scorecardresearch
 

शारदा के सुर, गांव के गीत और लोक का संगीत... बिहार कोकिला तुम्हें अंतिम प्रणाम!

शारदा सिन्हा नहीं रहीं, तो अब धान रोपनी में भी संगीत नहीं है, मेड़ लगाने और बोअनी (फसल बुआई) में भी कोई आवाज नहीं है. खेत में पानी लगाने के दौरान और फसल काटने के वक्त भी जो सुर गूंजते थे वो सब शांत हो गए हैं. और छठ पूजा की बात ही क्या की जाए.

Advertisement
X
लोक गायिका शारदा सिन्हा (तस्वीर: IG/Sharda Sinha)
लोक गायिका शारदा सिन्हा (तस्वीर: IG/Sharda Sinha)

ट्रेनें हैं... लुधियाना से आ रही हैं, हिसार से आ रही हैं... पूणे और बंबई से भी, चार हिस्सों में बंटी हैं दिशाएं, तो तीन तरफ से ट्रेनें धड़ा-धड़ चली आ रही हैं. लेकिन ये जा कहां रही हैं? जा रही हैं, पोखरा, तालाब, गड़ही और नदी की ओर, जहां केहू के माई, तो दीदिया अऊर पतनी चुनरी-पियरी पहिर के घुटवन तक पानी में खड़ी बिया और बाट निहारतिया कि हमार लइका, भइया, और हमरे ऊ अबहीं आवत हुइहें और फिर छठी मइया के कोसा भराइहें. (जहां किसी की मां-दीदी या फिर पत्नी लाल-पीली साड़ी पहन कर घुटनों तक पानी में खड़ी हैं और इंतजार कर रही हैं कि बेटा-भाई या पति अभी आते होंगे और छठ माता के लिए कोसी भरी जाएगी.)

Advertisement

इनके भाई-बेटे पति कहां रह गए हैं? वो इन्हीं ट्रेनों में हैं. किसी को टिकस (टिकट) मिलबे नहीं किया, किसी को मिला है, तो वेटिंग का नंबर उनकी जेब में बचे-खुचे सैकड़े से ज्यादा है. कोई सिर पर सारा सामान लादे जनरल डिब्बे की हजार भीड़ में किसी तरह घुस आया है. सामान उसने किसी सीट के नीचे टिका दिया है और खुद गेट पर लटका हुआ है. ट्रेन का जनरल डिब्बा वो जगह होती है, जिसकी मियाद तो सिर्फ 72 लोगों की होती है, लेकिन इसमें भीड़ की तादाद की कोई सीमा नहीं होती. कोच के फर्श पर, सामान रखने के रैक पर, दरवाजों पर और यहां तक कि शौचालयों में भी... जहां तक नजरें जा सकें वहां सिर्फ आदमी और आदमी की जात. धुन सिर्फ एक कि गांव पहुंचना है किसी तरह और पता है इस धुन को जो आवाज आज तक सुर देकर जिंदा रखती आई थी, वो किसकी थी? शारदा सिन्हा की... वही आवाज जो इसी पावन, लोक-लुभावन पर्व के मौके पर मौन हो गई है. 

Advertisement

फिल्मों को सौगात

सुरों की ये 'सरस्वती' बिहार-झारखंड के लोकपर्व छठ की प्रतिनिधि आवाज के तौर पर पहचानी जाती रही हैं, लेकिन शारदा सिन्हा के परिचय का उनवान तो इससे कहीं ऊंचा है. वह लोकरंग की ऐसी आवाज हैं कि उनके बिना सिर्फ छठ व्रत ही नहीं, बल्कि विवाह, भजन-कीर्तन,  जन्म-जनेऊ, मुंडन-टुंडन सब अधूरे हैं. जो पूरब से वास्ता नहीं रखते हैं, उन्होंने 'मैंने प्यार किया' फिल्म से वो गीत तो सुना ही होगा 'कहे तोसे सजना...'. सच मानिए तो यही गीत अब बाजारवाद की भेंट चढ़ चुके करवाचौथ का प्रतिनिधि गीत है. इस गीत को सुनते जाइए और हर अंतरा के साथ बड़जात्या परिवार की बलैयां लेते जाइए कि उन्होंने परिवार प्रधान फिल्मों की जो खूबसूरत सौगात दी है, उसमें ये गीत तो हीरा-पन्ना की तरह है और अनमोल है. अगर इसे शारदा सिन्हा नही गातीं, तब भी ये गीत तो बना ही रहता लेकिन कोहिनूर नहीं बन पाता.

यह भी पढ़ें: 'चली गईं बिहार की माटी की मिठास...', शारदा सिन्हा को याद कर नम हुईं पवन-खेसारी की आंखें

जितना खूबसूरत यह गीत है, इसे फिल्माया भी उतनी ही खूबसूरती से गया है. शुरुआत होती है तो नायक और नायिका अपने दांपत्य जीवन की शुरुआत कर रहे होते हैं. यह संघर्षशील शुरुआत निःशब्द रह जाती, अगर शारदा सिन्हा अपनी खनकती आवाज में नायिका के मनोभावों को सुर नहीं देतीं. वह हृदय की गहराईयों से बोल पड़ती है ...

Advertisement

कहे तोसे सजना, ये तोहरी सजनिया 
पग पग लिये जाऊं, तोहरी बलइयां
मगन अपनी धुन में, रहे मोरा सैंया
पग पग लिये जाऊं, तोहरी बलइयां

गीत अपने आखिरी पैरा में भाव और भावना के सबसे ऊंचे पर्वत पर पहुंच जाता है, जब जमाने भर की दूसरी औरतें करवाचौथ पूजा कर रही हैं और अपनी ये नायिका भी ऐसा ही कुछ करना चाहती है, लेकिन न तो वह रिवाज जानती है और न ही तौर-तरीका. फिर इसी बेबसी को सबसे सुंदर शब्दों और सुरों में पिरोकर आवाज दी है शारदा सिन्हा ने.

मैं जग की कोई, रीत न जानूं 
मांग का तोहे, सिंदूर मानूं 
तू ही चूड़ी मोरी, तू ही कलइयां 
पग पग लिये जाऊं, तोहरी बलइयां।।

ऐसा कहती हुई वह अपने अपने चांद जैसे पति को देखती है. दूसरी ओर चंद्र पूजन कर अन्य महिलाएं अपने रिवाज निभा रही हैं. नायिका भी देखा-देखी ऐसा करना चाहती है, अपने पिया को थका हुआ, सुख से सोता हुआ देखकर रिवाजों के लिए संकोच कर जाती है. फिर अपने प्रेम भाव को ही साक्षी मानकर सोते हुए पति का चरण स्पर्श कर पूर्णाहुति जैसा ही अनुभव करती है और व्रत पूरा होना मान लेती है. दृश्य में जो पवित्रता है, उसके पीछे की आत्मा शारदा सिन्हा की आवाज ही है, जिन्होंने बड़ी खूबसूरती से इसे न सिर्फ कर्णप्रिय बनाया, बल्कि दिल की गहराइयों में भी उतार दिया. 'मैंने प्यार किया' फिल्मी दुनिया में सलमान खान-भाग्यश्री की हिट फिल्म मानी जाती है, लेकिन असल में ये गीत ही फिल्म की जान है. ये उसी 'सुर शारदा' की आवाज का जादू है.

Advertisement

यह भी पढ़ें: शारदा की गायिकी के खिलाफ थीं सास, भूख हड़ताल पर बैठीं, पति ने ऐसे संभाली बात

शांत हो गए गूंजते स्वर...

शारदा सिन्हा नहीं हैं, तो अब धान रोपनी में भी संगीत नहीं है, मेड़ लगाने और बोअनी (फसल बुआई) में भी कोई आवाज नहीं है. खेत में पानी लगाने के दौरान और फसल काटने के वक्त भी जो सुर गूंजते थे वो सब शांत हो गए हैं. अब कोई सुग्गा चोर (तोता) मकई के खेत से सोनवा का मोती (भुट्टे के दाने) नहीं चुराएगा. अमराई (आम के बाग) में कोइलिया (कोयल) किसके गीत गाएगी? 

नई नवेली दुल्हन को कौन समझाएगा कि 'दुल्हिन धीरे-धीरे चलिहौ ससुर गलिया'. अब नई ब्याहताएं शिकायत करते हुए कैसे कहेंगी कि 'छोटकी ननदिया बनेली सवतिनियां, ननदी के गवना कराई द.' वो अपने ससुराल वालों से कैसे कहेंगी कि पटना से वैद्यजी को बुला दीजिए, तबीयत नहीं ठीक है. वो कैसे कहेंगी कि पटना से बैदा बुलाई द, नजरा गईली गुइयां. वो बिचारी कैसे कहेगी, 'एही ठम टेकुली हेरा गईल रामा...' (यही कहीं बिंदी खो गई है मेरी) 

ऐसी ही तमाम बातें, जो गांव-गिरांव में औरतों-महिलाओं के बीच रहीं और कभी कही नहीं जा सकीं, वह सारी बातें शारदा सिन्हा के लोक गीतों का हिस्सा बनीं. बेशक उन्हें लिखा किसी और ने है, लेकिन उन्हें जो आयाम मिला वो शारदा सिन्हा की आवाज में ही मिला. ये आवाज न होती तो ये गीत और उनमें छिपी रसभरी सरल बातें अनसुनी ही रहतीं. लोक गीतों का एक हिस्सा अधूरा ही रहता या शायद होता भी कि नहीं... आज के जिस दौर में जब भोजपुरी गीत अपनी अश्लीलता के कारण संघर्ष और विवाद के कुरुक्षेत्र में फंसे हुए हैं, शारदा सिन्हा की जैसी आवाजें और संगीत ही इसकी मधुरता को जिंदा रखे हुए हैं. वे ही इसकी प्राण हैं, वही उसकी चेतना हैं. 

Advertisement

ठसाठस भीड़ से भरी भारतीय रेलें बिहार की ओर बढ़ रही हैं. आदमी दम साधे भीड़ में धंसा हुआ है. हवा बड़ी मुश्किल से खिड़कियों से अंदर आ पा रही है, ऊपर की सीट पर बैठे लोग हिचकोले खा रहे हैं, नेपथ्य में सुनाई दे रही है एक आवाज... पहिले पहल हम कईनी! छठी मइया बरत तोहार. "सुरों की ऐसी साधिका शारदा को प्रणाम, उन्हें विदा..."

Live TV

Advertisement
Advertisement