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Black and White with Sudhir Chaudhary: प्रवीण नेट्टारू की निर्मम हत्या, क्यों नहीं बैन होता PFI?

कर्नाटक में भारतीय जनता युवा मोर्चे के एक जिला सचिव प्रवीण नेट्टारू की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई. दुकान बंद कर घर लौटते वक्त उन पर धारदार हथियारों से वार किया गया. हत्या के पीछे PFI का नाम सामने आ रहा है. प्रवीण की इस तरह से हत्या क्या लोकतंत्र में जायज है? बार-बार हिंसक घटनाओं में नाम आने के बाद PFI पर बैन क्यों नहीं लगता है?

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प्रवीण नेट्टारू
प्रवीण नेट्टारू
स्टोरी हाइलाइट्स
  • प्रवीण ने कन्हैयालाल के समर्थन में लिखी थी पोस्ट
  • हर हिंसा का कनेक्शन पीएफआई से कैसे जुड़ा?
  • बात हिंदू मुसलमान की नहीं है, बात इंसान की है

हम गर्व से कहते हैं कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. लोकतंत्र मतलब जहां सभी अपनी बात बिना डरे कह सकते हों. ये संविधान से मिला अधिकार है. लेकिन क्या वाकई ऐसा है? ये सवाल हम इसलिए पूछ रहे हैं, क्योंकि कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले में बीजेपी के 32 साल के युवा नेता प्रवीण नेट्टारू की मंगलवार को हत्या कर दी गई. प्रवीण भाजपा युवा मोर्चा के जिला सचिव थे. प्रवीण ने 29 जून को राजस्थान में मारे गए कन्हैयालाल की हत्या के विरोध में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखी थी और एक महीने के अंदर ही उन्हें दर्दनाक मौत दे दी गई.

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इस वारदात से सवाल खड़ा होता है कि हिन्दुस्तान में किसी के समर्थन में हम और आप क्या लिख भी नहीं सकते? क्या भारत में नूपुर शर्मा और कन्हैया लाल का समर्थन करने वालों का हश्र अब यही होगा? यानी कोई भी व्यक्ति जो नूपुर शर्मा या कन्हैयालाल का समर्थन करेगा, तो उसकी क्रूर हत्या कर दी जाएगी? अगर हां तो हमारे देश में लोकतंत्र कहां है?

हर हिंसा का कनेक्शन पीएफआई से कैसे जुड़ा?

ये कैसा लोकतंत्र है जो अपने ही लोगों की रक्षा नहीं कर सकता? ये कैसा लोकतंत्र है जिसमें लोग अपने विचार सोशल मीडिया पर खुलकर लिख भी नहीं सकते? इससे भी बड़ा सवाल पीएफआई को लेकर है. इसके फुटप्रिंट इस हत्या में भी दिखाई दे रहे हैं. चाहे नए नागरिकता कानून के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग का प्रदर्शन हो या फिर जहांगीरपुरी की हिंसा, देश में बड़ी-बड़ी हिंसक घटनाओं के पीछे अक्सर पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया का हाथ निकल ही आता है. कर्नाटक में जब हिजाब पर विवाद हुआ था तब भी पीएफआई पर ही मुस्लिम छात्राओं को भड़काने का आरोप लगा था. सवाल ये है कि आखिर हर हिंसा का पीएफआई से ही कनेक्शन क्यों निकलता है? इससे भी बड़ा सवाल ये है कि जब बार-बार देश का माहौल बिगाड़ने के पीछे पीएफआई का नाम सामने आता है, तो उस पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगता? और कितने बेकसूर लोगों की हत्या के बाद पीएफआई पर बैन लगाने का काम होगा? आखिर पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने से सरकार को कौन रोक रहा है?

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प्रवीण ने कन्हैयालाल के समर्थन में लिखी थी पोस्ट

सबसे पहले नूपुर शर्मा को जान से मारने की धमकियां मिलीं. फिर जिन लोगों ने नूपुर शर्मा के समर्थन में सोशल मीडिया पर लिखा. देश के कई राज्यों में ऐसे लोगों की हत्या की गई. अब बात इससे कहीं आगे जा रही है. अब नूपुर शर्मा के समर्थन में पोस्ट लिखने वाले कन्हैयालाल की हत्या पर सवाल उठाना भी जानलेवा बन चुका है. ये बहुत डराने वाला है. जो बताता है कि अब पानी...सिर से  ऊपर निकल चुका है. प्रवीण नेट्टारू ने सिर्फ सवाल उठाए थे. जो लोकतंत्र में कोई भी उठा सकता है. लेकिन ऐसा करना भी उन्हें भारी पड़ा.  29 जून को प्रवीण नेट्टारू ने अपने फेसबुक पोस्ट में उदयपुर के कन्हैयालाल का समर्थन किया था और उनकी हत्या करने वालों पर सवाल उठाया था. धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अहिंसा का नाटक करने वालों से पूछा था कि वो कन्हैयालाल की हत्या के बाद चुप क्यों हैं.

प्रवीण नेट्टारू ने अपनी पोस्ट में लिखा था - राष्ट्रवादी विचारधारा का समर्थन करने पर कन्हैयालाल की खुलेआम हत्या कर दी गई. उनकी हत्या का वीडियो भी बनाया. जब इन हत्यारों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपना अगला निशाना बताया तब धर्मनिरपेक्षता का दिखावा करने वाले लोग कहां थे? क्या अब आप अपनी जुबान नहीं हिलाएंगे? क्या उस बेचारे पर आपको दया नहीं आई?

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इस पोस्ट को पढ़कर ये समझ में आता है कि प्रवीण नेट्टारू, कन्हैया लाल की हत्या से बहुत दुखी और नाराज थे. वो धर्मनिरपेक्षता का ड्रामा करने वालों से सवाल पूछ रहे थे. उन्हें आइना दिखा रहे थे. लेकिन इस फेसबुक पोस्ट की वजह से उन्हें भी कन्हैयालाल की तरह अपनी जान गंवानी पड़ी.

दुकान बंद कर घर लौट रहे थे प्रवीण

पुलिस के मुताबिक दक्षिण कन्नड़ जिले के बेल्लारे इलाके में प्रवीण की पोल्ट्री की दुकान है. मंगलवार को जब प्रवीण दुकान बंद कर घर लौट रहे थे, तभी बाइक पर कुछ लोग आए. तीनों बदमाशों के चेहरे नकाब और मास्क से ढके हुए थे. तीनों के हाथों में धारदार हथियार लहरा रहे थे. तीनों ने उतरकर सबसे पहले प्रवीण को रोका. इससे पहले प्रवीण कुछ समझ पाते, तीनों ने उन पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया. प्रवीण को बुरी तरह से जख्मी करने के बाद वो तीनों बदमाश जिस मोटरसाइकिल से आए थे, उसी पर सवार होकर अंधेरे में फरार हो गए.

अब तक पुलिस को सुराग के नाम पर सिर्फ एक बाइक मिली है.. इसके बारे में कुछ चश्मदीदों का दावा है कि ये केरल की है. वहीं अब तक 9 से ज्यादा आरोपियों को गिरफ्तार कर पूछताछ की जा रही है. बड़ी बात ये है कि इस हत्या के पीछे पीएफआई और एसडीपीआई का हाथ होने का शक जताया जा रहा है. प्रवीण नेट्टारू की हत्या में केरल के अपराधिकयों के हाथ होने का शक जताया जा रहा है. इसके बाद कर्नाटक के डीजीपी ने केरल के डीजीपी से बात की है ताकि अगर वारदात के बाद अपराधी केरल में दाखिल हो गए हैं तो उन्हें दबोचा जा सके.

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क्या है पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी  PFI?

अब सवाल ये है कि आखिर पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) क्या है? इस संगठन का अस्तित्व देश में कितना है? पॉपुलर फ्रट ऑफ इंडिया यानी PFI का जन्म 17 फरवरी 2007 को हुआ . ये संगठन दक्षिण भारत के 3 मुस्लिम संगठनों का विलय करके बना था. PFI का दावा है कि इस वक्त देश के 23 राज्यों में उनका संगठन सक्रिय है. देश में स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट यानी सिमी पर बैन लगने के बाद पीएफआई का विस्तार तेजी से हुआ है. कर्नाटक, केरल जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों में इस संगठन की काफी पकड़ बताई जाती है, लेकिन देश के विभिन्न राज्यों में हो रही हिंसक घटनाओं में PFI का नाम सामने आ रहा है. हाल ही में पटना के फुलवारी शरीफ में आतंकवादियों की गिरफ्तारी से PFI मॉड्यूल का खुलासा हुआ.

इसी साल राजस्थान के कोटा में कर्नाटक हिजाब मामले में एक यूनिटी मार्च निकाला गया. हिजाब मामले के जरिए एक धर्म विशेष को भड़काने के लिए पीएफआई ने राज्य में अपनी सक्रियता का इस्तेमाल किया है. इसे मुद्दा बनाने की कोशिश भी की. दो साल पहले दिल्ली दंगों की साजिश में भी इसका नाम सामने आया. 5 अक्टूबर 2020 को यूपी पुलिस ने इससे जुड़े 4 लोगों को पकड़ा था, जिन पर राज्य का सौहार्द खराब करने का शक था. दिसंबर 2019 में भी यूपी पुलिस ने हिंसा फैलाने के आरोप में पीएफआई के 16 लोगों को पकड़ा था. नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हुए प्रदर्शनों में हिंसा भड़काने की साजिश PFI के यूपी चीफ ने रची थी.

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अक्सर पीएफआई को सिमी का ही बदला हुआ रूप कहा जाता है. 1977 से देश में सक्रिय सिमी पर साल 2006 में प्रतिबंध लगा था. सिमी पर प्रतिबंध लगने के चंद महीनों बाद ही पीएफआई अस्तित्व में आया. कहा जाता है कि इस संगठन के काम करने का तरीका सिमी जैसा ही है. 2012 से ही अलग-अलग मौकों पर इस संगठन पर कई तरह के आरोप लगते रहे हैं. इसलिए कई बार इसे बैन करने की मांग हो चुकी है.  

बात हिंदू मुसलमान की नहीं है, बात इंसान की है

यहां हम साफ कर दें कि हम किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचा रहे. हम सत्य को सामने रख रहे हैं. हमें लगता है कि देश में किसी को भी कानून को हाथ में लेने और हत्याएं करने का अधिकार नहीं है. किसी बात या किसी विचार से नाराजगी है तो उसके समाधान के लिए अदालतें हैं. भारत की पूरी की पूरी न्याय व्यवस्था सबके लिए बराबारी से उपलब्ध है.


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