बिलकिस बानो गैंगरेप के दोषियों की रिहाई के खिलाफ एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हुई है. इस बार याचिका पीड़िता की तरफ से डाली गई है. जिसमें सभी दोषियों की रिहाई के गुजरात सरकार के फैसले को चुनौती दी गई है. गुजरात चुनाव से तुरंत पहले दायर की गई इस याचिका को लेकर राजनीतिक गलियारों में भी चर्चाएं हैं. लेकिन पीड़िता बिलकिस बानो के पति ने स्पष्ट कर दिया है कि इस याचिका का चुनाव से कोई संबंध नहीं है.
आजतक से बातचीत करते हुए बिलकिस बानो के पति याकूब रसूल ने कहा कि हम गांव में नहीं रहते हैं. कारण, हम वहां सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं. हम चाहते हैं कि अपराधी आजीवन जेल में रहें. हमें सुप्रीम कोर्ट पर पूरा भरोसा है. वहीं चुनाव से तुरंत पहले इस याचिका को लेकर उठ रहे सवालों पर उन्होंने कहा कि हमें चुनाव में कोई दिलचस्पी नहीं है. हमारी याचिका चुनाव से जुड़ी नहीं है.
बता दें कि बिलकिस बानो के 11 दोषियों को सजा का समय पूरा होने से पहले ही गुजरात सरकार ने 15 अगस्त 2022 को आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर आजाद कर दिया गया था. इसके बाद सरकार के इस फैसले पर कई सवाल उठे थे. विपक्ष ने भी इसे मुद्दा बनाकर बीजेपी और गुजरात सरकार पर निशाना साधा है. इस क्रम में सुप्रीम कोर्ट में फैसले के खिलाफ पहली याचिका सुभाषिनी अली और दूसरी याचिका राज्यसभा सांसद महुआ मोइत्रा ने दाखिल की थी.
क्या है पूरा मामला?
27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के कोच को जला दिया गया था. इस ट्रेन से कारसेवक अयोध्या से लौट रहे थे. इससे कोच में बैठे 59 कारसेवकों की मौत हो गई थी. इसके बाद गुजरात में दंगे भड़क गए थे. दंगों की आग से बचने के लिए बिलकिस बानो अपनी बच्ची और परिवार के साथ गांव छोड़कर चली गई थीं.
बिलकिस बानो और उनका परिवार जहां छिपा था, वहां 3 मार्च 2002 को 20-30 लोगों की भीड़ ने तलवार और लाठियों से हमला कर दिया. भीड़ ने बिलकिस बानो के साथ बलात्कार किया. उस समय बिलकिस 5 महीने की गर्भवती थीं. इतना ही नहीं, उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या भी कर दी गई थी, जबकि बाकी 6 सदस्य वहां से भाग गए थे.