मुफ्त की रेवड़ी से राज्यों के नुकसान की बात कोई नई नहीं है, और बता दें कि कांग्रेस शासित राज्य कर्नाटक भी इस समस्या से अछूता नहीं. पानी-बिजली - लगभग सभी चुनावों में, सभी पार्टियां मुफ्त देने की बातें करती हैं, लेकिन इसे लागू करने से राज्य पर बोझ बढ़ जाता है. कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने भी इसे लेकर चिंता जाहिर की. उन्होंने एक बार फिर संकेत दिए हैं कि राजधानी बेंगलुरु में वाटर टैरिफ यानी पानी पर टैक्स बढ़ाया जा सकता है.
उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार, जिन्होंने बेंगलुरु जल बोर्ड (बीडब्ल्यूएसएसबी) सहित विभिन्न बोर्डों के साथ बैठक की. उन्होंने कहा कि कर्नाटक में पानी की दरों में बढ़ोतरी के कदम को खारिज नहीं किया जा सकता. उन्होंने बताया कि पिछले 11 वर्षों से पानी की दरें नहीं बढ़ाई गई हैं.
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प्रति वर्ष 1000 करोड़ से अधिक का घाटा
डीके शिवकुमार ने कहा कि सरकार ने सत्ता में आने के बाद बिजली की दरों में एक तरह से कमी की है, बावजूद इसके कि बिल बढ़ रहे थे. डिप्टी सीएम ने कहा कि सब कुछ मुफ्त में नहीं चलाया जा सकता. परिचालन लागत में बढ़ोतरी की तरफ इशारा करते हुए, डिप्टी सीएम ने कहा कि बीडब्ल्यूएसएसबी को चलाने के लिए पानी की दरों में बढ़ोतरी संभव है कि किया जा सकता है. उन्होंने दावा किया कि पिछले कुछ समय से इसे प्रति वर्ष 1000 करोड़ से अधिक का घाटा हो रहा है.
डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने कहा, "देखिए, पेट्रोल और डीजल के दामों में बढ़ोतरी के बाद, सब कुछ बढ़ गया है. बिजली की दरें आसमान छू रही हैं. सत्ता में आने के बाद, हमने एक तरह से बिजली की दरें कम कर दी हैं. पहले बिल 35 करोड़ आता था, और अब बिजली का बिल 75 करोड़ है. हमने वेतन में भी 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी की. हम कब तक सब कुछ मुफ्त में चला सकते हैं? यह असंभव है. कई लोग वेतन न मिलने की शिकायत करते हैं."
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पानी के लिए नहीं किया जा रहा भुगतान!
डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार का फ्री स्कीम को लेकर यह बयान पहली बार नहीं आया है. राज्य पर बढ़ रहे बोझ को लेकर उनका बयान पहले भी आ चुका है. अगस्त 2024 में भी डिप्टी सीएम ने कहा था कि पानी की दरें बढ़ोतरी की जानी चाहिए.
इंडिया टुडे की दिसंबर 2024 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बीडब्ल्यूएसएसबी गंभीर वित्तीय संकट का सामना कर रहा है, क्योंकि 70 प्रतिशत पानी के बिलों का भुगतान नहीं किया गया है और श्रम लागत में 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. पानी के शुल्क में प्रस्तावित वृद्धि को बोर्ड को अपनी परिचालन लागतों को पूरा करने और अपने वित्तीय संकटों से उबरने में मदद करने के लिए एक जरूरी कदम के रूप में देखा जा रहा है.