बिहार के सासाराम और बिहारशरीफ में रामनवमी पर शुरू हुई हिंसा अब तक जारी है. रविवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाईलेवल मीटिंग की. इस दौरान उन्होंने अधिकारियों को हिंसा में शामिल लोगों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करने का निर्देश दिया है. साथ ही हिंसा में मारे गए लोगों के परिजनों को पांच लाख रुपये का मुआवजा देने का ऐलान भी किया.
सासाराम रोहतास और बिहारशरीफ नालंदा जिले में पड़ते हैं. इन दोनों इलाकों में रामनवमी पर जूलूस के दौरान दो पक्षों के बीच हिंसक झड़प हो गई थी. तब से माहौल तनावपूर्ण है.
राज्य के डीजीपी आरएस भट्टी ने बताया कि ऐसा लगता है कि सासाराम और बिहारशरीफ में हुई घटनाएं सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने की कोशिश थी. उन्होंने कहा कि आरोपियों की पहचान की जा रही है. उन्होंने बताया कि अब तक 109 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. डीजीपी ने दावा किया कि अब दोनों ही इलाकों में हालात काबू में हैं.
दूसरी ओर स्थिति को नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) की 10 कंपनियां सासाराम और बिहारशरीफ में भेजी गईं हैं. एक कंपनी में करीब 100 जवान होते हैं. लिहाजा केंद्र की ओर से 10 हजार जवान भेजे गए हैं. इनमें सीएपीएएफ, एसएसबी और आईटीबीपी के जवान शामिल हैं.
ऐसे में जानते हैं कि किसी राज्य में कब और कैसे केंद्र सरकार पैरामिलिट्री फोर्सेस की कंपनियों को भेजती है या तैनात करती है? इन जवानों का खर्चा केंद्र उठाता है या फिर राज्य सरकार?
केंद्र कैसे भेजती है कंपनियां?
- वैसे तो कानून व्यवस्था और पुलिस राज्य का विषय है, लेकिन कई बार हालात इतने बिगड़ जाते हैं कि उसमें केंद्र सरकार को भी दखल देना पड़ता है.
- अगर किसी राज्य में कानून व्यवस्था इतनी बिगड़ गई है कि उससे राज्य या देश की सुरक्षा को खतरा हो सकता है तो फिर केंद्र सरकार भी इसमें राज्य सरकार की मदद करती है.
- इसके लिए संविधान के आर्टिकल 355 में प्रावधान है. आर्टिकल 355 बिगड़ती कानून व्यवस्था को संभालने के लिए केंद्र को दखल करने का अधिकार देता है.
- आर्टिकल 355 में कहा गया है कि केंद्र सरकार की ये जिम्मेदारी है कि वो हर राज्य की बाहरी आक्रमण और अंदरूनी उथल-पुथल की स्थिति में रक्षा करे.
- इतना ही नहीं, जब किसी राज्य में चुनाव होते हैं तो भी केंद्रीय बलों की कंपनियों को तैनात किया जाता है.
कब भेजे जाती हैं केंद्रीय बलों की कंपनियां?
- केंद्रीय गृह मंत्रालय के मुताबिक, आमतौर पर केंद्रीय बलों की कंपनियां या जवान तब भेजे जाते हैं, जब राज्य सरकार इसका अनुरोध करती हैं.
- हालांकि, कई बार केंद्र स्वतः संज्ञान लेकर भी केंद्रीय बलों की कंपनियों को किसी राज्य में तैनात कर सकता है.
- अक्टूबर 2017 में गृह मंत्रालय ने राज्यों में केंद्रीय बलों की तैनाती के लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर यानी एसओपी जारी की थी.
- एसओपी में गृह मंत्रालय ने राज्यों को सलाह दी थी कि केंद्रीय बलों की तैनाती का अनुरोध करने से पहले एडीजी (कानून व्यवस्था) की अध्यक्षता में एक कमेटी बनानी जानी चाहिए. इस कमेटी में स्थानीय पुलिस और केंद्रीय बलों के प्रतिनिधि भी होने चाहिए. जब कमेटी वहां की स्थिति की समीक्षा कर ले और अगर जरूरत पड़े तब केंद्रीय बलों की तैनाती का अनुरोध करे.
- एसओपी में सुझाया गया था कि कमेटी को मामले की संवेदनशीलता और हिंसा वाली जगह का इतिहास जैसी पहलुओं पर गौर करना चाहिए.
कौन उठाता है इनका खर्चा?
- अगर किसी राज्य में केंद्रीय बलों के जवानों को भेजा जाता है, तो उसका खर्चा राज्य सरकार उठाती है. चुनावों में भी जब केंद्रीय बलों को तैनात किया जाता है, तो वो खर्चा भी राज्य सरकार ही देती है.
- अक्टूबर 2019 में गृह मंत्रालय ने केंद्रीय बलों की तैनाती के खर्च को रिवाइज किया था. इसके मुताबिक, 2022-23 में राज्य सरकारों को केंद्रीय बलों की तैनाती के लिए सालाना 19.65 करोड़ रुपये चुकाने थे. 2023-24 के लिए ये खर्च 22.30 करोड़ रुपये सालाना तय किया गया था.
- हालांकि, राज्य सरकारों पर केंद्रीय बलों की तैनाती का लगभग 50 हजार करोड़ रुपये बकाया है. इसी साल 17 मार्च को संसद में गृह मंत्रालय की संसदीय समिति ने रिपोर्ट पेश की थी.
- इस रिपोर्ट में बताया था कि अक्टूबर 2022 तक राज्य सरकारों पर केंद्रीय बलों की तैनाती का 49,912.37 करोड़ रुपये बकाया है. इसमें से 44,083.51 करोड़ रुपये सिर्फ सीआरपीएफ के जवानों की तैनाती का ही है.
- इसी रिपोर्ट में ये भी बताया गया था कि कुछ राज्यों ने केंद्र सरकार से इस बकाये को माफ करने की अपील भी की थी. इनमें जम्मू-कश्मीर के अलावा गोवा, छत्तीसगढ़, ओडिशा, नागालैंड, मिजोरम, आंध्र प्रदेश, असम, पंजाब, उत्तराखंड, महाराष्ट्र और त्रिपुरा की सरकारें शामिल थीं.