जिग्नेश मेवानी की जमानत आर्डर रद्द कराने के लिए असम सरकार ने गुवाहाटी हाईकोर्ट में अपील दायर की है जिस पर 27 मई को सुनवाई होगी. जिग्नेश मेवानी को जमानत देते वक्त बरपेटा के सेशन जज ने जो टिप्पणी की थी उसके ऊपर भी हाईकोर्ट ने स्थगित आदेश जारी किया है. कोर्ट ने जिग्नेश मेवानी के खिलाफ महिला पुलिसकर्मी से अभद्रता को प्रायोजित बताया था. साथ ही कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की थी कि असम एक पुलिस स्टेट में तब्दील हो रहा है.
राज्य एक पुलिस स्टेट बन जाएगा
उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों असम की एक अदालत से गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी को महिला पुलिसकर्मी से छेड़छाड़ के मामले में जमानत दे दी. जमानत देते हुए कोर्ट ने कहा कि कथित हमले के मामले में जिग्नेश के खिलाफ पुलिस ने झूठा केस दर्ज किया है. न्यायमूर्ति अपरेश चक्रवर्ती ने आदेश में कहा, अगर ऐसे ही चलता रहा तो हमारा राज्य एक पुलिस राज्य बन जाएगा जिसे समाज झेल नहीं पाएगा. जिग्नेश मेवाणी को एक हजार रुपये के निजी मुचलके पर रिहा कर दिया गया था.
FIR से उलट महिला पुलिसकर्मी का बयान
न्यायमूर्ति अपरेश चक्रवर्ती ने कहा था कि महिला कॉन्स्टेबल ने मैजिस्ट्रेट को जो कहानी बताई है उससे ऐसा लगता है कि आरोपी जिग्नेश मेवाणी को लंबी समय के लिए हिरासत में रखने के इरादे से तत्काल मामला बनाया गया है. महिला कॉन्स्टेबल का बयान एफआईआर के उलट है. कोर्ट ने कहा कि यह अदालत की प्रक्रिया और कानून का दुरुपयोग है.
यह है पूरा मामला
सबसे पहले जिग्नेश मेवानी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विवादित ट्वीट को लेकर गिरफ्तार किया था, इसके बाद कोकराझार कोर्ट से जिग्नेश मेवानी को जमानत मिल गई थी. इसके तुरंत बाद पुलिस ने जिग्नेश को दूसरे थाने में महिला पुलिसकर्मी के साथ बदतमीजी करने के मामले में गिरफ्तार कर लिया गया था.