scorecardresearch
 

बाबा बागेश्वर बिहार में BJP के लिए सियासी पिच तैयार कर रहे हैं?

बिहार में बाबा बागेश्वर की कथा सुनने के लिए जुटी लाखों की भीड़ क्या किसी पार्टी के इशारे पर पहुंच रही है, कर्नाटक चुनाव में इस बार JDS क्यों पिछड़ गई, राज्य दर राज्य बाइपोलर होता चुनाव लोकतांत्रिक मूल्यों के लिहाज़ से कैसा है और इस मॉनसून सीजन में किसानों के लिए क्या सुझाव है? सुनिए 'आज का दिन' में.

Advertisement
X
baba bageshwar
baba bageshwar

गर्मी की प्रचण्ड दुपहरी में, टेम्पू, ट्रैक्टर, बस, दुपहिया, चारपहिया, जो मिला, उसको पकड़ पटना से तकरीबन बीस किलोमीटर दूर नौबतपुर के तरेत पाली मठ पहुंचे ये भक्त हैं पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के. ये अपने बाबा बागेश्वर की एक झलक पाने के लिए बेताब हैं. मध्यप्रदेश का जिला छतरपुर. यहां के गड़ा गांव के बागेश्वर धाम के पुजारी हैं धीरेन्द्र शास्त्री. फिलहाल पांच दिवसीय बिहार प्रवास पर हैं. शनिवार से उनका यहां हनुमंत पाठ का जो कार्यक्रम शुरू हुआ, आज उसका आख़िरी दिन है. उनके कार्यक्रम में हर दिन लाखों लोग पहुंच रहे हैं. उनके भक्तों का दावा है कि वे उनकी शंका, समस्या, जिज्ञासा का समाधान कर देते हैं. 

Advertisement

पंडित धीरेन्द्र शास्त्री को पूजने वाले कहते हैं कि उनको दिव्य शक्ति हासिल है, वहीं और लोग, ख़ासकर उनके आलोचक इसे अंधविश्वास बताते हैं. दरअसल, महाराष्ट्र के नागपुर में एक कार्यक्रम के दौरान इनपर अंधविश्वास फैलाने का इल्ज़ाम लगा था. उस के बाद ये राजनीति, समाज और हां सोशल मीडिया के केंद्र में आ गए. केंद्र में वे बिहार की राजनीति के भी हैं इन दिनों. बीजेपी के सांसद से लेकर केंद्र में मंत्री तक उनका खुले तौर पर समर्थन कर रहे हैं. बीजेपी के नेता मनोज तिवारी से लेकर गिरिराज सिंह बाबा बागेश्वर के बिहार प्रवास के दौरान पलक पावड़े बिछाये हुए दिखे. दरअसल, पंडित धीरेन्द्र शास्त्री हिन्दू राष्ट्र की वकालत करते हैं. कल बिहार में भी वे बोले कि बिहार से ही हिंदू राष्ट्र की शुरुआत होगी. इस पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने धीरेन्द्र शास्त्री का नाम तो नहीं लिया लेकिन कहा, इस तरह की बात नहीं करनी चाहिए, ये संविधान सम्मत नहीं है. आरजेडी नेता और पर्यावरण मंत्री, बिहार के, तेजप्रताप यादव ने कहा कि वे उन्हें बाबा मानते ही नहीं हैं. सवाल है कि मध्य्प्रदेश, छतीसगढ़ जैसे राज्यों में जिस पंडित धीरेन्द्र शास्त्री का प्रभाव है, वे अचानक बिहार की राजनीति के धुरी किस तरह बन गए, उनको लेकर छिड़े इस विवाद की शुरुआत कहाँ से हुई और किस तरह इसमें एक-एक कर चित्र-विचित्र अध्याय जुड़ते चले गए? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें. 

Advertisement

--------------------------------------------------------
दूसरी कहानी बंगलुरु… नहीं…नहीं…. दिल्ली की. क्योंकि जो बंगलुरु में तय होना था, तीन दिन बीत जाने के बाद दिल्ली में भी तय नहीं हो सका है. कर्नाटक कांग्रेस के विधायक दल का नेता, यानी मुख्यमंत्री राज्य का कौन होगा? ये अब एक पहले है. जिसे सुलझाने के लिए कल कई दौर की बैठक हुई, राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के घर. राहुल गांधी, डी के शिवकुमार, सिद्दारमैया से लेकर और कई स्टेक होल्डर खड़गे से मिलने बारी-बारी गए, बात हुई लेकिन शायद बनी नहीं. बनी भी तो बाहर कुछ ठोस नहीं आई. हां, रिपोर्टर बॉडी लैंग्वेज पढ़ कर अंदाज़ा ज़रूर लगाते रहे. पता चला आज 11 बजे खड़गे के घर पर एक बैठक होगी और उसके बाद मुख्यमंत्री के नाम का या जो फॉर्मूला बना है, इतनी मन्त्रणा के बाद, शायद उसका ऐलान हो जाए. ये हुई एक बात.

और बात उसकी जो परदे पर है फ़िलहाल. कर्नाटक चुनाव परिणाम के बाद जो नेपथ्य में चला गया. उसकी थोड़ी खोज खबर आज लेंगे. हम बीजेपी की नहीं बल्कि उस क्षेत्रीय पार्टी की बात कर रहे हैं जिसका जनाधार इस चुनाव में ऐतिहासिक तौर पर खिसक गया. जनता दल सेक्युलर. पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा की पार्टी जिसके फ़िलहाल मुखिया उनके बेटे कुमारस्वामी हैं. जनता दल से अलग होकर अस्तित्व में आई जेडीएस वैसे तो पिछले 24 साल में लगातार वहां के राजनीति के केंद्र में रही. तीन बार जेडीएस गठबंधन सरकारों का हिस्सा भी रही लेकिन इस बार उन्हें करारी शिकस्त मिली है. जिस जेडीएस के पास 18 प्रतिशत वोट बैंक हमेशा रहता था, वो जैसे तैसे लगभग 13 प्रतिशत वोट इस चुनाव में जुटा पाई. सीट उसके 37 से लुढ़क के 19 पर आ गए. इस विधानसभा चुनाव में जनता दल सेक्युलर के वोट प्रतिशत और सीट के खिसकने की वजह क्या रही और राज्य दर राज्य बाइपोलर होता चुनाव लोकतांत्रिक मूल्यों के लिहाज़ से कैसा है?  'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें. 

Advertisement

---------------------------------
तीसरी कहानी में बात खेती की, किसानी की, बारिश की, मॉनसून की. भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की हिस्सेदारी करीब बीस फीसदी है. देश की तकरीबन आधी आबादी खेती पर निर्भर है. और अच्छी खेती के लिए, अर्थव्यवस्था की बढ़िया सेहत के लिए चाहिए समय पर और सामान्य बारिश. और इसका दरवाजा है केरल में मानसून. कल मौसम विभाग ने बताया कि इस बार मानसून सम्भव है चार दिन कक देरी से आए. पिछले साल यानी 2022 में मानसून 29 मई को केरल पहुंचा था. वहीं 2021 में यह 1 जून को पहुंचा था. मौसम विभाग की अगर मानें तो इस साल मानसून के सामान्य रहने का अनुमान है. सामान्य बारिश का मतलब क्या होता है और किसानों के लिए क्या सुझाव रहेगा? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें. 


 

Advertisement
Advertisement