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बंगाल में नए साल की धूम के बीच दलित समाज का आरोप- नहीं मिली मंदिर में प्रवेश की इजाजत

आरामबाग के गोघाट थाना इलाके के सालीका गांव में रहने वाले दलित संप्रदाय के लगभग 25 परिवारों के 150 से ज्यादा लोग आज भी समाज की रूढ़िवादी और भेदभाव करने वाली परंपरा के शिकार हैं. आज भी दलित संप्रदाय से संबंध रखने वाले परिवारों को गांव के सजनी पूजा स्थलों में पूजा करने पर सख्त मनाही है.

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कई परिवारों को अभी भी मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं
कई परिवारों को अभी भी मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं
स्टोरी हाइलाइट्स
  • आज बांग्ला कैलेंडर के अनुसार साल का पहला दिन
  • कई परिवारों को अभी भी मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं

बंगाल में विधानसभा चुनाव अपने पूरे रंग में है. दूसरी तरफ कोरोना महामारी की दूसरी लहर अपनी भयावहता से आम लोगों की जिंदगी में कहर ढा रही है. इसी बीच पश्चिम बंगाल में नए साल की धूम मच रही है. आज बांग्ला कैलेंडर के अनुसार साल का पहला दिन यानी "बांग्ला नववर्ष व पयला बैशाख' है. सभी बंगालवासी आज के दिन विभिन्न धार्मिक और पूजा स्थलों में जाकर अपने आराध्य देव से पूरे वर्ष के लिए अपने परिवार की मंगल कामना की विनती करते हैं. लेकिन हुगली जिले के एक गांव के कई परिवारों को अभी भी मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं है. 

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देश की आजादी के 75 साल बीत जाने पर भी हुगली जिले के आरामबाग के गोघाट थाना इलाके के सालीका गांव में रहने वाले दलित संप्रदाय के लगभग 25 परिवारों के 150 से ज्यादा लोग आज भी समाज की रूढ़िवादी और भेदभाव करने वाली परंपरा के शिकार हैं. आज भी दलित संप्रदाय से संबंध रखने वाले परिवारों को गांव के सजनी पूजा स्थलों में पूजा करने पर सख्त मनाही है.

लोगों का आरोप- नीची जाति की वजह से झेल रहे भेदभाव
जिस "ढाक की गूंज के बिना बंगाल की सर्वश्रेष्ठ पूजा आयोजन दुर्गा पूजा" संपन्न नहीं होती. उसी ढाक को बजाने वाले हुगली जिले के आरामबाग के गीघाट के दलित संप्रदाय के लोगों को समाज में घृणा की दृष्टि से देखा जा रहा है. इस संप्रदाय के लोग मूलत विभिन्न पूजा आयोजनों में ढाक बजाने के अलावा खेती-बाड़ी से अपनी जीविका चलाते हैं.

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लोगों का आरोप है कि नीची जाति से संबंधित होने के कारण उन्हें समाज में "तिरस्कार और छोटेपन की भावना" से देखा जाता है. इलाके में आयोजित होने वाले विभिन्न पूजा अनुष्ठानों में वह अन्य बड़े संप्रदाय के लोगों की तरह बाकायदा चंदा भी देते हैं. लेकिन पूजा अनुष्ठानों में उन्हें शामिल नहीं किया जाता है. हाल में ही नील षष्टी पूजा के दिन जब वे मंदिर में पूजा अर्चना करने गए तो इन संप्रदाय की महिलाओं को मंदिर से वापस लौटा दिया गया था.

महिला ने लगाए आरोप- हमने भी दिया चंदा लेकिन नहीं मिलता मंदिर में प्रवेश
गरीब मोची संप्रदाय की एक महिला प्रतिमा दास ने बातचीत के दौरान कहा कि हर पूजा आयोजनों में उनसे भी अमीर और बड़े संप्रदाय के लोगों के समान चंदा लिया जाता है. पिछले साल इलाके में शिव मंदिर के निर्माण के लिए उन्होंने भी सभी के तरह दो हजार रुपये का चंदा दिया था. लेकिन जब वे और उनके जैसे गरीब और मोची संप्रदाय के लोग इलाके के शिव मंदिर में पूजा करने के लिए जाते हैं तो उन्हें मंदिर से भगा दिया जाता है.

यही नहीं प्रतिमा का आरोप है कि उनसे कहा जाता है कि इस मंदिर में छोटे संप्रदाय के लोगों द्वारा भगवान शिव की पूजा करने पर सख्त मनाही है. जबकि आस-पड़ोस के सभी गांवों में इस तरह के किसी भेदभाव और छुआछूत की बात नहीं है. लेकिन हमारे गांव में गरीब और मोची संप्रदाय के 170 लोगों को सालों से इस भेदभाव का शिकार होना पड़ रहा है.

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पुलिस ने भी किया हस्तक्षेप लेकिन नहीं बनी बात
मामला जब पुलिस तक पहुंचा तो थाना प्रभारी अनिल राज ने मामला दर्ज करने के बाद एक समन्वय बैठक बुलाई. लेकिन बात नहीं बनी. मंदिर समिति के लोगों ने यह कहते हुए साफ इनकार कर दिया कि छोटे संप्रदाय के लोग यदि मंदिर में दाखिल होकर पूजा अर्चना करते हैं तो मंदिर अपवित्र हो जाएगा. वहीं दूसरी ओर पुलिस का कहना है कि वह गांव में शांति-व्यवस्था बने रहने के लिए हर संभव कोशिश करेगी लेकिन धार्मिक मामलों में सीधे तौर पर कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहती है.

मंदिर कमेटी के सदस्य ने कहा- नहीं है कोई रोक
इस मुद्दे पर मंदिर कमेटी के सदस्य सजल राय ने कहा, "मंदिर प्रबंधन की तरफ से मोची संप्रदाय के लोगों के मंदिर में प्रवेश करने पर कोई पाबंदी नहीं है. लेकिन उस संप्रदाय के कुछ लोग मंदिर में प्रवेश करते समय प्रबंधन द्वारा बनाए गए कुछ जरूरी नियमों को तोड़ते हैं. इसके अलावा बेवजह छोटी बात का बखेड़ा बनाकर उस संप्रदाय के कुछ लोग मामले को तूल दे रहे हैं."

इनपुट- भोलानाथ साहा

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