
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी. इन तीनों कृषि कानूनों के विरोध में किसानों ने लंबे समय तक आंदोलन किया और इसी का परिणाम है कि सरकार को इन्हें वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा. किसानों के इस आंदोलन के कई चेहरे रहे जिनकी जिद के आगे सरकार झुक गई.
राकेश टिकैत के ‘आंसू’ बने आंदोलन की ‘धार’
किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख राकेश टिकैत कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन का सबसे बड़ा चेहरा बनकर सामने आए. लंबे समय से चल रहे आंदोलन के दौरान एक समय ऐसा आया जब उसकी धाक कमजोर पड़ती दिखाई दी. दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर राकेश टिकैत के नेतृत्व में आंदोलन कर रहे किसानों पर प्रशासनिक कार्रवाई की कोशिश हुई, लेकिन राकेश टिकैत अपने इरादों से टस से मस नहीं हुए और इस दौरान उनकी आंखों में ‘आंसू’ होने की तस्वीरें और वीडियो मीडिया में दिखाई दी और इसने किसानों के इस आंदोलन को एक नई ‘धार’ दी.
किसान आंदोलन को देश और मुख्य तौर पर उत्तर प्रदेश में फैलाने के लिए राकेश टिकैट ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया और वो कई मंचों से सरकार को ललकारते नजर आए. इस तरह किसानों के आंदोलन का वो सबसे बड़ा चेहरा बन गए. राकेश टिकैत के पिता महेंद्र सिंह टिकैत भी अपने समय के सबसे बड़े किसान नेता थे.
हरियाणा में आंदोलन संभाला योगेन्द्र यादव ने
अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का प्रमुख चेहरा और बाद में आम आदमी पार्टी से जुड़े रहे स्वराज पार्टी के प्रमुख योगेन्द्र यादव हरियाणा में किसानों के इस आंदोलन का सबसे बड़ा चेहर बनकर सामने आए. हरियाणा में नेताओं के घर का घेराव हो या उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला को किसानों के मुद्दे पर बार-बार घेरना, योगेन्द्र यादव ने हर तरह से किसानों के इस आंदोलन में बार-बार जान फूंकी और अपने तर्कों से किसानों की समस्या को देश के सामने लाने में सफल रहे.
किसानों के संयुक्त मोर्चा का चेहरा
कृषि कानूनों के विरोध में देश के अलग-अलग हिस्सों में चल रहे आंदोलन को एक बैनर के नीचे लाने में पंजाब के किसान नेता डॉ. दर्शन पाल की अहम भूमिका रही. दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पर किसानों के आंदोलन की अगुवाई करने और किसान संयुक्त मोर्चा बनाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई. अपने सार्वजनिक जीवन के 36 साल में कई उतार चढ़ाव देखने वाले दर्शन पाल जय प्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति से भी जुड़े रहे. सरकार के तीनों कृषि कानून वापस लेने के बाद उन्होंने कहा कि अभी एमएसपी और बाकी मुद्दों को लेकर किसानों का आंदोलन जारी रहेगा.
किसानों के राजनीति में आने के पक्षधर
हरियाणा के किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी भी कृषि कानून विरोधी आंदोलन का अहम नाम रहे. किसान संयुक्त मोर्चा के सदस्य चढ़ूनी कई मौकों पर किसानों के राजनीति में आने की बात करते रहे हैं. उनका मानना है कि किसानों के हक की बात संसद में रखने के लिए उनके बीच का ही कोई नेता वहां होना चाहिए. हाल में उन्होंने पंजाब से चुनाव लड़ने के भी संकेत दिए. किसानों के दिल्ली मार्च में उनकी भूमिका अहम रही. हालांकि कई बार उन्हें किसान नेता राकेश टिकैत का विरोध करते भी देखा गया है, लेेकिन किसानों के मुद्दे को लेकर वो भी उतने ही संघर्षरत रहते हैं.
दिल्ली बॉर्डर पर मोर्चा संभाला बलबीर सिंह राजेवाल
भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) के अध्यक्ष बलबीर सिंह राजेवाल किसान आंदोलन का एक और बड़ा चेहरा बनकर सामने आए. पंजाब के किसानों के आंदोलन को दिल्ली लाने और फिर दिल्ली के हरियाणा बॉर्डर पर किसानों के आंदोलन को मजबूती से खड़ा रखने में राजेवाल की अहम भूमिका रही. कृषि कानूनों की कमियों को मीडिया के सामने रखने से लेकर आंदोलन की व्यवस्था को बनाए रखने में बलबीर सिंह राजेवाल ने अपना जोर लगा दिया.
इसी तरह पंजाब और हरियाणा से आने वाले बड़े किसान नेताओं में सुखदेव सिंह कोकरीकलां और जगमोहन सिंह का भी नाम रहा. इन्हीं बड़े किसान नेताओं की जिद के आगे झुकना पड़ा और तीनों कृषि कानून वापस लेने पड़े
ये भी पढ़ें: