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अयोध्या मामले में कैसे सुनाया फैसला, पूर्व CJI गोगोई ने आत्मकथा में बताई पूरी कहानी

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने आत्मकथा में लिखा, 'कैसे न्यायाधीश सुनवाई के बाद लगभग हर दिन तर्कों पर चर्चा करते थे. उन्होंने खुद दूसरे जजों को सुझाव दिया कि निर्णय एकमत होना चाहिए, बल्कि केवल एक ही निर्णय होना चाहिए.'

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पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई
पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई
स्टोरी हाइलाइट्स
  • रंजन गोगोई ने सुनाई अयोध्या फैसले की पूरी कहानी
  • गोगोई ने अपनी आत्मकथा 'जस्टिस फॉर द जज' में विस्तार से चर्चा की

देश के सबसे विवादित मसलों में से एक अयोध्या विवाद का अंत भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के कार्यकाल में ही हुआ था. इस मामले पर रंजन गगोई ने अपनी आत्मकथा 'जस्टिस फॉर द जज' में विस्तार से चर्चा की है और अपनी बातें रखी हैं.

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गगोई ने किताब में लिखा है, 'अयोध्या मामला भारत की न्यायपालिका के लिए मानव जाति की लंबी यात्रा में एक अमूल्य योगदान देने का अवसर था. इस फैसले के माध्यम से अलग-अलग विश्वासों के बीच के विवाद को खत्म करने के लिए दुनिया के तमाम समुदायों के बीच विश्वास कायम करने की उम्मीद शांतिपूर्ण और न्यायिक तरीकों से की गई थी. यह विश्वसनीय लोगों को स्वीकार करने और सह-अस्तित्व की क्षमता की खोज करने के लिए भी मार्गदर्शन करेगा, जो भिन्न या विविध हो सकता है या ऐसा माना जा सकता है.'

आत्मकथा में जिक्र है कि मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सभी पक्षों की ओर से 40 दिनों तक लगातार बहस के साथ मामले की लंबी सुनवाई हुई थी. इस दौरान सुनवाई को ज्यादा से ज्यादा देर तक टालने की कई कोशिशें भी की गईं.

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'सभी जजों से किया अनुरोध, वे चुप रहें और जवाब न दें'
जस्टिस गोगोई ने उस दौर को याद करते हुए अपनी किताब में लिखा है, 'सुनवाई तब तक खिंचती रही, जब तक धवन की ओर से आतिशबाजी नहीं हुई. उन्होंने जैन की दलीलों के दौरान मेरी तरफ देखा और कहा कि इन मामलों को इस तरह से नहीं सुना जा सकता, जिस तरह से मैं अपने सामने आम तौर पर आने वाले अन्य मामलों की सुनवाई करता हूं. यह बिना किसी उकसावे के था और केवल इसलिए कि हमने जैन से उनकी बहस की गति बढ़ाने का आग्रह किया था.'

किताब में आगे लिखा गया है, 'धवन ने कहा कि हर चीज पर विचार करना होगा और सभी की पूरी सुनवाई करनी होगी. सभी दस्तावेजों की जांच करनी होगी. धवन ने संकेत दिया कि वह खुद अपनी दलीलें पूरी करने में करीब छह हफ्ते का समय ले सकते हैं. एक मौके पर तो उन्होंने यह भी कहा कि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को छोड़कर किसी भी न्यायाधीश ने न तो दस्तावेज पढ़े थे और न ही मामले को समझा था. मैंने अपने सभी जजों से अनुरोध किया कि वे चुप रहें और जवाब न दें, क्योंकि इससे सुनवाई बाधित हो सकती थी. अदालत में इस तरह की घटनाएं होती रहीं और समय के साथ बढ़ती गईं. लेकिन सुनवाई जारी रही.'

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दिलचस्प घटना का भी जिक्र किया
पूर्व चीफ जस्टिस गोगोई ने सुनवाई के आखिरी दिन हुई एक दिलचस्प घटना का जिक्र भी अपनी किताब में किया है. उन्होंने लिखा है, 'सुनवाई के दौरान दोपहर के करीब, जस्टिस गोगोई को सुप्रीम कोर्ट के महासचिव से एक कागज की पर्ची मिली, जिस पर लिखा था कि अयोध्या मामले में एक पक्ष का प्रतिनिधि सुप्रीम कोर्ट में प्रवेश करने की अनुमति मांग रहा है.'

जस्टिस गोगोई लिखते हैं, 'जस्टिस बोबडे, जो मेरी दाईं ओर थे और जस्टिस चंद्रचूड़ मेरी बाईं ओर, उन्होंने नोट के बारे में पूछा. पांच न्यायाधीशों की बेंच द्वारा सुनवाई के बीच रजिस्ट्रार से किसी नोट का मिलना असामान्य घटना है. यह एक प्रशासनिक मामले से संबंधित था, इसलिए मैंने उन्हें उसी के अनुसार बताया.'

'किसी शख्स को अदालत में प्रवेश की अनुमति नहीं'
पूर्व न्यायमूर्ति गोगोई का कहना है कि उन्होंने महासचिव को जवाब भेजकर कहा, 'किसी भी परिस्थिति में व्यक्ति को अदालत में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए'. मैंने महसूस किया कि उसका उद्देश्य नेक इरादे वाला नहीं बल्कि सुनवाई को बाधित करने का था. अगर वह ऐसा करने में सक्षम होता, तो अदालती कार्यवाही प्रभावित होती और मामले को स्थगित करना पड़ सकता था.'

पूर्व CJI ने अयोध्या मामले की लंबी और थकाऊ सुनवाई का खुद पर हुए असर के बारे में भी विस्तार से कहा है. उन्होंने लिखा, 'मैं अक्सर आवेशित भावनाओं के साथ घर लौटता था. मेरी पत्नी ही एकमात्र व्यक्ति थी जिसके साथ मैं अपने भीतर की उथल-पुथल को साझा कर सकता था और अदालत में दिखने वाले शांत व्यक्ति के पीछे के परेशान व्यक्ति को उजागर कर सकता था. एक दिन मैंने कोर्ट जाने से इनकार कर दिया.'

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उन्होंने लिखा है, 'रूपांजलि (पत्नी) ने एक और दिन अपनी विशाल प्रेरक शक्तियों के साथ अंततः जीत हासिल की. हालांकि वह मुझे घर (5, कृष्ण मेनन मार्ग) से बाहर भेजने में सफल रहीं, मैं अदालत पहुंचा, पर मैंने अपने चैंबर से हिलने से मना कर दिया. जस्टिस बोबडे ने उस दिन अन्य जजों को यह कहते हुए सुनवाई बंद कर दी कि मैं अस्वस्थ हूं,'

फैसले की 3 मसौदे लिखे गए
पूर्व न्यायाधीश ने पहली बार अंदर की बात पेश करते हुए किताब में बताया है कि कैसे पांच न्यायाधीशों ने फैसले को लिखा था. उनका कहना है कि न्यायाधीश सुनवाई के बाद लगभग हर दिन तर्कों पर चर्चा करते थे, लेकिन सुनवाई के आखिरी कुछ दिनों के पहले तक यह राय बननी शुरू नहीं हुई थी कि भूमि को हिंदू पक्षों के हिस्से में जाना चाहिए. राम मंदिर बनाने और मुस्लिम पक्षकारों को मस्जिद बनाने के लिए अयोध्या में उपयुक्त और प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ वैकल्पिक भूखंड की अनुमति दी जानी चाहिए.

पूर्व सीजेआई गोगोई ने किताब में लिखा है कि उन्होंने अन्य न्यायाधीशों को सुझाव दिया कि न केवल निर्णय एकमत होना चाहिए बल्कि केवल एक ही निर्णय होना चाहिए और लेखक के नाम का खुलासा नहीं किया जाना चाहिए. फैसले के तीन मसौदे लिखे गए, जिनमें से एक न्यायमूर्ति गोगोई ने लिखा और फिर मसौदों को एक साथ संपादित करने और विलय करने के लिए तीसरे न्यायाधीश को सौंप दिया गया.

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