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पर्यावरण बचाने की तमाम दुहाइयों के बावजूद दुनिया को प्लास्टिक के कचरे से निजात नहीं मिल सकी है. असम की एक महिला बीते 17 साल से प्लास्टिक कचरे को उपयोगी सामान में बदल कर पर्यावरण बचाने की मुहिम में जुटी हैं. 47 साल की रूपज्योति सेकिया असम में प्रसिद्ध काजीरंगा नेशनल पार्क के पास के क्षेत्र में रहती हैं. ये पार्क एक सींग वाले गैंडों के लिए दुनिया भर में मशहूर है. इसे यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित कर रखा है.
रूपज्योति ने 2004 में प्लास्टिक के कचरे से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम करने की दिशा में काम करने का फैसला किया. उन्होंने आसपास के क्षेत्रों से प्लास्टिक कचरा इकट्ठा कराया और फिर इससे रोजमर्रा की जरूरत का उपयोगी सामान बनवाना शुरू किया. जैसे कि हैंडबैग्स, टेबल मैट्स, डोरमैट्स, डेकोरेशन आइटम्स आदि.
रूपज्योति ने 17 साल पहले पर्यावरण बचाने के लिए मुहिम शुरू करने के लिए जो छोटा सा ‘पौधा’ लगाया था, आज वो ‘वटवृक्ष’ बन चुका है. रूपज्योति ने जब ये मुहिम शुरू की थी तब किसी से ट्रेनिंग नही ली थी. लेकिन आज वो इस काम में 2300 से ज्यादा लोगों को ट्रेंड कर चुकी हैं. इनमें असम और अन्य राज्यों के स्टूडेंट्स-महिलाएं शामिल हैं. रूपज्योति ने कई और देशों में जाकर भी ये प्रशिक्षण दिया है.
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रूपज्योति ने शुरुआत आसपास के क्षेत्र ग्रामीण महिलाओं के साथ की थी. उन्होंने महिलाओं को समझाया कि कैसे प्लास्टिक कचरे को रीसाइकल कर हर दिन के इस्तेमाल के उपयोगी सामान में बदला जा सकता है. ये भी बताया कि इससे पर्यावरण को होने वाला नुकसान कम करने के साथ अपने घरों को आर्थिक सहारा भी दिया जा सकेगा.
आजतक से बातचीत में रूपज्योति ने कहा, “मैंने 2004 में प्लास्टिक कचरे को रीसाइकिल कर उपयोगी सामान बनाने की शुरुआत की. इस काम से फिर कई और महिलाओं को जोड़ा. मैंने कोई स्पेशल ट्रेनिंग नहीं ली थी. मुझे बस पर्यावरण को होने वाले नुकसान की फिक्र थी.”
रूपज्योति की मुहिम से आसपास के 35 गांवों की महिलाएं सीधे तौर पर जुड़ी हैं. रूपज्योति आगे बताती हैं- हमारा जोर प्लास्टिक कचरे को इस तरह रीसाइकल करने पर रहता है कि उससे बनने वाले प्रोडक्ट्स को कलरफुल फिनिश दी जा सके, साथ ही वो मजबूत और टिकाऊ भी हों.
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रूपज्योति ने 2012 में काजीरंगा हाट की शुरुआत की. इसके जरिए प्लास्टिक कचरे से बनने वाले उत्पादों के अलावा पारंपरिक हथकरघा और हस्तशिल्प का सामान भी प्रमोट किया जाता है. रूपज्योति ने बताया कि अब ऑनलाइन भी सामान की बिक्री की जा रही है. साथ ही. विदेश में भी इस तरह के उत्पादों की डिमांड बढ़ रही है. रूपज्योति के पति बिनोद काजीरंगा में गैर मुनाफे वाले वन्यजीव संरक्षण संगठन में काम करते हैं. पत्नी की मुहिम के सफल होने में बिनोद के समर्थन का भी बड़ा हाथ है.