अतीक अहमद और अशरफ की पुलिस हिरासत में हुई हत्या की जांच को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार की स्टेटस रिपोर्ट वाले हलफनामे पर याचिकाकर्ता ने आपत्ति और असंतोष जताया है. अपने रिजॉइंडर यानी प्रति उत्तर में याचिकाकर्ता विशाल तिवारी ने सरकार के जवाब का आधार जस्टिस चौहान आयोग की रिपोर्ट पर अपनी दलीलें दी हैं. तिवारी के मुताबिक सरकार के जवाब में यह गलत कहा गया है कि कोर्ट ने जस्टिस चौहान आयोग की रिपोर्ट स्वीकार कर ली है. सच्चाई ये है कि कोर्ट ने रिपोर्ट मिलने और उसे सार्वजनिक करने की बात कही जरूर थी, लेकिन रिपोर्ट अब तक जनता के बीच नहीं आ पाई है.
सरकार ने अपनी स्टेटस रिपोर्ट में काफी बातें और दावे किए हैं जो निराधार हैं. सरकार ने पुलिस की गढ़ी हुई वो कहानी अपने हलफनामे में लिख दी है जो पुलिस ने मुठभेड़ के नाम पर हुई हत्या के बाद अपने बचाव में सुनाई थी. अधिकतर मुठभेड़ों की कहानी, प्रक्रिया, परिस्थितियां और दलीलें लगभग एक जैसी हैं. बस पात्र और जगह बदल जाती हैं.
रिजॉइंडर में कहा गया है कि सरकार की स्टेटस रिपोर्ट सारगर्भित नहीं है. ऐसी आधी अधूरी और बिना ठोस तथ्यों वाली स्टेटस रिपोर्ट से साफ है कि मुठभेड़ की जांच निष्पक्ष और पारदर्शी नहीं है. इनमें 2017 से लेकर अब तक हुई 183 कथित मुठभेड़ों की जांच का कोई ब्योरा नहीं है. ये आंकड़े यूपी के स्पेशल डीजीपी ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में ही पुलिस की उपलब्धि गिनाते हुए दिए थे.
जबकि सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से किसी भी मुठभेड़ में आरोपी या अपराधी की मौत के पीछे वाजिब वजह बताने को कहा है. वरना तो ऐसे में बिना ठोस और न्यायसंगत वजह के उस मुठभेड़ को सरकार समर्थित हत्या ही माना जाएगा.