मणिपुर में भड़की हिंसा से 8 जिले प्रभावित हैं. दिल्ली से रैपिड एक्शन फ़ोर्स की 5 कंपनियां मणिपुर भेजी गईं हैं. असम राइफल्स के जवान और सेना ने भी मोर्चा संभाल रखा है. सरकार ने शूट एट साइट का भी आदेश जारी किया है. हिंसा के दौरान राजधानी इंफाल में बीजेपी के विधायक वुंगजागिन वाल्टे पर भी गुस्साई भीड़ ने हमला कर दिया. ये हमला उस समय हुआ जब वह मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह से मुलाकात कर विधायक राज्य सचिवालय से लौट रहे थे. ध्यान देने योग्य बात यह है कि वाल्टे कुकी जनजाति से आतेहैं और एक आदिवासी विधायक हैं
फिरजावल जिले के थानलोन से तीन बार के विधायक वुंगजागिन वाल्टे राजधानी इंफाल में अपने सरकारी आवास की ओर जा रहे थे, तभी भीड़ ने उन पर और उनके ड्राइवर पर हमला कर दिया, जबकि उनका पीएसओ भागने में सफल रहा. यह घटना रिम्स रोड पर हुई जब भीड़ ने उनके वाहन पर हमला कर दिया. उनके साथ उनके चालक को बेरहमी से पीटा गया. उन्हें तुरंत मौके से निकालकर इंफाल में क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान संस्थान (RIMS) में भर्ती कराया गया, जहां उनकी हालत गंभीर बनी हुई है.
बता दें कि भारत की खूबसूरती में चार चांद लगाने वाले 7 सिस्टर्स में से एक मणिपुर हिंसा के बाद धधक उठा. विरोध मार्च के रूप में एक चिंगारी से शुरू हुई आग कब हिंसा में तब्दील हो गई, पता ही नहीं चला. कहीं घरों में आगजनी दिखाई दी तो कहीं धुएं का गुबार. बेकाबू भीड़ ने लग्जरी गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया. हिंसा के बाद बर्बादी के निशान हर ओर दिख रहे हैं. करीब दस हजार लोगों को हिंसा प्रभावित इलाकों से निकालकर सुरक्षित ठिकानों पर पहुंचाया जा चुका है. मणिपुर के 8 जिलों में धारा 144 लागू है. पांच दिन के लिए इंटरसेवा बंद की गई है. हालात फिलहाल तनावपूर्ण हैं, लेकिन नियंत्रण में हैं.
बवाल किस बात पर?
इस सारे बवाल की जड़ को 'कब्जे की जंग' भी माना जा सकता है. इसे ऐसे समझिए कि मैतेई समुदाय की आबादी यहां 53 फीसदी से ज्यादा है, लेकिन वो सिर्फ घाटी में बस सकते हैं. वहीं, नागा और कुकी समुदाय की आबादी 40 फीसदी के आसपास है और वो पहाड़ी इलाकों में बसे हैं, जो राज्य का 90 फीसदी इलाका है. मणिपुर में एक कानून है, जिसके तहत आदिवासियों के लिए कुछ खास प्रावधान किए गए हैं. इसके तहत, पहाड़ी इलाकों में सिर्फ आदिवासी ही बस सकते हैं. चूंकि, मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं मिला है, इसलिए वो पहाड़ी इलाकों में नहीं बस सकते. जबकि, नागा और कुकी जैसे आदिवासी समुदाय चाहें तो घाटी वाले इलाकों में जाकर रह सकते हैं. मैतेई और नागा-कुकी के बीच विवाद की यही असल वजह है. इसलिए मैतेई ने भी खुद को अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने की मांग की थी.