scorecardresearch
 

हलाल पर क्या है बवाल, EU ने बदले नियम, हिटलर तक बेहोश जानवर के जिबह की बात करता था!

कर्नाटक विधानसभा के शीतकालीन सत्र में एंटी-हलाल बिल पेश हो सकता है, जिसे कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 से जोड़ा जा रहा है. इससे पहले भी देश के कई हिस्सों में हलाल मीट पर बैन का मुद्दा उठता रहा. यही बवाल दूसरे देशों में भी हो चुका है. आइए, समझते हैं कि हलाल की हिस्ट्री क्या है और आखिर क्यों रह-रहकर इसपर झमेला होता रहा.

Advertisement
X
हलाल पर कई वजहों से लगातार विवाद होता रहा. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
हलाल पर कई वजहों से लगातार विवाद होता रहा. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

कर्नाटक सरकार हलाल पर बैन की तैयारी कर रही है. विधानसभा के शीतकालीन सत्र में एंटी-हलाल बिल पेश हो सकता है. विपक्ष इसे कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 से जोड़ रहा है. वैसे देश के कई हिस्सों में हलाल मीट पर बैन का मुद्दा उठता रहा है.

Advertisement

हलाल अरबी शब्द है, जिसका मतलब है जायज. इस्लामिक नियम के हिसाब से अगर आप शरीयत के मुताबिक जिबह करते हैं, तभी मीट खाया जा सकता है, वरना नहीं. इस्लामिक मामलों के जानकार अब्दुल हमीद मोमानी कहते हैं कि सिर्फ मीट नहीं, बल्कि जो भी चीज साफ-सुथरी और सही है, वो हलाल है. सिर्फ पाक होना काफी नहीं, ये भी जरूरी है कि उसे खाने से कोई नुकसान न हो. मिसाल के तौर पर मिट्टी इस्लाम में पाक मानी जाती है, लेकिन मिट्टी खाना हराम है क्योंकि सेहत खराब होती है. 

कैसे जिबह करते हैं?
जिबह करते हुए ध्यान देना होता है कि वो पूरी तरह से स्वस्थ और होश में हो. ऐसे पशु की गले की नस, ग्रीवा धमनी और श्वासनली काटकर उसे मारा जाता है. ये प्रक्रिया समय लेती है ताकि पूरा खून बह सके. इस दौरान तस्मिया पढ़ा जाता है. नियम ये भी है कि एक समय पर केवल एक ही जानवर को मारा जाए और दूसरे जानवर उसके जिबह को न देखें. 

Advertisement

कब शुरू हुआ हलाल सर्टिफिकेशन?
इसका इतिहास पुराना है. हालांकि 60 के दशक के बाद जब मुस्लिम आबादी पश्चिमी देशों में भी जाने लगी, तब इसका सर्टिफिकेशन जैसी चीजें जरूरी हो गईं ताकि लोग अवेयर रहें कि वे क्या खा रहे हैं. नब्बे के दशक के आखिर-आखिर तक सिर्फ मीट ही नहीं, बल्कि दवाओं और कॉस्मेटिक्स तक पर बताया जाने लगा कि वो हलाल है या नहीं. एक तरह से ये मुस्लिम मार्केट को जोड़े रखने की कोशिश थी.

halal meat ban in karnataka
कर्नाटक विधानसभा में हलाल मीट पर बैन की बात पहले भी हो चुकी है. (Pixabay)


क्या हलाल किए जाने पर जानवरों को दर्द होता है? 
ये सवाल बार-बार उठता रहा कि चूंकि जिबह के दौरान पशु को धीरे-धीरे मरने दिया जाता है तो वो काफी दर्द सहता होगा. एनिमल वेलफेयर संस्थाएं भी इसका विरोध करती रहीं. पेटा के मुताबिक हलाल की प्रोसेस में जानवर खुद को धीरे-धीरे मरता देखता है और बेहद पीड़ा सहता है. ब्रिटिश वेटरनरी एसोसिएशन का कहना है कि हलाल करने से पहले जानवर को बेहोश करना चाहिए ताकि कम से कम मरते हुए उसे दर्द न हो. फार्म एनिमल वेलफेयर काउंसिल भी गले की नस कटने की दर्दनाक बताते हुए जानवरों को बेहोश करने की बात कहती है. 

यूरोपियन यूनियन ने बेहोश करने को जरूरी बताया
यूरोपियन संघ में आने वाले सारे देश इस बात को मानते हैं और हलाल करने से पहले जानवरों को बेहोश किया जाता है. ये कई तरीकों से होता है, जैसे बिजली के झटके से, गैस से या स्टन गन से. साल 1979 से ही ये नियम लागू है ताकि जानवर को बेवजह के दर्द से बचाया जा सके. हालांकि यूरोपियन यूनियन को छोड़ दें तो ज्यादातर देश इसका फैसला समुदाय विशेष और स्लॉटर हाउस पर छोड़ देते हैं. 

Advertisement
halal meat ban in karnataka
हलाल मार्केट ग्लोबली बढ़ता जा रहा है. सांकेतिक फोटो (Reuters)

हिटलर के दौरान बढ़ा पशु-प्रेम
नाजी जर्मनी ने अप्रैल 1933 को ये नियम बनाया था कि जानवरों को बेहोश करके ही काटा जाए ताकि वे दर्द से बच जाएं. ये वही लोग थे, जिन्होंने लाखों लोगों को गैस चैंबर में बंद करके मार डाला. जानवरों को लेकर हालांकि हिटलर काफी दयालु रहा. उसी के दौरान एनिमल प्रोटेक्शन के कई कायदे बने, जैसे जानवरों के कान या पूंछ की छंटाई करते हुए बेहोश करना जरूरी है. या फिर हलाल के दौरान उन्हें बेहोश करना. Animals in the Third Reich किताब में इन बातों पर विस्तार से बताया गया है. 

सर्टिफिकेशन भी जरूरी
हलाल करने से ही काम नहीं चलता, इसके बाद सर्टिफिकेशन की बारी आती है ताकि ग्राहक को पता रहे. इसे हलाल सर्टिफिकेशन कहते हैं. हमारे यहां खाने के बाकी प्रोडक्ट्स को फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया से सर्टिफिकेट मिलता है, वहीं हलाल के लिए अलग व्यवस्था है. इसके लिए कई कंपनियां काम करती हैं, जैसे हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, जमीयत उलमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट और हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड.

halal meat ban in karnataka
अब कॉस्मेटिक्स भी हलाल सर्टिफाइड मिलने लगा है. सांकेतिक फोटो (Pexels)

लेबलिंग के साथ हलाल का मार्केट कितना बड़ा 
एड्राइट मार्केट रिसर्च के मुताबिक हलाल मार्केट में साल 2019 से हर साल 5.6 प्रतिशत की बढ़त हो रही है और 2020 में ही इसका ग्लोबल मार्केट 7 ट्रिलियन डॉलर से ऊपर जा चुका था. इसमें सिर्फ मीट ही नहीं, खाने की सारी चीजें, पेय पदार्थ और दवाएं भी शामिल हैं. यहां ये भी बता दें कि कोविड वैक्सीन बनने के बाद कई मुस्लिम-बहुल देशों ने इसपर भी एतराज किया था कि वैक्सीन हलाल नहीं है. इंडोनेशियाई धर्मगुरुओं ने ये तक अपील कर डाली कि लोग वैक्सीन लगाने से बचें. हालांकि बाद में मामला बदल गया. 

Advertisement

ये धर्म भी अपनाता है हलाल से मिलती प्रक्रिया
धर्म आधारित खानपान को सिर्फ मुस्लिम ही नहीं, कई दूसरे मजहब के लोग भी मानते रहे. जैसे यहूदी धर्म के लोग कोशर मीट खाते हैं. ये हिब्रू शब्द है, जिसका मतलब है शुद्ध या खा सकने लायक. कोशर मीट का भी अलग नियम है, जिसके तहत काटने के दौरान जानवर का सेहतमंद और होश में रहना जरूरी है. साथ ही इसमें खाने की कई चीजों को एक साथ खाने की मनाही है. मिसाल के तौर पर आप मीट और डेयरी प्रोडक्ट एक साथ नहीं ले सकते. यूरोपियन यूनियन के जानवर को बेहोश करके काटने के नियम का यहूदी आबादी ने भी काफी विरोध किया था. 

halal meat ban in karnataka
पिछले दशकभर में हलाल टूरिज्म बढ़ा, जो इस्लामिक मान्यताओं के हिसाब से जायज हो. सांकेतिक फोटो

इन देशों में बैन है हलाल सर्टिफिकेशन
साल 2019 में श्रीलंका में आतंकी हमला हुआ था, जिसके बाद से वहां धर्म-विशेष को लेकर मेजोरिटी बुद्धिस्ट समुदाय में काफी नाराजगी आ गई. इसके बाद ही तत्कालीन सरकार ने हलाल बैन की चर्चा की. हालांकि हलाल पर पूरी तरह से बैन लगाने की जगह ये किया गया कि उत्पादों से हलाल लेबलिंग बंद कर दी गई. वहां केवल उन्हीं प्रोडक्ट्स को हलाल सर्टिफाई किया जा रहा है, जो निर्यात किए जाते हों. खुद स्थानीय मुस्लिम संगठनों ने इंट्रेस्ट ऑफ पीस के हवाले से इसे सही ठहराया था. कई और देश भी हैं, जो खाने पर कोशर या हलाल जैसा कोई स्पेसिफिक सर्टिफिकेट नहीं देते. स्कैंडिनेवियाई और नॉर्डिक देश इसमें शामिल हैं जो फूड इंडस्ट्री को भेदभाव से दूर रखना चाहते हैं. 

Advertisement
Advertisement