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बिलकिस बानो के गुनहगारों की रिहाई पर मानवाधिकार आयोग में चर्चा आज, इन मुद्दों पर हो सकता है विचार

बिलकिस बानो केस के सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया गया है. दोषियों पर बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप करने के साथ-साथ उसके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या करने का भी इल्जाम था. दोषियों की रिहाई पर फैसला गुजरात सरकार ने लिया है. सभी दोषियों को 2008 में अदालत की तरफ से उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. अब इस मुद्दे पर मानवाधिकार आयोग आज चर्चा करेगा.

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बिलकिस बानो (फाइल फोटो)
बिलकिस बानो (फाइल फोटो)

गुजरात के चर्चित बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों को गुजरात सरकार ने जेल से रिहा कर दिया था. अब इस मुद्दे पर मानवाधिकार आयोग आज चर्चा करेगा. दरअसल, गुजरात सरकार ने 11 दोषियों को अपने संविधान प्रदत्त अधिकार के तहत रिहा कर दिया है. दोषियों की रिहाई पर राष्ट्रव्यापी बहस छिड़ने के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग आज इस पर विचार करेगा. आयोग संभवतः अपनी ओर से इस मामले की समीक्षा के लिए टीम भी बना सकता है. 

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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक सोमवार को आयोग की दैनिक कार्यसूची में ये मुद्दा भी है. इस मामले में आयोग जांच कराने के अलावा राज्य सरकार को निर्देश भी दे सकता है कि पीड़ित को सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार अपील दाखिल करने के लिए आर्थिक मदद राज्य सरकार मुहैया कराए.

27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के कोच को जला दिया गया था. इस ट्रेन से कारसेवक अयोध्या से लौट रहे थे. इससे कोच में बैठे 59 कारसेवकों की मौत हो गई थी. इसके बाद गुजरात में दंगे भड़क गए थे. दंगों की आग से बचने के लिए बिलकिस बानो अपनी बच्ची और परिवार के साथ गांव छोड़कर चली गई थीं. बिलकिस बानो और उनका परिवार जहां छिपा था, वहां 3 मार्च 2002 को 20-30 लोगों की भीड़ ने तलवार और लाठियों से हमला कर दिया. भीड़ ने बिलकिस बानो के साथ बलात्कार किया. उस समय बिलकिस 5 महीने की गर्भवती थीं. इतना ही नहीं, उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या भी कर दी थी. बाकी 6 सदस्य वहां से भाग गए थे.

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जब कार्रवाई में ढील देखी गई तो मानवाधिकार आयोग ने जस्टिस जेएस वर्मा की अगुवाई में आयोग की टीम ने दंगा राहत शिविर का दौरा करते हुए 2003 में इस मामले की नई सिरे से सीबीआई जांच के निर्देश दिए थे.

आयोग में सचिव स्तर के एक अधिकारी ने बताया कि CBI की विशेष अदालत ने जनवरी 2008 में इस मामले में 13 में से 11 आरोपियों को रेप और हत्या का दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी. बाद में दोषियों की अपील पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी मई 2017 में अपना फैसला सुनाते हुए इस सजा को बरकरार रखा था. लेकिन गुजरात सरकार ने सजा की समीक्षा और कैदियों के चाल-चलन को देखते हुए सजा कम या माफ करने के अधिकार के तहत दोषियों को गोधरा जेल से छोड़ दिया. इस पर देशभर में नई बहस छिड़ गई है.

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