बिहार विधानसभा चुनाव में पहले चरण के मतदान से ठीक पहले सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है. इसमें अपील की गई है कि इलेक्टोरेल बॉन्ड के जरिए जो भी राजनीतिक दलों को चंदा दिया जा रहा है, उनकी पहचान जनता के सामने आनी चाहिए. याचिकाकर्ताओं की ओर से इस मसले पर तुरंत सुनवाई की मांग की गई है ताकि बिहार के मतदाताओं के सामने स्थिति स्पष्ट हो.
ये याचिका एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (ADR) ने दायर की है. जिसमें इलेक्टोरेल बॉन्ड के दानदाताओं के नाम में पारदर्शिता लाने की अपील की गई है.
आपको बता दें कि इलेक्टोरल बॉन्ड की स्कीम के जरिए कोई भी नागरिक, संगठन या संस्थान किसी भी राजनीतिक दल को कितनी भी रकम चंदे के रूप में दे सकता है. इसका पता सिर्फ देने वाले लेने वाले और सरकार यानी आयकर विभाग को ही रहता है, आम जनता तक ये जानकारी नहीं पहुंच पाती है.
जिस वक्त ये नियम आया था, तब भी जानकारी सार्वजनिक करने पर विवाद हुआ था. तब सरकार ने ये दलील दी थी कि चंदा देने वाले नहीं चाहते कि उनकी पहचान जनता के बीच उजागर हो. उन पर किसी खास राजनीतिक दल को ही समर्थन या मदद देने का ठप्पा लगे. लिहाजा सरकार ने चंदादाताओं के नाम और चंदे के तौर पर दी गई रकम को सार्वजनिक ना करने की नीति बना दी.
दरअसल, बैंकों के जरिए चंदादाता बॉन्ड्स खरीदते हैं और अपनी पसंद के राजनीतिक दलों के खाते में जमा करा देते हैं. इससे राजनीतिक दलों को चंदे से होने वाली आमदनी को लेकर पारदर्शिता अधिक हो जाती है.
बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका पर शीघ्र सुनवाई की मांग ऐसे नाजुक चुनावी वक्त पर आई है जब बिहार चुनाव के पहले चरण का मतदान बस सिर पर है और अगले पखवाड़े भर में चुनावी प्रक्रिया पूरी हो जाएगी. लिहाज़ा इस मामले में कोर्ट का रुख अहम होगा.