नागपुर में अब स्थिति नियंत्रण में हैं. रविवार शाम को हिंसा भड़कने के बाद शहर के कई हिस्सों में कर्फ्यू लगा दिया गया था. यह हिंसा मुगल बादशाह औरंगजेब के मकबरे को गिराने की मांग को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों से भड़की थी. दिलचस्प बात यह है कि औरंगजेब का मकबरा न तो मुगल साम्राज्य की राजधानी दिल्ली में है, न ही नागपुर में, जो हाल ही में हुई लड़ाइयों का केंद्र रहा है, बल्कि यह महाराष्ट्र के एक छोटे से अज्ञात स्थान खुल्दाबाद में है.
औरंगजेब और उसका मकबरा अक्सर खबरों में रहा है. कभी किसी नेता द्वारा वहां नमाज पढ़ने और विवाद खड़ा करने की वजह से, तो कभी दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा मकबरे को गिराने की मांग को लेकर.
यह बताने के लिए किसी सर्वेक्षण की आवश्यकता नहीं है कि 17वीं सदी का मुगल बादशाह भारत के इतिहास का सबसे विवादास्पद शासक है. औरंगजेब वह शासक भी था जिसे भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे बड़ा साम्राज्य विरासत में मिला था और जिसने अपने जीवनकाल में इसका सबसे अधिक विस्तार किया था.
औरंगजेब की मृत्यु अहमदनगर में हुई थी, जिसका नाम बदलकर अहिल्यानगर कर दिया गया है. इसके पीछे ऐतिहासिक और धार्मिक कारण हैं कि उसका मकबरा औरंगाबाद जिले के चारदीवारी वाले शहर खुल्दाबाद में क्यों है.
औरंगाबाद का नाम भी बदलकर छत्रपति संभाजीनगर जिला कर दिया गया है, संभाजी जो मराठा राजा शिवाजी के पुत्र थे, उन्होंने ही औरंगजेब से युद्ध किया था और उन्हें पकड़ लिया गया था फिर यातनाएं देकर मार डाला गया था.
फरवरी में सिनेमाघरों में विक्की कौशल अभिनीत संभाजी पर आधारित फिल्म 'छावा' रिलीज हुई और इसने औरंगजेब पर बहस का ताजा दौर शुरू कर दिया. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने नागपुर में हुई झड़पों के बारे में बात करते हुए कहा, "छावा फिल्म ने औरंगजेब के खिलाफ लोगों के गुस्से को भड़का दिया है, फिर भी सभी को महाराष्ट्र में शांति बनाए रखनी चाहिए." उन्होंने कहा कि हिंसा "पूर्व नियोजित" लगती है.
जब मुगल शासक का नाम और उसकी कब्र आक्रोश का कारण बन रही है, यहां हम आपको वे कारण बता रहे हैं कि औरंगजेब की कब्र महाराष्ट्र के एक छोटे से और अपेक्षाकृत अज्ञात स्थान पर क्यों है?
औरंगजेब का 'अपराध, पश्चाताप और 'सादगीपूर्ण जीवन के प्रति प्रेम'
अंतिम प्रमुख मुगल बादशाहों में से एक, औरंगजेब द्वारा खुल्दाबाद में मकबरे का चयन शायद उसकी कथित सादगीपूर्ण जीवनशैली, अपने पिता को सत्ता से बेदखल करने के अपराधबोध और उसके लंबे समय तक चले दक्कन अभियान से जुड़ा हुआ था.
औरंगजेब ने अपने पिता को पदच्युत करके और सात साल से अधिक समय तक हिरासत में रखकर इस्लामी कानून तोड़ा था. उसके अपराधबोध का एक बड़ा हिस्सा इस बात से पैदा हुआ था कि उसने सत्ता कैसे हड़प ली?
कुछ इतिहासकारों ने यह भी तर्क दिया है कि औरंगजेब के कठोर संयम का संबंध शाहजहां को सत्ता से हटाने और उसके अपराधबोध से भी हो सकता है.
औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहां के जीवित रहते ही उसेसे गद्दी छीन ली थी. इसे गैर-इस्लामी माना जाता था. औरंगजेब मक्का के शरीफ से लगातार दरख्वास्त करता रहा कि उसके इस्लामिक शासन को वैधता दी जाए.
लेकिन उसने ऐसा शाहजहां की मृत्यु के साढ़े सात साल बाद ही किया गया था. अपने शासन के पहले दशक में मजहबी वैधता की कमी का एहसास ने उसकी जिंदगी पर भारी असर डाला.
अपने शासन को वैधता देने के प्रयास में औरंगजेब ने फिजूलखर्ची को भी खत्म कर दिया, जो अब तक मुगलिया सल्तनत का रिवाज था. लेकिन इस्लाम में इसे ठीक नहीं समझा जाता है.
औरंगजेब को आलीशान वस्तुओं का उपयोग भी पसंद नहीं था और वह सादे कपड़े पहनता था. उन्होंने अपने साम्राज्य में शराब, अफीम, वेश्यावृत्ति और जुए पर भी प्रतिबंध लगा दिया.
इसका एक और अच्छा उदाहरण है अपनी आजीविका कमाने पर उसका जोर. औरंगजेब ने अपना कुछ समय इस्लामी टोपियां बुनने में बिताया, जिन्हें तकियाह भी कहा जाता है, और वह हाथ से कुरान की नकल भी करता था. ऐसा इसलिए क्योंकि वह शाही खजाने से अपना मासिक खर्च के लिए पैसा नहीं लेना चाहते था.
यह भी कहा जाता है कि औरंगजेब ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में टोपियां बुनकर 12 रुपये और 14 आने में अपने मकबरा का का खर्च उठाया था, जैसा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के 'औरंगजेब का मकबरा' नाम के रिकॉर्ड में बताया गया है.
औरंगजेब का दक्कन से लंबा जुड़ाव
औरंगजेब ने दिल्ली की राजसी शान को पीछे छोड़ दिया और 1680 के दशक की शुरुआत में दक्षिण की ओर कूच कर गया. वह दक्कन की ओर इस महत्वाकांक्षा के साथ निकला कि वह उन इलाकों पर कब्जा कर ले जो जिसे उसके पूर्ववर्ती राजाओं से सिर्फ अधीन बनाकर छोड़ दिया था.
27 साल तक चला दक्कन अभियान उसके साम्राज्य के लिए "नासूर" बन गया, जिससे साम्राज्य के संसाधन खत्म हो गए और दरबारियों में भारी असंतोष पैदा हो गया, जिन्हें दिल्ली से दूर रहना पड़ा.
औरंगजेब का दक्कन से जुड़ाव अभियान से बहुत पहले शुरू हुआ था, जब वह अपने पिता के शासन के दौरान इस क्षेत्र का मुगल गवर्नर था.
औरंगजेब को दक्कन अभियान में शुरुआती जीतें मिलीं, उसके बाद दक्षिणी राज्यों और मराठों के साथ लगातार युद्ध हुए और मुगल बादशाह दक्षिण में ही रहा. अपने अंतिम दिनों में भी औरंगजेब उस हिस्से में था जो अब महाराष्ट्र है.
खुल्दाबाद में औरंगजेब की कब्र और सूफी दरगाह
औरंगजेब की कब्र खुल्दाबाद में क्यों है, इसका संबंध उसकी अंतिम इच्छा से है. उसे जैनुद्दीन शिराजी की चिश्ती सूफी दरगाह के भीतर स्थित कब्र में दफनाया गया था.
इतिहासकार कार्ल अर्न्स्ट के अनुसार मुगल बादशाह औरंगजेब ने कहा था, "पापों में डूबे इस पापी को हुजूर सैयद और शेख जैनुद्दीन हुसैन शिराजी की मुकद्दस चिश्ती कब्र के पास ले जाना चाहिए, क्योंकि उस दरबार (संतों के) की सुरक्षा के बिना, जो क्षमा का आश्रय है, पाप के सागर में डूबे लोगों के लिए कोई पनाह नहीं है."
औरंगजेब की मृत्यु अहमदनगर में हुई थी, ये जगह जहां उसे दफनाया गया है वहां से लगभग 130 किलोमीटर दूर है.
उसने एक साधारण कब्र की इच्छा रखी थी.
अर्न्स्ट के अनुसार, मुगल बादशाह ने कहा था, "अमीर लोग अपनी कब्रों पर सोने और चांदी के गुंबद बना सकते हैं! मेरे जैसे गरीब लोगों के लिए, आसमान ही काफी है (एक गुंबद जो मेरी कब्र को ढंक सके)."
इस क्षेत्र का नाम रौज़ा इसलिए पड़ा क्योंकि यहां कई सूफ़ी औलिया की दरगाह थी. इसे खुल्दाबाद के नाम से जाना जाने लगा, इसका कारण यह है कि औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसे खुल्द-मकानी की उपाधि दी गई थी, जिसका अर्थ है "जन्नत का निवासी".
यह मकबरा शुरू में बहुत ही साधारण था. लेकिन पहले हैदराबाद के निजाम ने फिर उसके बाद बीसवीं सदी में लॉर्ड कर्जन ने इस संरचना में संगमरमर का इस्तेमाल किया.
चिश्ती सूफी दरगाह ज़ैनुद्दीन शिराजी में दफन होने की उसकी इच्छा के कारण ही औरंगजेब का मकबरा खुल्दाबाद में है, जो नागपुर से लगभग 500 किलोमीटर और दिल्ली से 1,100 किलोमीटर से भी अधिक दूर है.
रिपोर्ट: प्रियांजलि नारायण