उत्तर प्रदेश के बागपत में एक कारोबारी ने फेसबुक लाइव पर आकर आत्महत्या करने की कोशिश की. कारोबारी ने अपनी आर्थिक तंगी के लिए केंद्र की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है.
बुधवार को कारोबारी राजीव तोमर और उनकी पत्नी ने जहर खा लिया. दोनों को नाजुक हालत में अस्पताल लाया गया. उनकी पत्नी पूनम की तो मौत हो गई. वहीं, राजीव की हालत अब भी गंभीर बनी हुई है.
राजीव बागपत के सुभाष नगर में जूते की दुकान चलाते थे. उनके परिजनों का आरोप है कि उनका कारोबार ठप हो गया था. राजीव ने कर्ज भी ले रखा था, जिसे वो कारोबार ठप होने की वजह से चुका नहीं पाए थे.
ये तो एक राजीव की कहानी ही है. लेकिन राजीव अकेले नहीं हैं जो आर्थिक तंगी या कारोबार ठप होने पर ऐसा कदम उठाते हैं. सरकार के आंकड़े बताते हैं कि हर दिन आर्थिक तंगी से परेशान होकर 14 लोग आत्महत्या कर लेते हैं.
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5 साल में 25 हजार से ज्यादा आत्महत्याएं
केंद्र सरकार की एजेंसी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) पर 2020 तक के आंकड़े मौजूद हैं. NCRB के आंकड़े बताते हैं कि पिछले 5 साल में 25 हजार से ज्यादा लोगों ने कर्ज और आर्थिक तंगी से परेशान होकर अपनी जान दे दी.
NCRB के आंकड़ों के मुताबिक, 2020 में देश में 5 हजार 213 लोगों ने कर्ज से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी. यानी, हर दिन 14 सुसाइड. इससे पहले 2019 में 5 हजार 908 लोगों ने सुसाइड की थी.
राज्यसभा में सरकार ने बताया है कि तीन साल में बेरोजगारी से तंग आकर भी 9 हजार से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या कर ली. 2020 में 3 हजार 548, 2019 में 2 हजार 851 और 2018 में 2 हजार 741 लोगों ने बेरोजगारी की वजह से जान दे दी.
NCRB के आंकड़े बताते हैं कि 2007 से 2013 तक मनमोहन सरकार के 7 साल में 20 हजार 171 लोगों ने आत्महत्या कर ली थी. वहीं, 2014 से 2020 तक मोदी सरकार के 7 साल में 31 हजार 616 लोगों ने अपनी जान दे दी.
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ग्रामीण इलाकों में बढ़ रहे कर्जदार परिवार
संसद के शीतकालीन सत्र में कर्ज से पीड़ित परिवारों की संख्या से जुड़े आंकड़े मांगे गए थे. इसका जवाब वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने दिया था. उन्होंने इसके लिए नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) के 2012 और 2018 के सर्वे के आंकड़े दिए थे. इसके मुताबिक, 2012 में देश के शहरी इलाकों में 22.4% परिवारों पर कर्ज था. 2018 में भी ये आंकड़ा 22.4% ही रहा. लेकिन ग्रामीण इलाकों में ये आंकड़ा बढ़ गया. 2012 में जहां 31% ग्रामीण परिवार कर्जदार थे तो 2018 में इनका आंकड़ा बढ़कर 35% पहुंच गया. हालांकि, कुछ राज्यों को छोड़ दिया तो ज्यादातर राज्यों के शहरी इलाकों में भी कर्जदार परिवारों का आंकड़ा बढ़ा था.