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बढ़ती आबादी के लिए कौन जिम्मेदार है? बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसके लिए महिलाओं को जिम्मेदार मानते हैं. उनका मानना है कि अगर महिलाएं पढ़ी-लिखी होंगी तो आबादी भी घटने लगेगी.
दरअसल, नीतीश कुमार ने एक सभा में कहा,'मर्द लोग को ध्यान में ही नहीं रहता कि बच्चा पैदा नहीं करना है. महिला पढ़ी रहती है तो उनको सब चीज का ज्ञान हो जाता है कि भाई कैसे हमको बचना है.'
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस बयान पर बवाल भी मच गया. बीजेपी ने इसे 'सड़क छाप' बयान बताया है. पूर्व डिप्टी सीएम और राज्यसभा से बीजेपी सांसद सुशील मोदी ने कहा कि जबसे उन्होंने आरजेडी से हाथ मिलाया है तब से नीतीश कुमार ने अपनी शालीनता खो दी है.
बीजेपी प्रवक्ता निखिल आनंद ने इस बयान को 'सेक्सिस्ट' बताया है. उन्होंने कहा कि अब तक ऐसा लगता था कि वो समाज को बांटना चाहते हैं, लेकिन अब वो लोगों के घरों में टेंशन बढ़ाना चाहते हैं. निखिल आनंद ने इस बयान के लिए नीतीश कुमार से माफी मांगनी को कहा है.
बहरहाल, आबादी के लिहाज से उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद तीसरे नंबर पर बिहार है. लेकिन साक्षरता दर के मामले में सबसे नीचे हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (NFHS-5) के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में पुरुष और महिला की साक्षरता दर में 20% से ज्यादा का अंतर है. बिहार में पुरुषों की साक्षरता दर 76 फीसदी से ज्यादा है, जबकि महिलाओं की 55 फीसदी. यानी, हर 100 में से 76 पुरुष और 55 महिलाएं पढ़ना-लिखना जानते हैं.
पढ़ाई-लिखाई और आबादी में कुछ कनेक्शन?
इसे एक उदाहरण से समझते हैं. केरल देश का सबसे शिक्षित राज्य है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, यहां की 94 फीसदी आबादी शिक्षित है.
केरल में महिलाओं की साक्षरता दर 1991 में 86% थी, जो 2001 में बढ़कर 88% और 2011 में बढ़कर 92% हो गई. इससे आबादी बढ़ने की दर यानी पॉपुलेशन ग्रोथ में भारी कमी आई. 1991 से 2001 के बीच केरल में आबादी बढ़ने की दर 9.32% थी. जबकि 2001 से 2011 के बीच केरल की आबादी 4.9% बढ़ी.
इसी तरह, बिहार में 2001 में महिलाओं की साक्षरता दर 33% थी, जो 2011 में बढ़कर 53% से ज्यादा हो गई. इसका असर आबादी बढ़ने की दर पर भी दिखा. 1991 से 2001 के बीच बिहार में 29% की दर से आबादी बढ़ी, जो 2001 से 2011 के बीच थोड़ी कम होकर 25% हो गई.
इतना ही नहीं, सैम्पल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) की 2020 की रिपोर्ट से भी ये साफ होता है कि पढ़ाई और फर्टिलिटी रेट यानी प्रजनन दर में सीधा-सीधा कनेक्शन है. ये रिपोर्ट बताती है कि अशिक्षित मां में फर्टिलिटी रेट 3.1 है, जबकि शिक्षित मां में ये दर 1.9 है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, फर्टिलिटी रेट यानी, एक महिला अपने जीवनकाल में कितने बच्चों को जन्म दे रही है या दे सकती है.
एसआरएस की रिपोर्ट बताती है कि अगर मां अशिक्षित है तो वो अपने जीवन में औसतन तीन बच्चों को जन्म देती है. वहीं, अगर मां शिक्षित है तो वो दो या उससे भी कम बच्चे पैदा करती है. महिलाओं में फर्टिलिटी रेट उनकी पढ़ाई बढ़ने के साथ और कम होता जाता है. मसलन, अगर मां ने 10वीं तक ही पढ़ाई की है उसमें फर्टिलिटी रेट 1.9 है, लेकिन ग्रेजुएशन या उससे ज्यादा की पढ़ाई की है तो ये दर 1.6 है.
हालांकि, बिहार इस मामले में काफी पीछे है. बिहार में शिक्षित महिलाओं में फर्टिलिटी रेट 2.8 है, जो राष्ट्रीय औसत (1.9) से कहीं ज्यादा है. इसी तरह अशिक्षित महिलाओं में फर्टिलिटी रेट 3.8 है, जबकि राष्ट्रीय औसत 3.1 है.
पढ़ाई-लिखाई और बढ़ती आबादी का कनेक्शन...
- NFHS-5 के आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं का शिक्षा स्तर जितना ज्यादा होता है, उनका फर्टिलिटी रेट उतना ही कम होता है. 12वीं या उससे आगे की पढ़ाई करने वालीं महिलाएं अपने जीवनकाल में औसतन 1.8 बच्चों को जन्म देती हैं, जबकि कभी स्कूल न जाने वालीं महिलाएं औसतन 2.8 बच्चे पैदा करतीं हैं.
- दो बच्चों में जन्म का अंतर कम से कम 24 महीने होना चाहिए. भारत में दो बच्चों में जन्म के बीच औसतन 32.7 महीने का अंतर होता है. पढ़ाई-लिखाई का इस अंतर पर भी असर पड़ता है. स्कूल जाने वालीं महिलाओं के दो बच्चे में औसतन 36.1 महीने का अंतर होता है. लेकिन जो महिलाएं कभी स्कूल नहीं गईं, उनके दो बच्चों में 30.9 महीने का ही अंतर है.
- भारत में एक महिला औसतन 21.2 साल की उम्र में अपने पहले बच्चे को जन्म दे देती हैं. अगर महिला कभी स्कूल नहीं गई है तो उसका पहला बच्चा औसतन 19.9 साल की उम्र में हो जाता है. लेकिन अगर उसने 12वीं या उससे ज्यादा पढ़ाई की है तो पहला बच्चा औसतन 24.9 साल की उम्र में होता है.
- जैसे-जैसे लड़कियां शिक्षित हो रही हैं, उनमें टीनेज प्रेग्नेंसी भी कम देखने को मिल रही हैं. 15 से 19 साल की 18 फीसदी लड़कियां, जिनकी कोई स्कूलिंग नहीं हुई है, उनमें टीनेज प्रेग्नेंसी देखी गई है. जबकि 12 या इससे आगे की पढ़ाई करने वाली महज चार फीसदी महिलाओं में ही टीनेज प्रेग्नेंसी देखी गई.
क्या फैमिली प्लानिंग सिर्फ महिलाओं की जिम्मेदारी?
देश में एक तिहाई पुरुष ऐसे हैं जिनका मानना है कि फैमिली प्लानिंग की जिम्मेदारी सिर्फ महिलाओं की ही है.
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के मुताबिक, 35 फीसदी से ज्यादा पुरुषों का मानना है कि फैमिली प्लानिंग करने का काम महिलाओं का है और उन्हें इस बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है. बिहार में करीब 50 फीसदी पुरुष ऐसा ही सोचते हैं.
इतना ही नहीं, देश में 20 फीसदी पुरुष तो ऐसे भी हैं जो ये सोचते हैं कि अगर कोई महिला कंडोम जैसे कोई गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करती है तो उसके और कई पुरुषों के साथ संबंध हो सकते हैं. बिहार में लगभग 14 फीसदी पुरुषों की यही सोच है.
इसके अलावा भारत में 97% पुरुषों और 87% महिलाओं को कंडोम के बारे में पता है. 55% से ज्यादा पुरुष मानते हैं कि अगर कंडोम का सही से इस्तेमाल किया जाए तो अनचाही प्रेग्नेंसी रुक सकती है. पर इसके बावजूद देश में सिर्फ 9.5 फीसदी पुरुष ही कंडोम का इस्तेमाल करता है. यानी, 10 में से एक पुरुष ही ऐसा है जो सेक्स के समय कंडोम का इस्तेमाल करता है.