बॉम्बे हाई कोर्ट ने एमबीबीएस कोर्स में दाखिले के लिए फर्जी सर्टिफिकेट बनवाने के आरोपी को राहत दी है. अदालत ने 28 साल के शख्स की एमबीबीएस डिग्री रद्द नहीं की, लेकिन कॉलेज द्वारा उस पर लगाए गए जुर्माने को बरकरार रखा है. दरअसल आरोपी ने सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस कोर्स में दाखिले के लिए अनुसूचित जाति का फर्जी सर्टिफिकेट पेश किया था.
इस मामले में सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज ने आरोपी डॉक्टर पर 10,93,200 रुपये का जुर्माना लगाया था. हालांकि, मुंबई स्थित मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च के निदेशक ने 17 जुलाई 2019 को महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस को आदेश दिया था कि वह आरोपी डॉक्टर की एमबीबीएस डिग्री को रद्द करने करने का प्रस्ताव रखे.
इसके बाद आरोपी डॉक्टर ने हाई कोर्ट के इस आदेश को बॉम्बे हाई कोर्ट में जस्टिस एसवी गंगापुरवाला और जस्टिस आरएन लड्ढा की पीठ के समक्ष चुनौती दी थी.
बता दें कि याचिकाकर्ता डॉक्टर ने मुंबई कॉलेज से फरवरी 2015 में अपना एमबीबीएस कोर्स पूरा किया था और अप्रैल 2016 में एक साल की इंटर्नशिप पूरी की थी. इसके बाद याचिकाकर्ता डॉक्टर ने 2017 में नीट-पीजी की परीक्षा दी, जिसके बाद वह ओपन (जनरल) कैटेगरी के तहत पोस्ट ग्रैजुएशन डिप्लोमा में दाखिला लिया. जून 2019 में याचिकाकर्ता ने Ophthalmology में डिप्लोमा पूरा किया.
डॉक्टर की ओर से अदालत में पेश वकील वीएम थोराट ने कहा कि जिस समय याचिकाकर्ता ने एमबीबीएस कोर्स में दाखिला लिया और सर्टिफिकेट जारी किया गया, उस समय वह नाबालिग था.
थोराट ने कहा कि याचिकाकर्ता के पिता तड़वी जाति से है, जो अनुसूचित जाति के तहत आती है. याचिकाकर्ता के अच्छे मार्क्स आए थे और उसे ओपन कैटेगरी के तहत भी सीट मिल जाती.
हालांकि, सरकारी वकील पूर्णिमा कंठारिया ने कहा कि याचिकाकर्ता को इन मार्क्स के साथ सेठ मेडिकल कॉलेज में दाखिला नहीं मिलता लेकिन इन नंबरों के साथ उसे जनरल कैटेगरी के तहत नागपुर या किसी अन्य जगह के कॉलेज में दाखिला मिल जाता.
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है और कानून अपना काम करेगा. इस तरह अदालत ने याचिकाकर्ता की सजा रद्द नहीं की. आरोपी के खिलाफ लगाया गया जुर्माना उचित है.