 जनवरी 2020 की प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, ओडिशा टेली डेंसिटी के मामले में नीचे से पांचवें स्थान पर है.

आंकड़ों के आधार पर ओडिशा में कुल 76.15 फीसदी उपभोक्ता हैं, जबकि टेली डेंसिटी का राष्ट्रीय औसतन 87.45% है. राज्य में नौ जिले ऐसे हैं, जहां आबादी के 50% लोग आदिवासी समुदाय से हैं. इन जिलों में आज भी आदिवासी समुदाय के लोगों तक दूरसंचार की पूर्ण व्यवस्था नहीं पहुंच पाई है.

कोरोना महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली ने राज्य में दूरसंचार की लचर व्यवस्था की पोल खोल दी. इस दौरान छात्रों को मोबाइल सिग्नल के लिए कई किलोमीटर का सफर तय करना पड़ा है. हाल ही में राज्य सरकार ने स्पष्ट किया कि प्रदेश में जारी ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली में केवल 40% छात्र भाग ले रहे हैं और अन्य 60% छात्र इस सुविधा से वंचित हैं. सरकार ने राज्य के सीमांचल व ग्रामीण इलाकों में मोबाइल टावरों की कम संख्या में उपलब्धता व कमजोर सिग्नल को इसकी प्रमुख वजह बताया है. यहां नक्सलियों की सक्रियता की वजह से भी मोबाइल टावर लगाना मुश्किल साबित हुआ है. 

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अश्विनी वैष्णव का ओडिशा से रिश्ता 

रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ओडिशा में नौकरशाह रह चुके हैं. वे 1994 बैच के आईएएस अधिकारी हैं. ओडिशा कैडर के आईएएस अधिकारी रहते हुए वैष्णव को बालासोर का डीएम बनाया गया था. उन दिनों ओडिशा में भयंकर समुद्री तूफान आया था, इस दौरान हजारों लोगों की मौत हुई थी. बालासोर के डीएम के रूप में कार्यरत वैष्णव द्वारा किए गए राहत और बचाव के काम को लेकर उनकी बड़ी तारीफ हुई. इसके बाद जब नवीन पटनायक ने ओडिशा में मुख्यमंत्री का पद संभाला तो उन्हें कटक का कलेक्टर बनाया गया. 

आसान नहीं थी राज्यसभा में एंट्री

ओडिशा विधानसभा में 147 सीटें हैं. इसमें राज्य सरकार के सुप्रीमो नवीन पटनायक की सरकार का 111 सीटों पर कब्जा है. वहीं, विधानसभा में भाजपा के पास केवल 23 सीट हैं. ऐसे में रिक्त राज्यसभा सीटों पर नवीन पटनायक तीन राज्यसभा सदस्यों को मैदान में उतारकर आसानी से जीत सकते थे. लेकिन पटनायक ने दो उम्मीदवार को उतारा और भाजपा द्वारा राज्यसभा के लिए नामांकित अश्विनी वैष्वण का समर्थन किया. 

देखना दिलचस्प होगा कि जिस जगह पर अश्विनी वैष्णव को एक अधिकारी के रूप में बड़ी कामयाबी मिली, वहां वे विकास के कार्यों में कितना योगदान देते हैं. साथ ही ग्रामीण कस्बों में निवास करने वाले लोगों को किस प्रकार से विकसित कर उन्हें उनका मूलभूत अधिकार दिलाते हैं?  हालांकि एक बात स्पष्ट है कि वैष्णव को माओवादी व आदिवासी इलाकों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने में नाक के बल चना चबाना पड़ सकते हैं.

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केंद्र सरकार का ओडिशा पर रहा फोकस

केंद्र सरकार ने ओडिशा राज्य में जारी विभिन्न रेल परियोजनाओं को शीघ्र पूरा करने के लिए वर्ष 2021-22 में 6995.58 करोड़ रुपए का आवंटन किया. कोरोना काल में राशि आवंटन का खासा ध्यान रखा गया, ताकि किसी भी प्रकार से विकास कार्यों की गति प्रभावित न हो.

खुर्दा-बलांगीर रेल परियोजना के कार्य को और गति प्रदान करने के लिए इस वर्ष 1000.50 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया. हालांकि, पिछले वर्ष के 520 करोड़ के आवंटन से 92.4 प्रतिशत अधिक रहा. दोहरीकरण परियोजनाओं का विशेष रुप से ध्यान रखा गया. जहां बांसपानी-दैतारी-टमका-जखपुरा के लिए 228 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया. इसके साथ ही ब्रुंदामल-झारसुगुड़ा फ्लाईओवर के लिए 20 करोड़, भद्रक-निर्गुणड़ी तीसरी लाइन के लिए 229 करोड़, बुढापंक-सालगांव के लिए 215 करोड़, राउरकेला-झारसुगुड़ा तीसरी लाइन के लिए 230 करोड़, नारायणगड़-भद्रक तीसरी लाइन केलिए 225 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया. इन सभी जारी परियोजनाओं को निर्धारित समय पर अंतिम रूप देना और नए प्रोजेक्ट पर काम करना रेल मंत्री के लिए चुनौतीपूर्ण होगा.

 

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