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सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा की जमानत याचिका

शीर्ष अदालत ने 3 मार्च को NIA से नवलखा की याचिका पर जवाब मांगा था जिसमें उन्होंने दावा किया है कि आरोप पत्र निर्धारित समय अवधि के भीतर दाखिल नहीं किया गया था और इसलिए वह डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए हकदार हैं.

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सुप्रीम कोर्ट (पीटीआई)
सुप्रीम कोर्ट (पीटीआई)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • SC ने जमानत याचिका पर 26 मार्च को फैसला सुरक्षित रखा था
  • कोर्ट ने 3 मार्च को NIA से जमानत याचिका पर मांगा था जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने आज बुधवार को सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा की वो याचिका खारिज कर दी, जिसमें महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव के एल्गार परिषद-माओवादी लिंक के मामले में जमानत मांगी गई थी.

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जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस केएम जोसेफ की एक बेंच ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ गौतम नवलखा की अपील को खारिज कर दिया और मामले में जमानत देने से इनकार कर दिया.

जस्टिस जोसेफ बेंच की ओर से फैसला सुनाया गया. उन्होंने कहा कि अदालत नवलखा की अपील को खारिज कर रही है. 26 मार्च को शीर्ष अदालत ने नवलखा की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

शीर्ष अदालत ने 3 मार्च को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से नवलखा की याचिका पर जवाब मांगा था जिसमें उन्होंने दावा किया है कि आरोप पत्र निर्धारित समय अवधि के भीतर दाखिल नहीं किया गया था और इसलिए वह डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए हकदार हैं. 

उसके खिलाफ जनवरी 2020 में फिर से एफआईआर दर्ज की गई थी और नवलखा ने पिछले साल 14 अप्रैल को एनआईए के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था. उन्होंने 25 अप्रैल तक NIA की हिरासत में 11 दिन बिताए थे और तब से वह न्यायिक हिरासत में हैं.

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अभियोजन पक्ष के अनुसार, कुछ कार्यकर्ताओं ने कथित तौर पर 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में एल्गार परिषद की बैठक में भड़काऊ भाषण और बयान दिए, जिसके बाद अगले दिन जिले के कोरेगांव भीमा में हिंसा भड़क उठी. इन पर यह भी आरोप लगा कि घटना को कुछ माओवादी गुटों द्वारा समर्थित किया गया था. 

इससे पहले 8 फरवरी को बॉम्बे हाई कोर्ट ने नवलखा की याचिका को खारिज कर दिया था. हाई कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि जिस अवधि के लिए किसी अभियुक्त को अवैध हिरासत में रखा गया, उसे डिफॉल्ट जमानत देने के लिए 90 दिनों की हिरासत अवधि की गणना करते समय ध्यान नहीं दिया जा सकता.

 

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