scorecardresearch
 

बिहार में 1931 से अब तक कितने बदले जातियों के आंकड़े? 2024 में कितना कारगर रहेगा ये दांव

बिहार सरकार ने सोमवार को राज्य में कराई गई जातिगत जनगणना के आकंड़ें जारी किए हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में 36 फीसदी अत्यंत पिछड़ा, 27 फीसदी पिछड़ा वर्ग, 19 फीसदी से थोड़ी ज्यादा अनुसूचित जाति और 1.68 फीसदी अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या बताई गई है.

Advertisement
X
बिहार में जातिगत जनगणना पर सियासी घमासान
बिहार में जातिगत जनगणना पर सियासी घमासान

नाम-धाम कुछ कहो, बताओ कि तुम जाति हो कौन? ये पंक्तियां रामधारी सिंह दिनकर की हैं, जो आज की सियासत में एकदम फिट बैठती हैं. बिहार में नीतीश कुमार और उनकी सहयोगी आरजेडी शायद यही कह रही हैं कि बीजेपी से लड़ना हो तो मत गहो मौन- बताओ कि तुम जाति हो कौन? ऐसे में बिहार की नीतीश सरकार ने जातिगत जनगणना के आकड़ें जारी कर दिए हैं. इन आंकड़ों में कई दिलचस्प बातें निकलकर सामने आई हैं.

Advertisement

देश में आखिरी बार 1931 में जातिगत जनगणना हुई थी. उसे आधार बनाकर अब तक बिहार में जातियों की जनसंख्या का जो अनुमान लगाया जाता है, करीब-करीब उतना ही अनुमान आधिकारिक तौर पर जारी किए गए सर्वे में भी सामने आया है. पहले अनुमान था कि अगड़ें 15 फीसदी हैं. लेकिन सोमवार को जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक राज्य में अगड़ों की संख्या 15.52 फीसदी हैं. लेकिन दिलचस्प ये कि अगर अलग-अलग अगड़ी जातियों के अनुमान और आंकड़ों की बात करें तो फर्क दिखेगा.

अगड़ी जातियों में अमूमन चार जातियां भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और कायस्थ हैं. अब पहले अनुमान लगाया जाता था कि भूमिहार चार फीसदी हैं लेकिन आज के आंकड़ों के मुताबिक भूमिहार 2.86 फीसदी हैं.राजपूतों का अनुमान पांच फीसदी था लेकिन आज के आंकड़े बताते हैं कि वो 3.45 फीसदी हैं. ब्राह्मणों का अनुमान पांच फीसदी था लेकिन आधिकारिक आंकड़ा 3.65 फीसदी है. माना जाता था कि बिहार में कायस्थों की संख्या एक फीसदी है लेकिन असली आंकड़े दशमलव छह फीसदी हैं. 

Advertisement

अब पिछड़ों की बात करते हैं. अनुमान था कि ओबीसी 26 से 28 फीसदी होंगे. असली आंकड़ें 27.12 फीसदी हैं. यादवों के 12 से 14 फीसदी होने का अनुमान था लेकिन वो 14.26 फीसदी हैं. कुर्मी के चार फीसदी का अनुमान था लेकिन वो 2.8 फीसदी हैं और कोयरी के 4-6 फीसदी का अनुमान था वो 4.2 फीसदी हैं. अति पिछड़ों के 26 फीसदी का अनुमान था वो 36 फीसदी हैं. दलितों के 19 फीसदी का अनुमान था वो 19.65 फीसदी हैं.

अब आपको दिलचस्प आंकड़ा दिखाते हैं 2011 की जनगणना में हिंदू 82.7 फीसदी थे लेकिन अब घटकर 82 फीसदी से नीचे आ गए है. वहीं मुसलमान बढ़ गए हैं. 2011 में मुसलमान 16.9 फीसदी थे लेकिन अब 17.7 फीसदी हो गए हैं.

अब सवाल ये है कि जातीय जनगणना का फायदा किसे होगा और कैसे होगा? ये सवाल इसलिए अहम है क्योंकि बिहार का ऐसा शायद ही कोई नेता होगा जिसके पास जातीयों के अनुमान वाला आंकड़ा ना हो क्योंकि बिहार में जातियों के आधार पर वोटिंग कोई नई बात नहीं है.

क्या गेमचेंजर हैं ओबीसी जातियां?

बिहार की सियासत में सबसे बड़ा गेम चेंजर ओबीसी जातियां बनकर निकली हैं. जब नीतीश कुमार पहली बार सत्ता में आए थे तभी वो भांप गए थे कि राज्य में जाति के खेल के बिना सियासत नहीं की जा सकती. यही वजह है कि नीतीश कुमार ने बिहार में पिछले वर्ग को दो भागों में बांटा. पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग, जो इस जातिगणना में करीब 63 फीसदी तक है. इसमें सबसे ज्यादा अति पिछड़ा वर्ग 36 फीसदी है. वहीं, पिछड़ा वर्ग 27 फीसदी है. ऐसे में 63 फीसदी आबादी वाले इस वर्ग को कुल आरक्षण 30 फीसदी मिल रहा है. अब सवाल ये कि क्या संख्याबल के आधार पर आरक्षण को बढ़ाया जाएगा. अगर ऐसा होता है तो एक बार फिर मंडल वाला सियासी खेल नीतीश और लालू की अगुवाई में बिहार से देश के बाकी राज्यों तक पहुंच सकता है.

Advertisement

बिहार में सबसे बड़े गेम चेंजर अति पिछड़ा वर्ग बनने वाले हैं, जिनकी आबादी 36 फीसदी है. इसमें करीब 144 जातियों को शामिल किया गया है, जिसमें कुम्हार, बढ़ई, लोहार, कहार जैसी जातियां शामिल हैं. देश में ओबीसी जाति करीब 50 फीसदी से ज्यादा मानी जाती है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ओबीसी जाति से आते हैं. वहीं महिला आरक्षण के वक्त भी विपक्ष लगातार ओबीसी के मुद्दे को उठा रहा था और अब जाहिर तौर पर इस मुद्दे को और बल मिलेगा.

साल 1881 में पहली बार जनगणना के आंकड़े जारी किए गए थे और उसके बाद हर 10 साल में जनगणना की जाती थी. उस समय जाति के आधार पर जनगणना की जाती थी. जातिगत जनगणना के आंकड़े आखिरी बार 1931 में जारी किए गए थे. हालांकि, उसके बाद 1941 में भी जातिगत जनगणना हुई थी, लेकिन उसके आंकड़े जारी नहीं किए जा सके थे. जातिगत जनगणना में 1941 के बाद से अनुसूचित जाति और जनजाति की जनगणना होती है, लेकिन बाकी जातियों की अलग से जनगणना नहीं होती है. अब जनगणना में सिर्फ धर्मों के आंकड़े जारी किए जाते हैं, जिसके बाद इसे लेकर काफी वक्त तक सियासत हुई. अब बिहार में जाति जनगणना के बाद बाकी राज्य भी अब जाति के आधार पर आंकड़े जारी करने की तैयारी कर रहे हैं. इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर जाति के आधार पर लोगों का बांटने का आरोप लगाया है.

Advertisement

बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ से ज्यादा है. आंकड़ों के मुताबिक बिहार में हिंदुओं की आबादी सबसे ज्यादा है. राज्य में 81.99 फीसदी आबादी हिंदू हैं. वहीं बिहार में मुस्लिम आबादी की बात की जाए तो राज्य में कुल आबादी का 17.70 फीसदी हिस्सा मुस्लिम धर्म को मानता है. राज्य में ईसाई धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या 1 फीसदी से भी कम हैं.  राज्य में ईसाइयों की आबादी कुल आबादी का महज 0.05 फीसदी है, जिसके बाद सिख बौद्ध और अन्य धर्मों की आबादी आती है.

वर्ग के आधार पर बात करें तो बिहार में अति पिछड़ा वर्ग सबसे ज्यादा 36 फीसदी, ओबीसी 27 फीसदी और एससी 19 फीसदी हैं. जनरल कैटेगरी में करीब 15 फीसदी लोग आते हैं. बिहार सरकार ने जातिगत आंकड़ों को जारी करके 2024 में जाति के मुद्दे की रणभेरी बजा दी है, जाहिर सी बात है कि अब आगे की जो सियासी लड़ाई होगी उसमें जाति का मुद्दा जमकर गूंजेगा. इसके अलावा ओबीसी को लेकर अबतक जो जंग चल रही थी, उसे भी अब और जोर शोर से उठाया जाएगा.

2024 में कितना कारगर होगा दांव?

इन जातिगत आंकड़ों ने 2024 के समर की रूपरेखा खींच दी है, अब सवाल ये है कि इन जातिगत सर्वे का असर कितना होगा और बीजेपी विपक्ष के इस दांव की क्या काट निकालेगी. बिहार की सियासत में जाति के असर को कोई भी नजरअंदाज नहीं कर सकता. यही वजह है कि सर्वे का समर्थन करने वाली बीजेपी आंकड़े आने के बाद आर्थिक सर्वे जारी करने की बात कह रही है. नीतीश सरकार ने जाति वाली सियासत की ओर एक बड़ा कदम बढ़ा दिया है, जिसका असर देश की राजनीति पर पड़ना तय है क्योंकि पांच राज्यों के विधानसभा के ऐलान से पहले ही ओबीसी की भागीदारी का मुद्दा तेजी से उठाना शुरू हो गया है.

Advertisement

प्रचार में जुटे कांग्रेस नेता राहुल गांधी बार-बार पिछड़े वर्ग के प्रतिनिधित्व का मुद्दा उठा रहे हैं. छत्तीसगढ़, राजस्थान और एमपी की रैलियों में बार-बार ये बात दोहरा रहे हैं. उधर इस सर्वे का असर विपक्षी इंडिया वाली पॉलिटिक्स पर भी बढ़ना तय है क्योंकि कांग्रेस के साथ अखिलेश जैसे नेता भी बार-बार जातिगत जनगणना की मांग उठा रहे हैं लेकिन अब जेडीयू नेता नीतीश कुमार को ओबीसी वर्ग का असल अगुवा बता रहे हैं. बिहार में सर्वे के आंकड़े के सामने विपक्षी दल एक सुर हो रहे हैं, पूरे देश में जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं. बिहार सरकार के सर्वे के साथ जाति वाली राजनीति की नई पटकथा लिख दी गई है, पूरी पिक्चर 2024 में आएगी लेकिन इससे पहले इस पटकथा पर सियासत तेजी से गरमाएगी.

क्या कहते हैं बिहार में जातिगत जनगणना के आंकडे़ं?

बिहार सरकार ने सोमवार को राज्य में कराई गई जातिगत जनगणना के आकंड़ें जारी किए हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में 36 फीसदी अत्यंत पिछड़ा, 27 फीसदी पिछड़ा वर्ग, 19 फीसदी से थोड़ी ज्यादा अनुसूचित जाति और 1.68 फीसदी अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या बताई गई है.

सोमवार को हुई प्रेस कांफ्रेंस में बताया गया कि बिहार सरकार ने जातीय जनगणना का काम पूरा कर लिया है. मुख्य सचिव समेत अन्य अधिकारियों ने इसकी रिपोर्ट जारी की. बिहार सरकार ने राज्य में जातिगत जनसंख्या 13 करोड़ से ज्यादा बताई है. अधिकारियों के मुताबिक जाति आधारित गणना में कुल आबादी 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 बताई गई है.

Live TV

Advertisement
Advertisement