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बाल विवाह पर हिमंता सरकार के एक्शन को एंटी मुस्लिम क्यों कहा जा रहा है?

असम में कुछ दिन से बाल विवाह के खिलाफ जोरदार एक्शन लिया जा रहा है. अब तक चार हजार से ज्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं और ढाई हजार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि असम में अचानक से ये सब क्यों हो रहा है? और क्यों ये जरूरी है?

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हिमंता सरकार ने बाल विवाह के खिलाफ अभियान छेड़ रखा है. लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है. (फाइल फोटो-PTI)
हिमंता सरकार ने बाल विवाह के खिलाफ अभियान छेड़ रखा है. लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है. (फाइल फोटो-PTI)

असम में इन दिनों बाल विवाह के खिलाफ जोरदार अभियान चल रहा है. बाल विवाह में शामिल लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है. उन पर केस दर्ज किए जा रहे हैं. 

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असम में बीते शुक्रवार से बाल विवाह के खिलाफ अभियान जारी है. असम के डीजीपी जीपी सिंह ने न्यूज एजेंसी को बताया कि अब तक 4,074 मामलों में 2,500 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है. हालांकि, उन्होंने कहा कि अब सबसे बड़ी चुनौती 60 से 90 दिन के भीतर चार्जशीट फाइल करना है.

उन्होंने बताया कि इस पूरे ऑपरेशन का मकसद राज्य में बाल विवाह के मामलों को कम से कम करना है और अगले दो-तीन साल में इसे पूरी तरह खत्म करना है.

हालांकि, इस पर अब सियासत और विरोध, दोनों शुरू हो गया है. जिन लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है, उनके परिवार वाले सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. वहीं, राजनीतिक पार्टियां इसे लोगों को डराने वाली कार्रवाई बता रहीं हैं. लेकिन मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने साफ कर दिया है कि 2026 के विधानसभा चुनाव तक ऐसा होता रहेगा.

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इस ऑपरेशन के खिलाफ लोग भी विरोध कर रहे हैं. (फोटो-PTI)

पर क्यों हो रहा है विरोध?

असम सरकार ने 14 साल से कम उम्र की लड़कियों से शादी करने वाले पुरुषों के खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत कार्रवाई करने का फैसला लिया है. असम कैबिनेट ने हाल ही में इस प्रस्ताव को मंजूरी दी थी.

इसके मुताबिक, 14 साल से कम उम्र की लड़कियों से शादी करने वाले पुरुष पर पॉक्सो एक्ट के तहत केस दर्ज होगा. जबकि, 14 से 18 साल की उम्र की लड़कियों से शादी करने वालों पर 2006 के बाल विवाह निषेध कानून के तहत मामला दर्ज किया जाएगा.

बाल विवाह को रोकने के लिए असम सरकार ने हर ग्रामीण पंचायत में एक अधिकारी को भी नियुक्त किया है. बाल विवाह होने पर या मामला सामने आने पर ये अधिकारी पुलिस के सामने केस दर्ज करवाएंगे. 

मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने बताया था कि बाल विवाह के खिलाफ जोरदार अभियान चलाया जाएगा. तभी से मामले दर्ज किए जा रहे हैं और लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है. 

कितनी सजा हो सकती है?

भारत में शादी करने की कानूनी उम्र लड़कों के लिए 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल है. अगर इससे कम उम्र में शादी होती है तो उसे बाल विवाह माना जाता है.

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भारत में बाल विवाह को लेकर आजादी से पहले से कानून है. तब शादी के लिए लड़कों की कानूनी उम्र 18 साल और लड़कियों के लिए 14 साल थी. 

1978 में इस कानून में फिर संशोधन किया गया और शादी के लिए कानूनी उम्र लड़कों के लिए बढ़ाकर 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल कर दी गई. 

2006 में इसमें फिर संशोधन किया गया और बाल विवाह को गैर-जमानती अपराध बनाया गया. इस कानून के तहत बाल विवाह करने वाले व्यक्ति को दो साल तक की कैद और एक लाख रुपये के जुर्माने की सजा हो सकती है. अगर शादी हो भी जाती है तो अदालत उसे 'शून्य' घोषित कर देती है. 

वहीं, बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए 2012 में प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट यानी पॉक्सो एक्ट लाया गया. ये 18 साल से कम उम्र के लड़के और लड़कियों, दोनों पर लागू होता है. 2019 में इस कानून में संशोधन किया गया और मौत की सजा को जोड़ा गया. इस कानून के तहत 7 साल की जेल से लेकर उम्रकैद तक हो सकती है. इस कानून के तहत अगर उम्रकैद की सजा मिली है तो दोषी को ताउम्र जेल में ही बिताना पड़ता है.

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असम में बाल विवाह के सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं. (फाइल फोटो- Getty Images)

पर असम में इसकी जरूरत क्यों?

असम में बाल विवाह को रोकने के लिए जो कार्रवाई की जा रही है, उसे कुछ आंकड़ों से समझा जा सकता है. असम में मातृ मृत्यु दर और नवजात मृत्यु दर बहुत ज्यादा है.

पिछले साल सैम्पल रजिस्ट्रार सर्वे (SRS) की रिपोर्ट आई थी. इस रिपोर्ट के मुताबिक, असम में मातृ मृत्यु दर हर एक लाख जन्म पर 195 है, जो देश में सबसे ज्यादा है. यानी, असम में जन्म देते समय हर एक लाख मांओं में से 195 की मौत हो जाती है. वहीं, नवजात मृत्यु दर हर एक हजार जन्म पर 36 है, जबकि राष्ट्रीय औसत 28 का है. यानी, असम में हर एक हजार में से 36 बच्चे पैदा होते ही मर जाते हैं.

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (NFHS-5) के आंकड़े बताते हैं कि असम में 20 से 24 साल की उम्र की 32 फीसदी लड़कियां ऐसी हैं जिनकी शादी 18 साल की उम्र पार करने से पहले ही हो गई थी. ये सर्वे 2019 और 2021 में दो फेज में हुआ था.

इस सर्वे में ये भी सामने आया था कि असम में 15 से 19 साल की उम्र की करीब 12 फीसदी महिलाएं ऐसी थीं, जो या तो गर्भवती थीं या फिर मां बन चुकी थीं.

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एंटी- मुस्लिम क्यों बताया जा रहा है इसे?

असम में बाल विवाह को रोकने के लिए जिस तेजी से अभियान चलाया जा रहा है, उस पर सियासत भी शुरू हो गई है. असम सरकार की इस कार्रवाई को एंटी-मुस्लिम बताया जा रहा है. हालांकि, बिस्वनाथ जिला जहां की 80 फीसदी आबादी हिंदू है, वहां सबसे ज्यादा गिरफ्तारियां हुईं हैं.

हैदराबाद से सांसद और AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी का आरोप है कि असम की बीजेपी सरकार मुस्लिमों को टारगेट कर रही है. हालांकि, सीएम हिमंता बिस्वा सरमा का कहना है कि ये कार्रवाई पूरी तरह से निष्पक्ष और सेक्युलर है और किसी खास समुदाय को टारगेट नहीं किया जा रहा है.

इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि मुस्लिम बहुल जिलों में बाल विवाह के मामले सबसे ज्यादा सामने आते हैं. धुबरी जिले की 80 फीसदी आबादी मुस्लिम है. NFHS-5 के आंकड़ों से पता चलता है कि यहां 20 से 24 साल की उम्र की लगभग 51 फीसदी महिलाओं की शादी 18  साल की उम्र पार करने से पहले हो गई थी. एक और मुस्लिम बहुल जिला साउथ सलमारा बाल विवाह के मामले में दूसरे स्थान पर रहा. यहां 44.7 फीसदी लड़कियों की शादी 18 से पहले ही हो गई थी. 

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इसकी तुलना आदिवासी बहुल जिले दिमा हसाओ से करें तो यहां 16.5 फीसदी लड़कियों की शादी बालिग होने से पहले हो गई थी. जिस समय NFHS-5 सर्वे किया गया, उस समय 15 से 19 साल की उम्र की 22.4 फीसदी लड़कियां या तो पहले ही मां बन चुकी थीं या गर्भवती थीं.

बाल विवाह पर क्या कहते हैं आंकड़े?

आजादी के 75 साल बाद भी बाल विवाह जैसी कुप्रथा पूरी तरह खत्म नहीं हुई है. देश की 70 फीसदी से ज्यादा आबादी गांवों में रहती है और गांवों में बाल विवाह अभी भी प्रचलित है. 

2011 की जनगणना के मुताबिक, देश में उस समय 69.5 लाख लड़के और 51.6 लाख लड़कियां ऐसी थीं, जिनकी शादी तय उम्र से पहले ही हो चुकी थी.

सैम्पल रजिस्ट्रार सर्वे की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 में देश भर में 1.9% लड़कियां ऐसी थीं, जिनकी शादी 18 साल की उम्र से पहले ही हो गई थी. वहीं, लगभग 28 फीसदी लड़कियां ऐसी थीं, जिनकी शादी तब हुई जब उनकी उम्र 18 से 20 साल के बीच थी. 

तीन साल पहले यूनिसेफ की एक रिपोर्ट आई थी. इस रिपोर्ट में बाल विवाह से जुड़े आंकड़े दिए गए थे. इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि दुनियाभर में 65 करोड़ से ज्यादा महिलाएं ऐसी हैं जिनकी शादी तय उम्र से पहले ही हो गई थी. इनमें से 28.5 करोड़ महिलाएं साउथ एशिया में हैं. इसमें भी 22.3 करोड़ से ज्यादा अकेले सिर्फ भारत में ही हैं. यानी, भारत 'बालिका वधुओं' का बड़ा घर है. इस मामले में भारत की स्थिति पाकिस्तान और श्रीलंका से भी खराब थी. 

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यूनिसेफ की रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में 20 से 24 साल की 27% लड़कियां ऐसी हैं, जिनकी शादी 18 साल की उम्र से पहले ही हो गई थी. वहीं, पाकिस्तान में ऐसी 21% लड़कियां हैं. जबकि, भूटान में 26% और श्रीलंका में 10% लड़कियां ऐसी थीं. भारत से आगे बांग्लादेश (59%), नेपाल (40%) और अफगानिस्तान (35%) था.

 

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